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सचिन के पिता राजेश पायलट ने भी की थी बगावत, लेकिन नहीं छोड़ी थी कांग्रेस

सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट ऐसे नेता थे, जिन्होंने कांग्रेस की शीर्ष लीडरशिप पर भी सवाल खड़े किए. पार्टी के अंदर रहते हुए उन्होंने सार्वजनिक मंचों से भी पार्टी को आईना दिखाने वाली बातें कहीं, लेकिन राजेश पायलट ने कभी पार्टी नहीं छोड़ी.

राजेश पायलट का साल 2000 में हुआ था निधन राजेश पायलट का साल 2000 में हुआ था निधन
जावेद अख़्तर
  • नई दिल्ली,
  • 13 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 11:54 AM IST

सचिन पायलट के स्वर्गीय पिता राजेश पायलट ने कांग्रेस में रहते हुए एक बार कहा था कि पार्टी में जवाबदेही नहीं रही, पारदर्शिता नहीं रही और कुर्सी को सलाम किया जाने लगा. पार्टी को आईना दिखाने वाला राजेश पायलट का यह बयान सिर्फ एक उदाहरण भर था. ऐसे कई मौके आए जब उन्होंने पार्टी में रहते हुए पार्टी को सार्जवनिक तौर पर नसीहत दी. एक बार तो बात यहां तक पहुंच गई जब राजेश पायलट ने सीधे गांधी परिवार को भी चुनौती दे डाली. लेकिन राजनीति में एंट्री से लेकर अपनी अंतिम सांस तक वो कांग्रेस में ही रहे.

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1945 में जन्मे राजेश पायलट ने करियर के तौर पर भारतीय वायुसेना को चुना. करीब 13 साल उन्होंने सेना की सेवा की और इसके बाद इस्तीफा देकर राजनीति में आने का मन बनाया. राजेश पायलट की एंट्री सीधे गांधी परिवार के जरिए ही राजनीति में हुई और 1980 में उन्होंने राजस्थान की भरतपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीता. पायलट होने के नाते उनकी नजदीकियां संजय गांधी से काफी ज्यादा थीं. हालांकि, बाद में वो राजीव गांधी के भी करीबी रहे और चुनाव जीतते रहे, केंद्र की सत्ता में अपनी भूमिका निभाते रहे. राजीव गांधी की हत्या के बाद जब कांग्रेस में उथल-पुथल मची तो राजेश पायलट भी कई मौकों पर अपने तेवर दिखाते रहे.

इसका सबसे पहला उदाहरण 1997 में देखने को मिला जब राजेश पायलट ने सीताराम केसरी के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ा. कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर चुनाव होना अपने आप में अनोखी घटनी थी. हालांकि, पायलट इसमें सफल नहीं हो पाए और सीताराम केसरी ने अपने दोनों प्रतिद्वंदी शरद पवार और राजेश पायलट को हरा दिया. ये वो वक्त था जब कांग्रेस बिना गांधी परिवार के नेतृत्व के चल रही थी और लगभग बिखरती हुई नजर आ रही थी.

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यही वजह रही कि सोनिया गांधी ने 1997 में कांग्रेस ज्वाइन की और 1998 में वो अध्यक्ष बनीं. 1999 में सोनिया गांधी ने कर्नाटक की बेल्लारी और यूपी की अमेठी सीट से चुनाव जीता. सोनिया के पीएम बनने की चर्चा के बीच शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर जैसे बड़े नेता कांग्रेस से अलग हो गए. राजेश पायलट के रुख को लेकर भी चर्चा रही लेकिन अंतत: वे कांग्रेस के साथ ही बने रहे. हालांकि, कांग्रेस नेतृत्व से धीरे-धीरे उनकी दूरियां बढ़ने लगीं.

नवंबर 2000 में जब बागी नेता जितेंद्र प्रसाद ने कांग्रेस अध्यक्ष पद पर सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा तो राजेश पायलट ने जितेंद्र प्रसाद का साथ दिया. इस बीच 11 जून 2000 को एक सड़क दुर्घटना में राजेश पायलट की मौत हो गई और दूसरी तरफ जितेंद्र प्रसाद चुनाव हार गए और सोनिया गांधी लगातार कांग्रेस अध्यक्ष पद पर बनी रहीं. लेकिन आखिरी वक्त तक कांग्रेस की टॉप लीडरशिप को चुनौती देने के बावजूद राजेश पायलट कांग्रेस में ही बने रहे.

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