
राजस्थान की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस में एक बार फिर से सियासी खींचतान और घमासान शुरू हो गया. पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट खेमा अपना हक मांगने लगा है. पायलट के साथ-साथ उनके समर्थक विधायकों ने मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियां जल्द करने की आवाज उठानी शुरू कर दी है, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जल्द विस्तार के मूड में नहीं है. पायलट के करीबी विधायक वेदप्रकाश सोलंकी ने सत्ता में अनुसूचित जाति और जनजाति की हिस्सेदारी का मुद्दा उठाया. ऐसे में देखना है कि सीएम अशोक गहलोत इस संकट से कैसे निपटते हैं?
विधायक वेदप्रकाश सोलंकी ने कहा कि अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय का कांग्रेस सरकार गठन में अहम भूमिका रही है. ऐसे में इन समुदाय के विधायकों को जनता से जुड़े दमदार और महत्वपूर्ण विभाग के मंत्री बनाया जाए. उन्होंने कहा कि वर्तमान में अनुसूचित जाति के मंत्रियों को कारखाना बायलर्स, श्रम जैसे विभागों का जिम्मा दिया गया है, जिन्हें कोई जानता तक नहीं है और इन विभागों से आम लोगों का भला भी नहीं किया जा सकता. सोलंकी ने मांग किया है कि एससी और एसटी वर्ग के विधायकों को ऐसे विभाग दिए जाएं, जिससे वे अपने वर्ग का हित कर सकें. चिकित्सा, ऊर्जा, पानी और स्वायत्त शासन जैसे विभाग दिए जाएं.
सोलंकी ने कहा कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बने ढाई साल हो गए हैं. ऐसे में अब मंत्रिमंडल का विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों का काम होना चाहिए.कार्यकर्ताओं की मेहनत से सरकार बनी है. सत्ता का विकेंद्रीकरण जितना होगा पार्टी और कार्यकर्ताओं को उतना ही फायदा होगा. उन्होंने कहा कि पूर्व डिप्टीसीएम सचिन पायलट ने भी यही बात का सुझाव दिया था. विधानसभा में हमने जो बजरी और पुलिस से जुड़े मुद्दे उठाए उनका अब तक समाधान नहीं हुआ है. इसके चक्कर में हम बदनाम हो रहे हैं।
बता दें कि राजस्थान सचिन पायलट ने पिछले साल जुलाई में अपने समर्थक विधायकों के साथ सीएम गहलोत के खिलाफ बगावत का झंडा उठा लिया था, जिसके चलते संकट गहरा गया था. कांग्रेस हाईकमान के हस्ताक्षेप से अगस्त में समझौता हुआ. पायलट-गहलोत के बीच वर्चस्व की जंग को खत्म करने के लिए एक सुलह कमेटी बनी थी, लेकिन अभी तक इस कमेटी की सिफारिशों पर किसी तरह का कोई कदम नहीं उठाया गया है. न तो पायलट को जिन सहयोगियों को मंत्री पद से हटाया गया है, न तो उन्हें लिया गया और न ही सुलह कमेटी के सामने रखी गई मांगों पर भी अब तक कार्रवाई हुई है. ऐसे में पायलट और उनके सहयोगी के सब्र का बांध टूटना लाजमी था.
सचिन पायलट ने बुधवार को पत्रकारों से कहा था कि सुलह कमेटी में जिन तमाम मुद्दों पर सहमति बनी थी, उन पर अब कार्रवाई होनी चाहिए. मुझे नहीं लगता कि अब कोई ऐसा कारण है कि उस कमेटी के निर्णयों के क्रियान्वयन में और अधिक देरी होगी. पायलट ने कहा था कि मुझे सोनिया गांधी पर पूरा विश्वास है, उनके आदेश पर ही कमेटी बनी थी. अब उपचुनाव हो जाएंगे, पांच राज्यों के चुनाव भी हो जाएंगे तो देरी का कोई कारण नहीं बचता. साथ ही उन्होंने दलित वर्ग को मान-सम्मान देने की बात कही थी.
सचिन पायलट ने कहा था कि जहां तक मेरा अपना मानना है कि सरकार को ढाई साल हो चुके हैं, घोषणा पत्र में जो वादे किए थे, कुछ पूरे भी किए हैं और बचे हुए कार्यकाल में वादों को पूरा करने के लिए और गति से काम करना होगा. इसमें राजनीतिक नियुक्तियां हैं, मंत्रिमंडल का विस्तार है. उसमें पार्टी और सरकार मिलकर एकराय बनाएंगे. रमेश मीणा और अन्य विधायकों के दलित आदिवासी विधायकों के साथ भेदभाव का मुद्दा उठाने पर पायलट ने समर्थन किया है. पायलट के बाद उनके सहयोगी विधायक भी उनके सुर में सुर मिलना शुरू कर दिए हैं.
सचिन पायलट ने इशारों में यह भी कह दिया है कि मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों में अब देर नहीं करनी चाहिए. जुलाई में बगावत के बाद खुद पायलट को डिप्टी सीएम पद से और उनके दो समर्थकों विश्वेंद्र सिंह और रमेश मीणा को मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया था. सचिन पायलट खेमा अब मंत्रिमंडल में अपने समर्थक विधायकों के लिए 5 से 6 मंत्री पद बनाने की दावेदारी कर रहा है तो राजनीतिक नियुक्तियों में भी बराबर की भागीदारी मांग रहा है. हालांकि, अब देखना है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत क्या राजनीतिक कदम उठाते हैं?