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दलित मुद्दा: इन 5 चेहरों का विपक्षी खेमे में होना ही मोदी की टेंशन

पार्टी के आधा दर्जन दलित सांसद अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज मुखर किए हुए हैं. दूसरी ओर पांच राज्यों में दलित नेता भी पार्टी के लिए मुसीबत का सबब बने हुए हैं.

नरेंद्र मोदी के खिलाफ दलितों की गोलबंदी नरेंद्र मोदी के खिलाफ दलितों की गोलबंदी
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 10 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 12:39 PM IST

देश में दलित मतों के सहारे 2019 की सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. दलित मुद्दे पर बीजेपी को अंदर और बाहर घेरने की कवायद हो रही है. पार्टी के आधा दर्जन दलित सांसद अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज मुखर किए हुए हैं. दूसरी ओर पांच राज्यों में दलित नेता भी पार्टी के लिए मुसीबत का सबब बने हुए हैं. दलित नेताओं की घेराबंदी से बीजेपी की सियासी राह कठिन होती जा रही है.

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दलित सियासत का समीकरण

देश में दलित मतदाता किंग मेंकर की भूमिका में हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में करीब 17 फीसदी दलित मतदाता हैं. कुल 542 लोकसभा सीटों में से 84 सीटें एससीएसटी के लिए आरक्षित हैं. जबकि दलित मतदाता देश की 160 लोकसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं. इन सीटों पर दलित मतदाता 20 फीसदी से ऊपर हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 84 आरक्षित सीटों में से 40 सीटों पर जीत दर्ज की थी.

ये पांच दलित चेहरे मोदी के लिए मुसीबत

पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद दलितों के खिलाफ हुई घटनाओं ने दलित नेताओं को बीजेपी के खिलाफ खड़े होने का मौका दे दिया है. इस फेहरिश्त में उत्तर प्रदेश में मायावती, बिहार में जीतनराम मांझी, महाराष्ट्र में प्रकाश अंबेडकर, गुजरात में जिग्नेश मेवाणी और यूपी की जेल में बंद चंद्रशेखर रावण मुख्य चेहरे हैं.

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यूपी में दलित सियासत

दलितों की सबसे बड़ी आबादी उत्तर प्रदेश में है. यूपी में 21 फीसदी दलित मतदाता हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में सूबे की सभी 17 आरक्षित सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. 2017 के विधानसभा चुनाव में आरक्षित 86 विधानसभा सीटों में से 76 सीटें बीजेपी के खाते में गई थीं.

यूपी में मायावती बीजेपी के लिए संकट

सहारनपुर में दलित-राजपूत हिंसा ने बीएसपी सुप्रीमो मायावती को दोबारा से बीजेपी के खिलाफ खड़े होने का मौका दे दिया. इसी मुद्दे पर मायावती ने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद से लगातार वो बीजेपी के लिए मुसीबत का सबब बनी हुई हैं. उपचुनाव में मायावती ने सपा को समर्थन देकर गोरखपुर-फूलपुर में बीजेपी के किले को ध्वस्त कर दिया.

2019 में मोदी के खिलाफ बसपा-सपा में गठबंधन की खिचड़ी पक रही है. हाल ही में एससीएसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के बदलाव के बाद सूबे में भारत बंद के दौरान दलितों का आंदोलन हिंसक हो गया था. इसके बाद दलितों की गिरफ्तारी को लेकर मायावती बीजेपी और मोदी के खिलाफ उग्र तेवर अख्तियार किए हुए हैं. यही वजह रही कि आगरा में संघ ने बीजेपी को दलित समुदाय की नाराजगी को दूर करने की हिदायत दी है.

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चंद्रशेखर रावण दलित युवा नेता

भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ उत्तर प्रदेश में युवा दलितों के रोल मॉडल बन गए हैं. सहारनपुर में दलित-राजपूत हिंसा के आरोप में चंद्रशेखर रावण जेल में हैं. भीम आर्मी के लोग उनके हक की लड़ाई लड़ रहे हैं. सूबे की योगी सरकार ने रावण के खिलाफ रासुका लगा रखा है. यही वजह है कि वो जमानत के बाद भी रिहा नहीं हो पा रहे हैं. बीजेपी विरोधी दलित नेताओं में चंद्रशेखर भी शामिल हैं.

गुजरात में जिग्नेश मेवाणी

गुजरात में दलित राजनीति एक नई राह पर चलती दिख रही है. कभी ये सत्ता का औजार हुआ करती था पर आज उस सत्ता की लगाम अपने हाथ में लेने को बेताब है. राज्य में दलित राजनीति के चेहरे और एजेंडा दोनों बदल गए हैं. ऊना में गाय के नाम पर दलितों की पिटाई के खिलाफ खड़े हुए जिग्नेश मेवाणी सूबे में दलितों का सबसे बड़ा चेहरा बनकर उभर रहे हैं. मोदी विरोधी के रूप में उनकी पहचान बन चुकी है. गुजरात विधानसभा चुनाव में जिग्नेश मेवाणी कांग्रेस के समर्थन से विधायक बने हैं. वे न सिर्फ राज्य में बल्कि बाहर भी दलित मामलों को लेकर मुखर हैं और बीजेपी और मोदी के खिलाफ माहौल बनाने की कवायद में जुटे हैं.

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दलितों की नाराजगी का नुकसान

गुजरात की जनसंख्या में दलित आबादी महज 7 फीसदी है और यह समुदाय चुनाव परिणाम बदलने में सक्षम नहीं है. लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर दलित बहुत बड़ी चुनावी ताकत हैं. राज्य में दलित मतों के सहारे बीजेपी लंबे समय तक सत्ता के शीर्ष पर बनी हुई है. पिछले साल विधानसभा चुनाव में दलितों की नाराजगी का नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ा. इसी का नतीजा था कि राज्य में बीजेपी 100 का आंकड़ा नहीं छू सकी.

महाराष्ट्र का दलित समीकरण

महाराष्ट्र दलित सियासत का बड़ा केंद्र रहा है. महाराष्ट्र में 10.5 फीसदी दलित आबादी है. इसमें से विदर्भ में सबसे ज्यादा 23 फीसदी दलितों की संख्या है. राज्य की विधानसभा की बात करें तो तकरीबन हर विधानसभा में औसतन 15,000 दलित मतदाता हैं, जबकि महाराष्ट्र की 38 लोकसभा सीटों में से 15 सीटों पर दलित मतदाता जीत हार तय करते हैं.

महाराष्ट्र में प्रकाश अंबेडकर

महाराष्ट्र में भीमा-कोरेगांव हिंसा से दलित समुदाय बीजेपी से नाराज है. प्रकाश अंबेडकर राज्य में दलितों के मजबूत चेहरा बनकर उभर रहे हैं. प्रकाश अंबेडकर डॉ. भीमराव अंबेडकर के पोते हैं. बीजेपी को लेकर सख्त रवैया अख्तियार किए हुए हैं. महाराष्ट्र का दलित समाज अन्य राज्यों की तुलना में अधिक पढ़ा-लिखा और जागरुक है. महाराष्ट्र में दलितों की नाराजगी बीजेपी के लिए टेंशन पैदा कर रही है.

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बिहार दलित समीकरण

बिहार में 10 फीसदी दलित मतदाता हैं. 2014 के चुनाव में राज्य की 40 लोकसभा सीटों में से एनडीए ने 31 सीटों पर कब्जा जमाया था. इनमें से बीजेपी को मिली थीं 22 सीटें, पासवान की एलजेपी को 6 और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी को 3 सीटें मिली थीं.

बिहार में दलित चेहरा जीतनराम मांझी

रामविलास पासवान इस राजनीति के कभी चैंपियन हुआ करते थे. वक्त और सियासत ने पासवान को ऐसे मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है कि बिना किसी दल के सहारे के वो दो कदम आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं. पासवान बीजेपी के लिए ढाल बन रहे हैं तो वहीं एनडीए का साथ छोड़कर जीतनराम मांझी इन दिनों कांग्रेस खेमे में अपना ठिकाना तलाश रहे हैं. राज्य में बीजेपी-नीतीश की साझा सरकार है और बिहार दलित अत्याचार के मामलों में तीसरे स्थान पर है, जिससे मांझी को सियासी जमीन बनाने का मौका मिल गया है. मांझी आजकल बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाने की कवायद में जुटे हैं.

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