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राजस्थान: महंगाई की आग में ठंडे हुए ‘उज्ज्वला’ के चूल्हे, करीब 35 फीसदी लाभार्थियों ने नहीं भरवाया सिलेंडर

काफी परिवारों ने महंगाई के कारण गैस के चूल्हे के स्थान पर लकड़ी और कोयले का चूल्हा जलाना शुरू कर दिया है. उपभोक्ता कह रहे हैं कि पहले आदत डाल दिया और अब गैस मंहगी कर दी. लकड़ी जुटाना मुश्किल हो रहा है.

राजस्थान में चूल्हे में खाना बनाती महिला राजस्थान में चूल्हे में खाना बनाती महिला
शरत कुमार
  • जयपुर ,
  • 06 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 8:16 AM IST
  • गैस सिलेंडर की बढ़ती कीमतों से ग्राहक परेशान
  • उज्ज्वला योजना के कई लाभार्थियों ने नहीं भरवाया सिलेंडर
  • लकड़ी और कोयले का चूल्हा जलाना किया शुरू

महिलाओं को चूल्हे के धुएं से निजात दिलाने के लिए उज्ज्वला योजना की शुरुआत की गई. लेकिन गैस सिलेंडर के बढ़ते दामों ने लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. गरीब परिवारों को मुफ्त सिलेंडर तो दे दिए गए, लेकिन गैस के दाम बढ़ने से लाभार्थी इन्हें रीफिल नहीं करा पा रहे हैं. 10 महीने में ‌‌250 रुपये से ज्यादा और 44 दिन में 125 रुपये के करीब सिलेंडर के दाम में इजाफा हो चुका है. सब्सिडी भी बंद होने से राजस्थान में उज्ज्वला योजना के 30 से 35 फीसदी लाभार्थियों ने फिर सिलेंडर नही भरवाया. 

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जयपुर के मायरा को उज्जवला के तहत कनेक्शन मिला था. लेकिन मायरा और बेटी रूकिमा चूल्हा फूंकने को मजबूर हैं. वह कहती हैं कि पूरे परिवार की कमाई मुश्किल से चार हजार महीने की है. ऐसे में 823 रुपये गैस सिलेंडर पर खर्च नहीं कर सकते. जितने का सिलेंडर भरवाएंगे उतने में तो राशन ले आएंगे. उन्होंने कहा कि बेटी को चूल्हा फूंकना अच्छा नहीं लगता मगर मजबूरी है.

वहीं, धवास की सायरा कहती हैं कि पहले 400 में सिलेंडर मिलता था. लेकिन अब 850 के करीब मिल रहा है. इतने पैसे कहां से लाएं. सायरा कहती हैं कि जब कनेक्शन लिया था, तब पता नहीं था कि सिलेंडर इतना महंगा है. 

उज्ज्वला योजना के तहत मुफ्त घरेलू गैस के कनेक्शन बांटे गए. कोरोना काल में तीन सिलेंडरों की मुफ्त रीफिलिंग की गई. लेकिन अप्रैल में गैस सब्सिडी बंद होने और दिसंबर के बाद कीमतों में अचानक लगी आग ने गरीब परिवारों की महिलाओं के लिए दो वक्त की रोटी बनाना मुश्किल कर दिया. राजस्थान में महंगाई के चलते बड़ी तादाद में उपभोक्ता सिलेंडर नहीं भरवा पा रहे हैं. महंगाई और रसोई गैस की बढ़ती कीमतों ने सरकार की धुआं मुक्त भारत की योजना को भी पलीता लगा दिया है.
 
काफी परिवारों ने महंगाई के कारण गैस के चूल्हे के स्थान पर लकड़ी और कोयले का चूल्हा जलाना शुरू कर दिया है. उपभोक्ता कह रहे हैं कि पहले आदत डाल दिया और अब गैस मंहगी कर दी. लकड़ी जुटाना मुश्किल हो रहा है.
  
तेल कंपनियों के आंकडों पर नजर डाले तो सिर्फ 30 से 35 फीसदी ही उज्जवला योजना के उपभोक्ता रेगुलर सिलेंडर भरवा रहे हैं. यानि की 63.64 लाख में से 21 लाख 60 हजार उपभोक्ता ही रेगुलर रीफिलिंग करवा रहे हैं. दिसंबर से सिलेंडर के दाम 700 रुपये तक पहुंच गए और पिछले 9 महीने से सब्सिडी भी बंद है. ऐसे में इसका सीधा असर उज्ज्वला योजना के कनेक्शन पर दिख रहा है. पिछले साल अप्रैल महीने में सिलेंडर का बेस प्राइस 520 रुपये रखा गया था. इसे मौजूदा घरेलू सिलेंडर के दाम से घटाया जाए तो करीब 303 रुपये की सब्सिडी आम आदमी को मिलनी चाहिए. ऐसे में सिलेंडर 823 रुपये की बजाय 520 रुपये का ही पड़ता.

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केंद्र सरकार ने कोरोना काल में उज्ज्वला गैस का उपयोग करने वाले कमजोर परिवारों को मुफ्त में सिलेंडर रीफिलिंग का लाभ दिया था. यह लाभ सरकार ने अप्रैल से जून के बीच तीन सिलेंडरों का रुपया उपभोक्ताओं के खातों में डालकर दिया था. मुफ्त लाभ के सिलेंडर की गैस खत्म होने और दाम बढऩे से उज्ज्वला गैस के सिलेंडरों की रीफिलिंग से उपभोक्ताओं ने मुंह मोड़ लिया है. इससे रीफिलिंग के आंकड़ों में गिरावट आ गई है.

इस मसले पर राजस्थान LPG ड्रिस्ट्रीब्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष दीपक गहलोत का कहना है कि पहले कोरोना में कमाई गई और अब मंहगाई की वजह से उज्जवला धारक ग्राहकों की संख्या घटती जा रही है.

यूं समझे गणित

कंपनी          उपभोक्ताओं की संख्या                रिफलिंग करवाने वालों की संख्या        प्रतिशत

IOC                  26,39,829                                       8,70,356                             32.97फीसदी

BPC                 19,24,333                                     7,12,695                               37 फीसदी

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HPC                17,95,925                                      5,77,085                              32.13फीसदी

कुल उपभोक्ता     63.64 हजार 216 लाख                   21,60,136                              33.94 फीसदी

केवल उज्ज्वला ही नहीं, गैस एजेंसियों का दावा है कि आम उपभोक्ताओं के भी सिलेंडर लेने की संख्या में कमी आई है. मगर सबसे बड़ी चिंता ग्रामीण इलाकों और गरीब तबके के फिर से वापस चूल्हे की तरफ लौटने को लेकर है. 

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