
आधार कार्ड की अनिवार्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपना फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड को कुछ शर्तों के साथ संवैधानिक करार दिया है. आइए जानते हैं कि Aadhaar जैसा कार्ड बनाने का विचार सबसे पहले कब और क्यों आया...
आधार असल में एक प्रोजेक्ट का नाम है जिसके तहत सभी नागरिकों और निवासियों (180 दिन से ज्यादा रहने वाले) को उनके बायोमेट्रिक विवरण के आधार पर एक विशिष्ट पहचान प्रदान किया जाता है. यह पहचान सरकार नियंत्रित एक भंडार यूनीक आइडेन्टीफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (UIDAI) में सुरक्षित रखी जाती है. यह दुनिया का सबसे बड़ा बायोमेट्रिक प्रोजेक्ट है.
असल में Aadhaar परियोजना का विचार सबसे पहले करगिल युद्ध के बाद आया था. भारत की सीमा में पाकिस्तानी सेना की अचानक घुसपैठ से भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े लोग भौंचक्के रह गए थे. इस घुसपैठ की वजह से ही 1999 का करगिल युद्ध हुआ था. इसके बाद तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने करगिल युद्ध की समीक्षा के लिए एक कमिटी गठित की थी.
करगिल रीव्यू कमिटी के अध्यक्ष के. सुब्रह्मण्यम थे, जो कि एक रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट, कॉलमिस्ट और सामरिक मामलों के विशेषज्ञ थे. इस कमिटी के अन्य सदस्यों में वरिष्ठ पत्रकार बी.जी. वर्गीज, ब्यूरोक्रेट सतीश चंद्रा और रिटायर्ड सैन्य अधिकारी के.के हजारी शामिल थे.
करगिल रीव्यू कमिटी ने साल 2000 में यह सुझाव दिया था कि सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले भारतीय नागरिकों को तत्काल आईडी कार्ड जारी किए जाएं और बाद में इस प्रक्रिया को पूरे देश में शुरू किया जाए. इसके बाद कमिटी की सिफारिशों को समझने के लिए एक मंत्री समूह (GoM) का गठन किया गया जिसने राष्ट्रीय सुरक्षा प्रणाली में सुधार के लिए साल 2001 में अपनी रिपोर्ट दी. जीओएम ने कहा कि अवैध घुसपैठ की समस्या गंभीर हो गई है और भारत में रहने वाले सभी नागरिकों और गैर नागरिकों के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होना चाहिए.
जीओएम ने कहा कि सभी नागरिकों को एक मल्टी परपज नेशनल आइडेंडिटी कार्ड (MNIC) दिया जाए और गैर नागरिकों को अलग रंग का आई कार्ड जारी किया जाए.
यूपीए सरकार ने दिया आधार नाम
इसके दो साल बाद अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने MNIC प्रोजेक्ट पर गंभीरता से काम शुरू किया. साल 2003 में 1955 के नागरिकता एक्ट में बदलाव किया गया और MNIC पर काम शुरू हुआ, लेकिन 2004 में सरकार बदल गई. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाले यूपीए सरकार ने भी इस पर काम शुरू किया, लेकिन इसे सिर्फ गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों (BPL) को मिलने वाले लाभ कार्यक्रमों से ही जोड़ा गया.
साल 2007 में पहली बार MNI कार्ड जारी किए गए. लेकिन इस प्रोजेक्ट का नाम बदलकर नेशनल अथॉरिटी फॉर यूनीक आइडेंटिटी (NAUID) कर दिया गया. साल 2011 में 26 सितंबर के मुंबई हमले में पाकिस्तानी आतंकियों के हमले में 160 से ज्यादा लोग मारे गए. इसके बाद NAUID पर काम तेज कर दिया गया. जनवरी 2009 में तत्कालीन योजना आयोग के नोटिफिकेशन के द्वारा अंतत: NAUID की स्थापना की गई. बाद में इसका नाम बदलकर UIDAI कर दिया गया और इसके तहत दिए जाने वाले कार्ड का नाम Aadhaar कार्ड कर दिया गया.
आधार को चुनौती
लेकिन आधार को कर्नाटक हाईकोर्ट में इस बिना पर चुनौती दी गई कि यह नागरिकों के मूल अधिकारों का हनन करता है. इससे सरकार बैकफुट पर आ गई. साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को इस केस में प्रतिवादी बना दिया. सुप्रीम कोर्ट ने आधार पर आई सभी याचिकाओं को एक साथ जोड़ दिया. Aadhaar को कानूनी मुहर प्रदान करने के लिए यूपीए सरकार के पास पर्याप्त संख्या नहीं थी.
इसके बाद 2014 में केंद्र में मोदी सरकार आ गई. साल 2016 में नरेंद्र मोदी सरकार ने आधार बिल को लोकसभा में पेश किया और राज्यसभा में अपनी पर्याप्त संख्या न होने की वजह से इसे मनी बिल के रूप में पेश किया गया. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इसे मनी बिल के रूप में पेश करने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने इसे भी Aadhaar की वैधानिकता को चुनौती देने वाले सभी केस के साथ क्लब कर दिया था.
38 दिनों तक चली सुनवाई
इस मामले की सुनवाई 17 जनवरी, 2018 को शुरू हुई थी जो 38 दिनों तक चली. आधार से किसी की निजता का उल्लंघन होता है या नहीं, इसकी अनिवार्यता और वैधता के मुद्दे पर 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने अपना फैसला सुनाया. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण की 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने इस मामले की सुनवाई की.