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राजस्थान का सबसे लंबा रेस्क्यू: 90 फीट की गहराई में दबा था मजदूर का शव, 84 दिन बाद ऐसे निकाला गया

27 सितंबर को पुलिसकर्मी ईश्वरसिंह के कुएं को पक्का करने के लिए जोगापुरा गांव के रहने वाले श्रमिक मूपाराम मीणा व गोमाराम कुएं में उतरे थे. श्रमिक मूपाराम करीब 90 फीट गहराई में मिट्टी ढहने से दब गया. ये रेस्क्यू 84 दिन चला, जो प्रदेश का सबसे लंबा रेस्क्यू ऑपरेशन था.

कुएं में गिरने के 84 दिन बाद निकाला मजदूर का शव. कुएं में गिरने के 84 दिन बाद निकाला मजदूर का शव.
  • कुएं में गिरने के 84 दिन बाद निकाला मजदूर का शव
  • शव का मौके पर ही पोस्टमॉर्टम करवाकर परिजनों को सौंपा गया शव
  • करीब 55 फीट आरसीसी फर्मे को कुएं में 83 फीट तक उतारा गया

राजस्थान के पाली जिले कानपुरा गांव में कुआं ढहने से दफन हुए श्रमिक मूपाराम मीणा का शव 84 दिन के लंबे रेस्क्यू के बाद शनिवार को बाहर निकाल लिया गया. प्रशासन के अनुसार, करीब 92 फीट गहराई के साथ मिट्टी में दबे शव को निकालना चुनौती भरा था. ये रेस्क्यू 84 दिन चला, जो प्रदेश का सबसे लंबा रेस्क्यू ऑपरेशन था.

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शनिवार दोपहर 1.30 बजे रेस्क्यू पूरा हुआ. शव का मौके पर ही पोस्टमॉर्टम करवाकर परिजनों को सौंप दिया गया. दरअसल, 27 सितंबर को पुलिसकर्मी ईश्वरसिंह के कुएं को पक्का करने के लिए जोगापुरा गांव के रहने वाले श्रमिक मूपाराम मीणा व गोमाराम कुएं में उतरे थे. श्रमिक मूपाराम करीब 90 फीट गहराई में मिट्टी ढहने से दब गया.

वहीं, पाली जिले के प्रभारी मंत्री सालेह मोहम्मद के दौरे से एक दिन पहले यह शव निकाला गया. वे रविवार को पाली दौरे पर हैं. इससे पहले 3 अक्टूबर को पाली प्रवास पर थे. इस दौरान उन्होंने प्रशासन को फटकार लगाते हुए शव को निकालने के निर्देश दिए थे. वे 77 दिन बाद रविवार को वापस पाली लौट रहे हैं. 

प्रशासन ने पहले इस कुएं को ही मूपाराम की कब्र मानते हुए परिजनों को लौटा दिया था. उपखंड प्रशासन ने साफ तौर पर शव निकालने से मना कर दिया था. बाद में, प्रभारी मंत्री सालेह मोहम्मद और तत्कालीन संभागीय आयुक्त डॉ समित शर्मा की फटकार के बाद स्थानीय प्रशासन जागा. इसके बाद शव को निकालने की रणनीति नए सिरे से तैयार कर एक्सपर्ट टीम का गठन किया. टीम में शामिल अधिकारी और श्रमिक 84 दिन तक लगे रहे. आखिरकार वे शव को बाहर निकालकर ही रुके.

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शव को बाहर निकालने के लिए प्रशासन ने 5 दिन तक रेस्क्यू चलाया. बाद में कुआं ढहने के डर से प्रशासन ने हाथ खड़े कर दिए. मुद्दा उठा तो रेस्क्यू शुरू कर प्रशासन ने इसे चैलेंज के तौर पर लिया, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. सिरोही के पंचदेवल में भी 13 अक्टूबर को कानपुरा जैसा हादसा हुआ था. वहां श्रमिक 120 फीट गहरे कुएं में दब गया था. 45 घंटे में शव को निकाल लिया गया लेकिन कानपुरा में पहले कुएं को जानलेवा बताकर रेस्क्यू को रोका गया, बाद में बजट नहीं होने की बात कही गई. साथ ही संसाधनों का भी अभाव बताया गया.

रेस्क्यू टीम का कहना है कि प्रशासन ने हमें 13 अक्टूबर को रेस्क्यू का काम सौंपा.  हमारे साथ एईएन गोखलेश बसवाल भी थे. हम बेबी वैल तकनीक का अपना रहे थे, मगर यह जोखिम भरा था. आखिर में सीकिंग वेल तकनीक अपनाई गई. पहले खुदे हुए 9 फीट कुएं को मिट्टी-रोड़ी से भरा. बाद में 4 मीटर गोलाई में नए कुएं की खुदाई शुरू की गई. इसके बाद परत-दर-परत खुदाई कर 55 फीट तक सीमेंट आरसीसी से कुएं का निर्माण किया गया.

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करीब 55 फीट आरसीसी फर्मे को कुएं में 83 फीट तक उतारा गया. नीचे पानी का फ्लो ज्यादा होने और शव की दुर्गंध के कारण प्रतिदिन 1-1 फीट खुदाई करते हुए करीब 7 फीट की खुदाई कर शव तक पहुंचा गया. हार्ड रॉक होने एवं कुएं की चौड़ाई बढ़ाने से मिट्टी का मलबा चार गुना तक ज्यादा निकाला गया.

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कुएं की स्थिति खतरनाक थी. शुरुआती दिनों में रेस्क्यू रोकना पड़ा. पहले जब हम काम कर रहे थे, तो उस समय कुआं 75 फीट तक था. वर्तमान में 90 फीट पर शव मिला है. यानी 15 फीट नीचे शव दफन था. वैल फाउंडेशन से कुएं को मिट्टी से भरा. नया कुआं बनाने की शुरुआत की. पहले 3-3 फीट तक कुएं का निर्माण करते गए. पानी निकलने लगा तो निर्माण की रफ्तार भी धीमी पड़ गई. इसके बाद 1-1 फीट का फाउंडेशन बनाना पड़ा. एसडीआरएफ की टीम भी बुलाई गई. 

एसडीएम देवेंद्र यादव के नेतृत्व में पूरे मिशन को अंजाम दिया. जब रेस्क्यू के दौरान हम 89 फीट पर पहुंचे तब शव की बदबू काफी तेज होने के साथ मिट्टी भी ढहने लगी थी. पानी का प्रवाह तेज हो गया. ऐसी स्थिति में मिशन एक बार के लिए प्रभावित होने लगा था. मगर टीम के सदस्यों ने हिम्मत नहीं हारी और मजदूर के शव को बाहर निकाल लिया गया. 

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