
अगर मन में जोश और जज्बा हो तो मंजिल मिल ही जाती है, अभाव में भी अवसर ढूंढे ही लेते हैं. ऐसी ही कहानी है. राजस्थान में दौसा के एक गांव की रहने वाली बेटी शिवानी की जिसने अपने कैरियर के लिए हॉकी जैसे खेल को चुना और कई बार नेशनल खेला. वहीं, अंडर 16 में तो इंटनेशनल भी खेल चुकी है. अब शिवानी का भारतीय टीम में चयन के लिए टॉप-20 प्लेयर में चयन हो चुका है.
शिवानी के पिता कोई धनवान व्यक्ति नहीं है. वह दौसा के मंडावर गांव में पकौड़ी का ठेला लगाते हैं. दौसा जिले के मंडावर गांव में रहने वाली सीताराम साहू की बेटी शिवानी साहू पूरे देश में नाम कमा रही है. 2012 में अपने ही गांव में जर्मन नेशनल प्लेयर आंद्रेया से कोचिंग लेकर हॉकी के टिप्स सीखें. इसके बाद राजस्थान से नेशनल भी खेला 2013 से 2018 तक राजस्थान की टीम का हिस्सा रही.
यही नहीं, शिवानी अंडर-17 सब जूनियर टीम की कैप्टन भी रह चुकी है. हॉकी में अपना कैरियर बनाने और एजुकेशन को भी बढ़ाने के उद्देश्य से शिवानी 2018 में मुंबई चली गई. इसके बाद शिवानी ने गुरु नानक खालसा इंग्लिश मीडियम स्कूल से सीनियर सेकेंडरी पास की और उसके बाद ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए पुणे शिफ्ट हो गई. वर्तमान में शिवानी पुणे यूनिवर्सिटी में बीए की स्टूडेंट है और महाराष्ट्र के लिए नेशनल खेलती है.
शिवानी साहू 2016 में अंडर-17 की भारतीय टीम का हिस्सा रह चुकी है और नीदरलैंड में खेल चुकी है. शिवानी के हौसलों को पंख उस समय लगे जब उसका नेशनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्पोर्ट्स ऑथोरिटी ऑफ इंडिया के द्वारा 60 खिलाड़ियों में चयन हुआ और उसके बाद अब टॉप 20 प्लेयर में भी जगह बना ली है. इन 20 खिलाड़ियों में भारतीय टीम के हॉकी खिलाड़ी शामिल हैं साथ ही शिवानी साहू भी शामिल है.
इन्हीं 20 खिलाड़ियों में से हॉकी खेल की भारतीय टीम का चयन होगा. कुल 18 प्लेयर चयनित होंगे जिनमें 11 मैदान में खेलते हैं. हॉकी कि भारतीय टीम का हिस्सा बनने की दहलीज पर खड़ी शिवानी साहू काफी प्रसन्न है और अपनी सफलता का श्रेय हॉकी कोच आंद्रेया और अपने परिजनों को देती है. शिवानी का कहना है कि उसका परिवार गांव में रहता है और उसके पिता पकौड़ी का स्टाल लगाते हैं. ऐसे में सामान्य परिवार की बेटी होने के बावजूद भी परिजनों ने स्वतंत्रता दी और उसे अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए मुंबई और पुणे तक भेजा.
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