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मैं सौभाग्यशाली हूं कि अटल जी से मित्रता 65 साल तक रही: आडवाणी

भारतीय जनता पार्टी को शून्य से शिखर तक ले जाने में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी का अहम योगदान है. वाजपेयी के निधन के बाद उनकी श्रद्धांजलि सभा में बोलते हुए आडवाणी ने उनके साथ दोस्ती को अपना सौभाग्य बताया.

लालकृष्ण आडवाणी लालकृष्ण आडवाणी
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 20 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 6:31 PM IST

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के बाद पहली बार उनके साथ 65 सालों तक राजनीतिक सफर तय करने वाले और करीबी दोस्त लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि उन्होंने कभी ऐसी कल्पना नहीं की थी कि उनके बगैर किसी सभा को संबोधित करनी पड़ेगी.

दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम में सार्वजनिक, सर्वदलीय प्रार्थना सभा में बोलते हुए लालकृष्ण आडवाणी ने कहा, 'मैंने दशकों तक एक साथ काफी सभाएं की, लेकिन आज जिस तरह की सभा का आयोजन किया गया है, उसकी कल्पना कभी नहीं की थी.' उन्होंने आगे कहा, 'मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा था कि अटलजी के बगैर ऐसी सभा संबोधित करनी पड़ेगी.'

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भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता आडवाणी ने कहा, 'जब अटल जी कहा करते थे कि मैं कितने दिन रहूंगा, तो मुझे तकलीफ होती थी. अटल जी के साथ मेरी मित्रता 65 साल पुरानी है. मैं खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मेरी अटल जी से मित्रता 65 सालों से थी.'

अटल जी के भोजन पकाने की कुशलता के बारे में बोलते हुए आडवाणी ने कहा कि वह बहुत अच्छा भोजना पकाते थे, वो चाहे खिचड़ी ही क्यों न हो. आज उनकी अनुपस्थिति में बोलना पड़ रहा है, जिसका उन्हें गहरा दुख है.

अटल जी के साथ के अपने अनुभवों को साझा करते हुए पूर्व प्रधामंत्री आडवाणी ने कहा, 'मैंने उन्हें करीब से देखा. हमने साथ काम किया. हम अपने अनुभव एक-दूसरे से साझा करते थे. हम साथ में सिनेमा देखते थे. साथ में किताबें भी पढ़ते थे. हमने बहुत कुछ अटल जी से सीखा. इसीलिए दुख होता है कि वो हमें छोड़कर, हमसे अलग हो गए.'

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उन्होंने कहा, 'मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा, बहुत कुछ पाया. अटल जी से हमने बहुत कुछ सीखा और हमने उनसे बहुत कुछ पाया. अटल जी ने जो कुछ हमें सिखाया उसको ग्रहण करके हम सभी अपना जीवन व्यतीत करें. मेरी कोशिश है कि उन्होंने जो कुछ सिखाया उसे कर सकें तो यह हमारे लिए अच्छा रहेगा.'

अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में उनके डिप्टी रहे आडवाणी से उम्मीद की जा रही थी कि इस शोकसभा में वह वाजपेयी से जुड़े कुछ अहम संस्मरणों का जिक्र करेंगे और वर्तमान हालात से तुलना भी कर सकते हैं. लेकिन उन्होंने अपना संक्षिप्त भाषण वाजपेयी पर ही केंद्रित रखा.

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