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इलाहाबाद उच्च न्यायालय शीर्ष अदालत से कहेगा, यहां कुछ भी ‘खराबी’ नहीं

उच्चतम न्यायालय की एक पीठ की तल्खी को गंभीरता से लेते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आज फैसला किया कि वह अपनी अदालत में ‘खराबी होने’ संबंधी टिप्पणी को हटाने की मांग करती एक याचिका शीर्ष अदालत में दाखिल करेगा.

भाषा
  • इलाहाबाद,
  • 03 दिसंबर 2010,
  • अपडेटेड 10:12 PM IST

उच्चतम न्यायालय की एक पीठ की तल्खी को गंभीरता से लेते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आज फैसला किया कि वह अपनी अदालत में ‘खराबी होने’ संबंधी टिप्पणी को हटाने की मांग करती एक याचिका शीर्ष अदालत में दाखिल करेगा.

सूत्रों ने आज बताया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने 26 नवम्बर को एक बैठक कर उच्चतम न्यायालय की एक पीठ की उच्च न्यायालय की कार्यप्रणाली और उसकी ईमानदारी पर सवाल उठाती टिप्पणी पर नाराजगी जाहिर की. बैठक में फैसला किया गया कि इस तरह की टिप्पणियां हटाने के लिये उच्चतम न्यायालय में अर्जी दाखिल की जायेगी.

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उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक स्थगनादेश के खिलाफ अपील पर बीते सप्ताह सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मार्कंडेय काट्जू और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय की पीठ ने कहा था कि ‘शेक्सपीयर ने हेमलेट में कहा था कि डेनमार्क में कुछ गड़बड़ है और इसी तरह इलाहाबाद उच्च न्यायालय में भी कुछ गड़बड़ हो रही है’.

पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से ‘सुधारे नहीं जा सकने वालों का तबादला करने’ की सिफारिश सहित कुछ कड़े उपाये करने को भी कहा था.{mospagebreak}

उच्चतम न्यायालय ने अपने 12 पृष्ठ के आदेश में परोक्ष रूप से कहा था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के कई न्यायाधीश ‘अंकल जज सिंड्रोम’ से पीड़ित हैं, जिसके मायने उन न्यायाधीशों से हैं जो अपने परिचित वकीलों की पैरवी वाले पक्षों के अनुकूल आदेश देते हैं. इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता रवि किरण जैन ने कहा कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को अवमानना याचिका दाखिल करनी चाहिये.

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उन्होंने कहा कि इस तरह के नोटिस से बच निकलने का कोई कारण नहीं है. ..उच्च न्यायालय के पास इस नुकसान की भरपाई करने का एक ही रास्ता है और वह है उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को अवमानना नोटिस देना.

जैन ने कहा, ‘इन टिप्पणियों को हटाने के लिये पुनरीक्षा याचिका दाखिल करना इसका समाधान नहीं है. नुकसान पहले ही हो चुका है और इसकी तभी और सिर्फ तभी भरपाई हो सकती है जब कारण बताओ नोटिस जारी किया जाये.’ उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एक सदस्यीय पीठ के उस आदेश को निरस्त करते हुए यह तल्ख टिप्पणी की थी जिसमें अदालत ने बहराइच स्थित वक्फ बोर्ड को उसकी भूमि के एक हिस्से को इस वर्ष मई-जून में एक सर्कस को आवंटित करने को कहा था ताकि सर्कस का मालिक वहां सालाना मेले में शो कर सके.{mospagebreak}

न्यायमूर्ति काटजू और न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा था, ‘‘इस तरह के चौंका देने वाले आदेश से देश में आम आदमी का भरोसा डिगा है. हमें कहते हुए अफसोस हो रहा है लेकिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय के कुछ न्यायाधीशों के खिलाफ उनकी ईमानदारी को लेकर हमारे पास कई शिकायतें आ रही हैं.’

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