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गलवान के जिस 800 मीटर हिस्से पर चीन कर रहा था दावा, उस पर 61 साल पहले बनी थी सहमति

चीन की तरफ से गलवान घाटी के 800 मीटर वाले इलाके पर पहली बार दावा इसी साल अप्रैल महीने में हुई बटालियन लेवल की मीटिंग में किया गया था. जिसके बाद भारत ने गलवान और श्योक नदी के संगम स्थल पर पुल बनाना शुरू कर दिया था.

चीन गलवान के इस हिस्से पर कर रहा था दावा चीन गलवान के इस हिस्से पर कर रहा था दावा
शिव अरूर
  • नई दिल्ली,
  • 06 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 12:15 AM IST

  • अप्रैल-2020 में चीन ने किया था दावा
  • 61 साल पुरानी है विवाद की जड़

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच रविवार को टेलीफोन पर हुई बातचीत के बाद चीन नियंत्रण रेखा (एलएसी) से सैनिकों के जल्द से जल्द पीछे हटाने पर सहमत हो गया है. दोनों देशों के बीच जिस जगह को लेकर तकरार की स्थिति थी वो थी पेट्रोल प्वाइंट 14. इसी जगह पर चीनी सैनिकों की तरफ से ढांचा खड़ा कर दिया गया था, जिसके बाद खूनी संघर्ष हुआ और भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए. इस प्वाइंट को लेकर अब स्पष्ट हो गया है चीन ने भारतीय सीमा के अंदर 800 मीटर के इलाके पर अपना दावा किया हुआ था.

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चीन की तरफ से गलवान घाटी के 800 मीटर वाले इलाके पर पहली बार दावा इसी साल अप्रैल महीने में हुई बटालियन लेवल की मीटिंग में किया गया था. जिसके बाद भारत ने गलवान और श्योक नदी के संगम स्थल पर पुल बनाना शुरू कर दिया था. हालांकि 15 जून की हिंसक लड़ाई का संबंध हाल के किसी घटना से नहीं है. बल्कि इसकी पटकथा 61 साल पहले ही लिख दी गई थी और भारतीय फौज इस बात को लेकर पूरी तरह से जागरुक थी.

दरअसल, 1959 में भारत और चीन के बीच पेट्रोल प्वाइंट 14 को लेकर एक आम सहमति बनी थी, जिसके बाद से कई सालों तक यहां पर दोनों सेनाओं के बीच कभी भी संघर्ष की स्थिति नहीं बनी. यानी कि अप्रैल 2020 में चीन ने भारत के जिस 800 मीटर हिस्से पर अपना दावा किया है, उसपर 61 साल पहले ही सहमति बन चुकी थी.

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ऐसे में एक बार फिर जब गलवान घाटी से सैनिकों को पीछे हटाने की खबर आई तो 1962 का एक पेपर कटिंग सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा. इस अखबार की हेडलाइन थी- 'गलवान पोस्ट से चीन हटाएगा सैनिक.' इसमें यह भी लिखा गया है कि दिल्ली की चेतावनी का असर दिख रहा है.

इस हेडलाइन से कुछ नहीं तो कम से कम हमें सावधान रहने का संदेश जरूर मिल गया है, क्योंकि इसके ठीक 91 दिन बाद 1962 का युद्ध हुआ था, जिसमें चीन ने गलवान और कई हिस्सों पर अपनी सेना भेज दी थी.

जाहिर है 15 जून की झड़प के बाद से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल लगातार सेना की मदद से हालात पर नजर बनाए हुए हैं, जिसके बाद अब हालात ठीक होते नजर आ रहे हैं. दोनों विशेष प्रतिनिधि इस बात पर सहमत हो गए हैं कि हमारे नेताओं द्वारा सीमा पर शांति बहाल के लिए बनी सहमति के रास्ते से ही आगे बढ़ना चाहिए.

दोनों देशों के बीच बनी सहमति!

विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए कि शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा से सैनिकों का पूरी तरह पीछे हटाना और सीमावर्ती क्षेत्रों में तनाव में कमी सुनिश्चित करना आवश्यक है.

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डोभाल और वांग इस बात पर भी सहमत हुए कि दोनों पक्षों को एलएसी से पीछे हटने की जारी प्रक्रिया को तेजी से पूरा करना चाहिए और भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में तनाव कम करने के लिए दोनों पक्षों को चरणबद्ध कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए.

डोभाल ने दो घंटे फोन पर की बात और पीछे हटने को राजी हो गया चीन

विदेश मंत्रालय ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने रविवार को टेलीफोन पर बात की, जिसमें वे वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से सैनिकों के जल्द से जल्द पीछे हटाने पर सहमत हुए. बता दें कि डोभाल और वांग दोनों देशों के बीच सीमा वार्ता से संबंधित विशेष प्रतिनिधि हैं. विदेश मंत्रालय ने एक बयान में इस बातचीत को 'खुली और विचारों का व्यापक आदान-प्रदान' बताया और कहा कि डोभाल और वांग इस बात पर सहमत हुए कि दोनों पक्षों को एलएसी से सैनिकों के पीछे हटाने की प्रक्रिया को 'तेजी से' पूरा करना चाहिए.

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