
आगरा की यात्रा दो चीजों के बिना अधूरी रहती है. इनमें से एक प्रेम के प्रतीक ताजमहल का दर्शन है तो दूसरा आगरा का मशहूर पेठा है. रेलवे अधिकारियों व निजी विक्रेताओं की खींचतान के बीच बीते दो साल से रेलवे स्टेशन पर आगरा के पेठे की बिक्री बंद है और यात्रियों को अपना मुंह मीठा किए बिना ही यहां से गुजरना पड़ रहा है.
रेलवे स्टेशन पर पेठे की बिक्री पर लगा प्रतिबंध हटाने की मांग को लेकर मंडल रेल प्रबंधक (डीआरएम) देवेश मिश्रा से मुलाकात के लिए पहुंचे पेठा निर्माताओं के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने वाले मदन गर्ग ने बताया, ‘यह यहां से गुजरने वाले पर्यटकों के साथ अन्याय है. उन्हें आगरा के स्टेशनों पर एक-दो किलो पेठा खरीदने की इजाजत नहीं दी जा रही है.’
रेलवे ने पूरे आगरा क्षेत्र में पेठे की आपूर्ति का ठेका एक निजी कम्पनी को दिया था लेकिन इस कम्पनी ने कुछ शर्ते पूरी नहीं कीं और अड़चनें पैदा होने लगीं. अब मामला अदालत में लम्बित है.
पूर्व केंद्रीय उप मंत्री व समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय महासचिव रामजी लाल सुमन ने उत्तर केंद्रीय रेलवे के महाप्रबंधक को एक पत्र लिखकर कहा है कि पेठे की बिक्री पर रोक लगाना स्पष्ट रूप से यात्रियों के अधिकारों का हनन है.
बृज मंडल हेरिटेज कन्जर्वेशन सोसायटी के अध्यक्ष सुरेंद्र शर्मा कहते हैं, ‘रेलवे को या तो स्थानीय दुकानदारों को वहां अपनी दुकानें लगाने की इजाजत देनी चाहिए या स्टेशन पर खुद की दुकानें खोलनी चाहिए.’
उन्होंने कहा, ‘अनधिकृत विक्रेता मथुरा व आगरा के बीच रेलगाड़ियों में घूम-घूमकर यात्रियों को पेठा बेचते हैं. हर रोज उनमें से कई को पकड़ लिया जाता है और उन पर जुर्माना ठोका जाता है.’
इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कार्पोरेशन लिमिटेड (आईआरसीटीसी) ने आगरा छावनी स्टेशन पर पेठे की एक दुकान खोली है लेकिन यह अकेली दुकान काफी नहीं है.
स्टेशन पर एक कुली रामपाल ने बताया, ‘रेलगाड़ियां बहुत कम समय के लिए रुकती हैं इसलिए यात्री पेठा खरीदने के लिए दुकान तक जाने का जोखिम नहीं उठा सकते. लोग हमसे पूछते हैं कि पेठा कहां से खरीदें लेकिन जब हम उनसे रेलगाड़ी से नीचे उतरकर दुकान तक जाकर पेठा खरीदने के लिए कहते हैं तो वे इसमें संकोच करते हैं.’
रेलवे अधिकारी छह महीने पहले महिला समूहों, सहकारी समूहों और स्वंयसेवी संगठनों को स्टेशनों पर अपनी-अपनी दुकानें खोलने के लिए मंजूरी देने के लिए सहमत हो गए थे लेकिन इस दिशा में अब तक कुछ नहीं हुआ है.