
सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून में प्रस्तावित संशोधन के खिलाफ केंद्रीय सूचना आयोग के अंदर मतभेद उभर कर सामने आए हैं. कई लोगों की दलील है कि प्रस्तावित संशोधन से सूचना आयोग 'कमजोर' होंगे. एक सूचना आयुक्त ने पैनल से आग्रह किया है कि वह विवादित संशोधित विधेयक को वापस लेने के लिए सरकार को पत्र लिखे.
मुख्य सूचना आयुक्त आर के माथुर अवकाश पर हैं. घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने बताया कि सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलू ने 19 जुलाई को वरिष्ठतम आयुक्त यशोवर्धन आजाद को पत्र लिखा और उनसे इस विषय पर सभी सूचना आयुक्तों की एक बैठक बुलाने को कहा है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक पत्र में यह भी कहा गया है कि प्रस्तावित संशोधन का इरादा आरटीआई कानून , 2005 के मूल मकसद को समाप्त करना है. पत्र में यह भी कहा गया है कि यह भारतीय संविधान की मूल विशेषता के रूप में स्थापित संघवाद के प्रति तिरस्कार भी है.
सूत्रों ने कहा कि आचार्युलू की मांग पर अभी फैसला नहीं हुआ है. आचार्युलू ने मुख्य सूचना आयुक्त से अनुरोध किया कि वह सरकार को एक आधिकारिक पत्र भेज कर सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक 2018 वापस लेने को कहें.
बता दें कि केंद्र सरकार ने सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक , 2018 को सार्वजनिक कर दिया है. विधेयक के अनुसार केंद्रीय सूचना आयुक्तों और राज्य सूचना आयुक्तों का वेतन और उनके कार्यकाल को केंद्र सरकार द्वारा तय करने का प्रावधान रखा गया है.
अभी तक मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त का वेतन मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त के वेतन के बराबर मिलता था. वहीं राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त का वेतन चुनाव आयुक्त और राज्य सरकार के मुख्य सचिव के वेतन के बराबर मिलता था.
आरटीआई एक्ट के अनुच्छेद 13 और 15 में केंद्रीय सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों का वेतन, भत्ता और अन्य सुविधाएं निर्धारित करने की व्यवस्था दी गई है. केंद्र की मोदी सरकार इसी में संशोधन करने के लिए बिल लेकर आ रही है.