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मराठा आरक्षण पर ओवैसी ने पूछा-मुस्लिमों को आरक्षण क्यों नहीं ?

ओवैसी ने कहा कि हमें याद रखना चाहिए कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुख्ता सबूतों के आधार पर इसे (मराठा आरक्षण) पहले ही ठुकरा दिया था, जबकि उसी वक्त मुस्लिम पिछड़ी जाति के लिए शिक्षा में आरक्षण को मान लिया था ताकि इस समुदाय को मुख्यधारा में लाया जा सके.

एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (IANS) एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (IANS)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 28 जून 2019,
  • अपडेटेड 11:29 AM IST

बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में गुरुवार को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के तहत मराठा समुदाय को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की वैधता को बरकरार रखा लेकिन इसे 16 प्रतिशत से कम कर दिया. इस फैसले के बाद एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने महाराष्ट्र सरकार पर हमला बोला और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से पूछा कि क्या वे मुस्लिमों को आरक्षण दिलवाएंगे? ओवैसी ने कहा कि अगर हाई कोर्ट स्पष्ट कर चुका है कि मुस्लिम पिछड़े हैं तो आपने (फडणवीस) आरक्षण दोबारा लागू क्यों नहीं कराया? ओवैसी ने कहा कि वे चाहें तो कर सकते हैं लेकिन नहीं करेंगे क्योंकि ये लोग शाह बानो में दिलचस्पी रखते हैं.

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इससे पहले एक और ट्वीट में मराठा आरक्षण के बारे में ओवैसी ने कहा कि 'हमें याद रखना चाहिए कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुख्ता सबूतों के आधार पर इसे पहले ही ठुकरा दिया था, जबकि उसी वक्त मुस्लिम पिछड़ी जाति के लिए शिक्षा में आरक्षण को मान लिया था ताकि इस समुदाय को मुख्यधारा में लाया जा सके.'  

गौरतलब है कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने प्रस्तावित 16 प्रतिशत मराठा आरक्षण को घटाकर शिक्षा के लिए 12 प्रतिशत और नौकरियों के लिए 13 प्रतिशत करते हुए यह पाया कि अधिक कोटा 'उचित नहीं' था. गुरुवार का फैसला राज्य सरकार के नवंबर 2018 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आया, जिसमें एसईबीसी श्रेणी के तहत मराठा समुदाय को 16 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था.

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अदालत के फैसले का स्वागत किया और यह संकेत दिया कि नया कोटा प्रतिशत सरकार को स्वीकार्य है. हालांकि, उनके मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने कहा कि राज्य अदालत से 16 प्रतिशत कोटा पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करेगा. याचिकाकर्ताओं में से एक के वकील विजयलक्ष्मी खोपड़े ने कहा कि अदालत ने नौ सदस्यीय एम. जी. गायकवाड़ आयोग की रिपोर्ट का भी समर्थन किया, जिसमें मराठों को 'सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग' के रूप में वर्गीकृत करने की बात कही गई थी.

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