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गंगा सफाई की बात करने वाले मठ और अखाड़े, कुंभ में बिसलेरी के सहारे

हैरानी इस बात की है कि इस साल मेले की तैयारी के लिए प्रयागराज और आसपास के इलाकों में कुम्हार परिवारों को अभी तक भंडारे समेत मेला संबंधित किसी आयोजन के लिए मिट्टी के बर्तन का ऑर्डर नहीं मिला है.

काशी में धर्म संसद काशी में धर्म संसद
राहुल मिश्र
  • प्रयागराज,
  • 27 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 11:16 AM IST

पर्यावरण मंत्रालय ने 2019 की शुरुआत में प्रयागराज में आयोजित होने वाले कुंभ मेला को प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्त रखने का दावा सितंबर में कर दिया. मंत्रालय ने दावा किया कि मेला में किसी भी तरह की प्लास्टिक इस्तेमाल नहीं की जाए इसकी खास तैयारी की जा रही है. इस दावे को परखने पर पाया गया कि बिसलेरी की शक्ल में मिनरल वॉटर पहले ही कुंभ मेला में जगह बना चुका है.

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एक महीने तक चलने वाले इस मेले में देशभर से दर्जनों धार्मिक मठ और अखाड़े प्रवास के लिए पहुंचते हैं. पूरे महीने के दौरान जहां इन मठों और अखाड़ों में दिनभर धर्मसभाएं और प्रवचन होते हैं वहीं मेला पहुंचने वाले लाखों श्रद्धालुओं के लिए भंडारा भी चलाया जाता है. लेकिन हैरानी इस बात की है कि इस साल मेले की तैयारी के लिए प्रयागराज और आसपास के इलाकों में कुम्हार परिवारों को अभीतक भंडारे समेत मेला संबंधित किसी प्रायोजन के लिए मिट्टी के बर्तन का ऑर्डर नहीं मिला है.

बीते कई दशक से इलाहाबाद फोर्ट के पास स्थित बैरहना मोहल्ले में कुम्हार जाति के 100 परिवार मौजूद हैं. ये परिवार जहां सालभर गंगा किनारे मिट्टी निकालकर शहर के लिए मिट्टी के बर्तन बनाते हैं वहीं प्रति वर्ष होने वाला मेला इनके लिए बड़ी कमाई लेकर आता है.

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एक कुम्हार कारोबारी सुरेश कुमार ने बताया कि 6 साल पहले कुंभ में उन्हें सभी बड़े मठों और अखाड़ों से 10 लाख कुल्लहड़ और परई बनाने का ऑर्डर और एडवांस मिला था. यह एडवांस उन्हें मेला शुरू होने से 6 महीने पहले दे दिया गया और उनका पूरा परिवार प्रति सप्ताह एक लाख कुल्लहड़ बनाने में जुट गया. सुरेश कुमार ने बताया कि एडवांस में मिली रकम के चलते न सिर्फ समय से पहले पूरा ऑर्डर मेला क्षेत्र में पहुंचाने में सफल रहे बल्कि बड़े ऑर्डर को पूरा करने के बाद बचे समय में उन्होंने मेला के दौरान खुदरा बिक्री के लिए भी बर्तन बनाकर मेला क्षेत्र में पहुंचा लिया.

एक अन्य कारोबारी अभय कुमार ने बताया कि इस साल मेला में कुल्लहड़ और परई का इस्तेमाल न के बराबर रहेगा. अभय के मुताबिक यदि उन्हें और अन्य कुम्हार परिवारों को अब मठ और अखाड़ों से ऑर्डर मिलता है तो वह किसी सूरत में मेला शुरू होने से पहले बर्तन बनाने का काम पूरा नहीं कर सकते. अभय ने कहा कि कुंभ मेला के लिए बर्तन बनाने का काम अब खत्म हो गया है. अभय ने संभावना जताई कि इस साल कुंभ में सरकार और धर्मिक संस्थाएं मिट्टी के बर्तनों के विकल्प पर आश्रित रहेगी. अभय का इशारा पानी के लिए बिसलेरी की बोतल और खाने के लिए प्लास्टिक और थर्माकोल की थालियां मिट्टी के बर्तनों की जगह लेंगे.

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अभय और सुरेश के इन दावों की पुष्टि भी कुंभ मेला से पहले अयोध्या, प्रयागराज और काशी में आयोजित हो रही धर्म सभाओं की तस्वीर में साफ देखने को मिल रहा है. रविवार और सोमवार को काशी में आयोजित धर्म संसद में शामिल संतों और साधुओं के लिए मिनरल वॉटर की व्यवस्था की गई.

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