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क्या लालू की रैली में सियासी जमीन तलाश पाए शरद यादव?

शरद यादव के लिए लालू की 'भाजपा भगाओ रैली' अपनी खोई सियासी जमीन खोजने का बड़ा मौका था, लेकिन बाकी दलों के नेताओं को लालू के साथ नाम जुड़ने का डर लगा रहता है. शायद यही वजह रही होगी कि राहुल, सोनिया और मायावती रैली में नहीं पहुंचे. बता दें कि पिछले बार मंच पर लालू से गले मिलने पर राहुल को सफाई देनी पड़ गई थी. 

लालू और शरद यादव लालू और शरद यादव
आदित्य बिड़वई
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  • 28 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 12:15 AM IST

राजद की 'भाजपा भगाओ रैली'. रविवार को जोरशोर से पटना के गांधी मैदान पर हुई. रैली के पीछे लालू का मकसद भाजपा को सत्ता से हटाना था पर पूरी रैली में वो नीतीश को ही कोसते रहे. उन्होंने इसे महारैली का नाम तो दिया, लेकिन महारैली में महागठबंधन के वो बड़े नेता ही नहीं पहुंचे जिनसे लालू को उम्मीद थी. हालांकि, रैली में कुछ ऐसे चेहरे जरुर आए थे, जिन्हें आज 'बुझा हुआ कारतूस' कहा जाने लगा है. ऐसा इसीलिए क्योंकि उनका नाम तो बड़ा जरुर है, लेकिन उनके लिए भीड़ जुटाना आज के दौर में नामुमकिन सा हो गया है.

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ऐसे नेताओं में सबसे पहला नाम आता है जदयू के बागी नेता शरद यादव का. आपको याद होगा कि नीतीश के महागठबंधन तोड़ने के बाद शरद यादव ने बागी रुख अपना लिया था. अब वो अपने लिए नई सियासी जमीन खोज रहे हैं. जिसकी शुरुआत उन्होंने नई दिल्ली में 'सांझा विरासत बचाओ सम्मलेन' से की. इस सम्मलेन में राहुल गांधी, मनमोहन सिंग के अलावा 17 दलों के नेता शामिल हुए पर जनसमर्थन नहीं दिखा.

शरद यादव के लिए लालू की 'भाजपा भगाओ रैली' अपनी खोई सियासी जमीन खोजने का बड़ा मौका था, लेकिन बाकी दलों के नेताओं को लालू के साथ नाम जुड़ने का डर लगा रहता है. शायद यही वजह रही होगी कि राहुल, सोनिया और मायावती रैली में नहीं पहुंचे. बता दें कि पिछले बार मंच पर लालू से गले मिलने पर राहुल को सफाई देनी पड़ गई थी.  

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आज भी रैली में लालू यादव और उनके परिवार के अलावा शरद यादव, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी जैसे बड़े नेता मौजूद थे. इनमें ममता बैनर्जी के बारे में कहा जाता है कि वो सियासत के लिए बंगाल के बाहर नहीं झांकती. वहीं, अखिलेश हाल ही में उत्तरप्रदेश में सत्ता गंवा चुके हैं. जदयू से बगावत के बाद शरद यादव भी अपने लिए सियासी जमीन तलाश रहे हैं. ऐसे में सभी नेताओं को एकजुट कर पाना कितना कारगर होगा यह वक्त बताएगा.

 

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