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चिकित्सा उपकरणों के क्षेत्र में संवर्धन और विनियमन साथ-साथ होने चाहिए: अनंत कुमार

केंद्रीय रसायन एंव उर्वरक और संसादीय कार्य मंत्री, अनंत कुमार ने कहा है कि गरीबों को किफायती स्वास्थय सेवाएं मुहैया कराने के लिए चिकित्सा उपकरणों के क्षेत्र में संवर्धन और विनियमन साथ-साथ होने चाहिए.

गरीबों को किफायती स्वास्थय सेवाएं मुहैया होंगी गरीबों को किफायती स्वास्थय सेवाएं मुहैया होंगी
अशोक सिंघल/अमित रायकवार
  • नई दिल्ली,
  • 03 सितंबर 2016,
  • अपडेटेड 12:25 PM IST

केंद्रीय रसायन एंव उर्वरक और संसादीय कार्य मंत्री, अनंत कुमार ने कहा है कि गरीबों को किफायती स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने के लिए चिकित्सा उपकरणों के क्षेत्र में संवर्धन और विनियमन साथ-साथ होने चाहिए. दिल्ली में आयोजित नौवें चिकित्सा प्रौद्योगिकी सम्मेलन में उन्होंने कहा कि मुनाफा कमाने और पैसा बनाने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए चिकित्सा उपकरणों के क्षेत्र में विनियमन आवश्यक है, ताकि गरीबों को सही चिकित्सा सुविधाएं दी जा सके.

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गरीबों को अच्छी चिकित्सा सुविधाएं दी जा सकें
अनंत कुमार ने कहा कि कार्डियक (हृदय संबंधी) स्टेंट को पहले ही आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची में शामिल कर लिया गया है और जल्द ही इसे डीपीसीओ के तहत लाया जाएगा. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण आगे की कार्रवाई करने से पहले हितधारकों के साथ सलाह-मशविरा करेगा. मंत्री ने कहा कि सरकार देश में चिकित्सा उपकरणों के क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए अनेकानेक कदम उठा रही है. प्रतिलोमित (इन्‍वर्टेड) शुल्क ढांचे को दुरुस्‍त कर दिया गया है.

1200 करोड़ रुपए का निवेश होगा
1200 करोड़ रुपये के निवेश के साथ प्रथम चिकित्सा प्रौद्योगिकी पार्क को पहले ही आंध्र प्रदेश के विशाखापत्‍तनम में स्थापित कर दिया गया है. हिमाचल प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना एवं महाराष्ट्र ने भी इस तरह के पार्कों की स्थापना में दिलचस्पी दिखाई है, और भारत सरकार इन प्रयासों का समर्थन करने को तैयार है. उन्होंने कहा कि इन पार्कों की स्थापना से विनिर्माण लागत 30 प्रतिशत और घट सकती है और साझा सुविधाओं की पूलिंग की बदौलत भारतीय चिकित्सा प्रौद्योगिकी का क्षेत्र विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बन सकता है.

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वर्ल्ड रैंकिंग में 20वें और एशियाई स्तर पर चौथे पायदान पर
भारतीय चिकित्सा प्रौद्योगिकी क्षेत्र का आकार लगभग 5.5 अरब अमेरिकी डॉलर रहने का अनुमान है, जो भारत में हो रहे स्वास्थ्य संबंधी खर्चों में लगभग 7 से 8 फीसदी का योगदान करता है. इसे वैश्विक रैंकिंग में 20वें पायदान पर और एशियाई स्‍तर पर रैंकिंग में चौथे पायदान पर रखा गया.

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