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आसान नहीं था आधार पर फैसला, इन 3 कसौटियों पर उतरना पड़ा खरा!

आधार की अनिवार्यता पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. इस मामले पर पिछले कई वर्षों से देश में बहस जारी थी.

आधार बनवाने के दौरान एक महिला (फाइल फोटो, रॉयटर्स) आधार बनवाने के दौरान एक महिला (फाइल फोटो, रॉयटर्स)
मोहित ग्रोवर
  • नई दिल्ली,
  • 27 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 9:09 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को आधार की अनिवार्यता पर ऐतिहासिक निर्णय सुनाया. सर्वोच्च अदालत ने कुछ शर्तों के साथ आधार को संवैधानिक करार दिया है. आधार मामले पर फैसला इतना आसान नहीं रहा, इसे 9 न्यायाधीशों द्वारा निर्धारित किए गए मानदंडो पर परखा गया.

कितना मुश्किल आधार का फैसला?

नौ न्यायाधीशों की पीठ ने तीन कसौटियां निर्धारित की थी जिसे किसी कानून की वैधता के लिये निजता के हनन की स्वीकृत सीमा पर फैसला करने के लिये पूरा करने की आवश्यकता होती है.

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कोर्ट ने कहा है कि निजता का एक स्वीकृत सीमा तक हनन किया जा सकता है अगर कल्याणकारी कदम कानून से समर्थित हों और ‘राज्य का वैध हित हो.’ साथ ही इसे ‘आनुपातिकता की कसौटी’ पर खरा उतरना चाहिये.

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आधार कानून की वैधता को बरकरार रखते हुए कहा कि यह निजता मामले में सुनाए गए फैसले की तीन कसौटियों पर खरा उतरता है.

1. कल्याणकारी कदम कानून से समर्थित हो

2. राज्य का वैध हित हो

3. आनुपातिकता की कसौटी

सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या है?

उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को अपने फैसले में केन्द्र की महत्वाकांक्षी योजना आधार को संवैधानिक रूप से वैध करार दिया लेकिन उसने बैंक खाते, मोबाइल फोन और स्कूल दाखिले में आधार अनिवार्य करने सहित कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया.

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प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने बहुमत के आधार पर दिये अपने फैसले में आधार को आयकर रिटर्न भरने और पैन कार्ड बनाने के लिए अनिवार्य बताया. हालांकि, अब आधार कार्ड को बैंक खाते से लिंक करना जरूरी नहीं है और मोबाइल फोन का कनेक्शन देने के लिए टेलीकॉम कंपनियां लोगों से आधार नहीं मांग सकतीं.

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