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आतंक से निपटने के लिए नाकाफी है मुंबई पुलिस की तैयारी

26/11...4 साल पहले की यह तारीख अभी भी नासूर बनकर हिंदुस्तान को चुभती है. पाकिस्तान से आए 10 आतंकियों के खूनी खेल की यादें आज भी हर किसी को सहमा देती है, लेकिन आपको यह जानकर बेहद हैरानी होगी कि भविष्य में ऐसी ही आपात स्थिति से निपटने के लिए तैयारियों में अभी भी जबरदस्त खामियां हैं.

aajtak.in
  • मुंबई/नई दिल्‍ली,
  • 26 नवंबर 2012,
  • अपडेटेड 7:15 PM IST

26/11...4 साल पहले की यह तारीख अभी भी नासूर बनकर हिंदुस्तान को चुभती है. पाकिस्तान से आए 10 आतंकियों के खूनी खेल की यादें आज भी हर किसी को सहमा देती है, लेकिन आपको यह जानकर बेहद हैरानी होगी कि भविष्य में ऐसी ही आपात स्थिति से निपटने के लिए तैयारियों में अभी भी जबरदस्त खामियां हैं.

अब तक नहीं लिया कोई सबक
ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या हमने अबतक 26/11 से सबक नहीं लिया है? 26 नवंबर, 2008 को 10 आतंकवादियों की बंदूकों से निकली गोलियों मुंबई में डेढ़ सौ से ज्यादा बेगुनाहों के सीने को छलनी कर दिया था. मुंबई और देश के दूसरे इलाके फिर से जख्मी न हों, इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार ने मुंबई हमले के बाद किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए पुख्ता तैयारियों के तमाम दावे किए.

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मुंबई हमले की चौथी बरसी के ठीक एक दिन पहले मुंबई के पुलिस कमिश्नर ने भी यही भरोसा दिया कि देश की आर्थिक राजधानी अब पूरी तरह से महफूज है. मायानगरी की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालने वाले अफसर ने सुरक्षा की गारंटी तो पेश कर दी, लेकिन 4 साल बाद भी कुछ सवाल वहीं के वहीं खड़े हैं.

कई उपकरण पड़े हैं बेकार
26/11 के बाद मुंबई पुलिस को मिली सभी 27 स्पीड बोट्स गड़बड़ स्थिति में बेकार पड़ी हैं. जमीन और पानी, दोनों में चलने वाली 14 एम्फीबियन गाड़ियां में से 5 या तो आउट ऑफ ऑर्डर हैं. तटीय सुरक्षा के लिए अब भी पेट्रोल बोट की मांग की जा रही है. सूत्र यह भी बताते हैं कि जिन पुलिसकर्मियों की नियुक्ति समुद्री सुरक्षा के लिए की गई है, उनमें से कई बिना प्रशिक्षण के तैरना भी नहीं जानते हैं.

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अस्‍पतालों में आपातकालीन सुविधा नदारद
मुंबई में 800 करोड़ की योजना से 6000 सीसीटीवी कैमरों को लगाने का दावा किया गया, लेकिन अभी भी इसे लागू करने के लिए 1 साल का वक्त लगेगा. 4 साल बाद अभी भी मुंबई के कई बड़े अस्पताल किसी आपात स्थिति से निपटने के लिए सुविधाओं के लिहाज से तैयार नहीं हैं. राज्य सरकार ने जिस इंटेलिजेंस एकेडेमी की स्थापना की, उसमे शामिल 200 में से 75 विशेषज्ञों ने एकेडेमी छोड़ दी.

बम स्कॉएड को जितने बम निरोधक सूट और खोजी कुत्तों की दरकार है, वो अभी तक पूरी नहीं हुई है. नेशनल सिक्योरिटी गार्ड यानी एनएसजी की तर्ज पर राज्य सरकार की बनाई हुई फोर्स वन के पास मुंबई में ट्रेनिंग सेंटर भी नहीं है. और तो और, समुद्री सीमा की सुरक्षा के लिए बनाई गई सगारी पुलिस स्टेशन आज भी अपनी बिल्डिंग के अभाव में सरकारी मकान में काम कर रहा है, जबकि दो पुलिस स्टेशनों में अभी भी 1180 पुलिसकर्मियों की कमी है.

भरोसे के लायक नहीं है तैयारी
इन बातों से यह साफ हो जाता है कि 26/11 से सरकार ने क्या और कितना सबक लिया है. हालांकि शहर को सुरक्षित बनाने के लिए कुछ कदम भी जरुर उठाए गए हैं. जैसे कि पुलिस स्टेशन स्तर पर इंटेलिजेंस सेल बनाए गए हैं. पुलिस के खास दस्ते को एके 47 और एमपी 5 सबमशीन गन से लैस किया गया है. पिछले एक साल में पुलिस ने 3000 बुलेटप्रूफ जैकेट खरीदे हैं. 90 रेलवे स्टेशनों पर करीब 1500 सीसीटीवी कैमरों को लगाया जा चुका है. लेकिन क्या इतने भर से ही सरकार और प्रशासन किसी दूसरे आतंकी हमले को रोकने का भरोसा जता सकता है?

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सरकार कह रही है कि ग्लास आधा भरा है, लेकिन शायद उसे यह नजर नहीं आ रहा है कि ग्लास आधा खाली भी है. आखिर इस हालात में मुंबई कैसे सो सकती है सुकून से?

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