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नेशनल फ्रंट: ममता और KCR से कितनी अलग है नायडू की पहल?

कभी एनडीए के संयोजक रहे चंद्रबाबू नायडू इन दिनों एनडीए के खिलाफ राजनीतिक दलों को एकजुट करने में जुटे हैं. ऐसी कोशिशें ममता बनर्जी और केसीआर भी कर चुके हैं, लेकिन दोनों की पहले में काफी अंतर है.

ममता बनर्जी और चंद्रबाबू नायडू (फोटो-indiatoday) ममता बनर्जी और चंद्रबाबू नायडू (फोटो-indiatoday)
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 30 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 1:05 PM IST

लोकसभा चुनाव 2019 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए को मात देने के लिए तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के अध्यक्ष एन चंद्रबाबू नायडू विपक्षी दलों को एकजुट करके 'नेशनल फ्रंट' बनाने की कवायद में जुटे हैं. नायडू विपक्षी दलों के साथ 10 दिसंबर को दिल्ली में बैठक करने जा रहे हैं.

हालांकि, इससे पहले टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और टीआरएस अध्यक्ष व तेलंगाना के सीएम केसीआर भी नेशनल फ्रंट बनाने की पहल कर चुके हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर नायडू की कोशिश ममता-केसीआर से कितनी अलग है?

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एनडीए से नाता तोड़कर अलग हुए नायडू ने कांग्रेस के साथ गैर-बीजेपी दलों को लेकर नेशनल फ्रंट बनाने की पहल की है. इतना ही नहीं, तेलंगाना विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है.

नायडू ने विपक्षी दलों के नेताओं के साथ मुलाकात का सिलसिला भी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मिलकर शुरू कर चुके हैं. नायडू ने गुरुवार को एक कार्यक्रम में कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूपीए प्रस्तावित नेशनल फ्रंट का हिस्सा होगा. इतना ही नहीं, उन्होंने कहा कि एनडीए के कुछ दलों को भी नेशनल फ्रंट में शामिल कराने के लिए आमंत्रित करेंगे.

नायडू ने कहा कि नेशनल फ्रंट राजनीतिक दलों का एक संघ होगा, जिसमें यूपीए के साथ जुड़े दल भी हिस्सा होंगे. इसके अलावा कई ऐसी पार्टियां हैं, जो न तो यूपीए और न ही एनडीए का हिस्सा हैं. उन्हें भी इस फ्रंट से जोड़ने की हमारी कोशिश है.

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जबकि, टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी और केसीआर जो नेशनल फ्रंट बनाने की कवायद शुरू की थी, उसमें कांग्रेस को हिस्सा नहीं बनाया गया था. ममता विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात करने के बाद आखिरी में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और सोनिया गांधी से मुलाकात की थी. वो चाहती थी कि उनके फ्रंट को कांग्रेस समर्थन करें और साथ ही साथ जो दल जिस राज्य में मजबूत हैं, वहां पर उसके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाए.

वहीं, केसीआर ने गैर-कांग्रेस और गैर-बीजेपी दलों को मिलकर गठबंधन बनाने की कवायद शुरू की थी. इसी मद्देनजर उन्होंने ऐसे ही दलों के नेताओं के साथ मुलाकात कर साथ आने का न्योता दिया था. केसीआर किसी भी सूरत में कांग्रेस को अपने गठबंधन का हिस्सा नहीं बनाना चाहते थे.

इससे साफ जाहिर है कि ममता जहां कांग्रेस से समर्थन चाहती थी. वहीं, केसीआर कांग्रेस के बगैर गठबंधन बनाने में जुटे थे. जबकि इन दोनों नेताओं से अलग चंद्रबाबू नायडू कांग्रेस को लेकर विपक्षी दलों को एकजुट करने में लगे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि नायडू अपनी कोशिशों में कितना कामयाब होते हैं?

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