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अयोध्या केस: जब SC ने मांगे नमाज के सबूत, मुस्लिम पक्ष बोला- लिखित में नहीं हैं

मुस्लिम पक्ष की ओर से मंगलवार को राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलील पूरी की. जिसके बाद जफरयाब जिलानी की ओर से बहस को आगे बढ़ाया गया.

सुप्रीम कोर्ट में जारी है अयोध्या मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में जारी है अयोध्या मामले की सुनवाई
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 24 सितंबर 2019,
  • अपडेटेड 12:34 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या केस की सुनवाई जारी
  • मुस्लिम पक्ष की ओर से जफरयाब जिलानी ने की दलील
  • राजीव धवन की ओर से खत्म हुईं दलीलें
रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में मंगलवार यानी 30वें दिन सुनवाई जारी है. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष की ओर से दलील दी गई. जब अदालत में जफरयाब जिलानी अपना पक्ष रख रहे थे, तो सुप्रीम कोर्ट ने उनसे विवादित स्थान पर नमाज पढ़े जाने के सबूत मांगे. जिसपर जिलानी की ओर से कहा गया कि उनके पास कोई लिखित सबूत नहीं है.

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दरअसल, मुस्लिम पक्ष की ओर से मंगलवार को राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलील पूरी की. जिसके बाद जफरयाब जिलानी की ओर से बहस को आगे बढ़ाया गया. इसी दौरान जफरयाब जिलानी ने कहा कि अयोध्या में जन्मस्थल पर रामजन्म को लेकर विश्वास तो है, लेकिन हिंदू पक्ष के पास सबूत कोई नहीं है.

जिलानी ने कहा कि अभी तक की दलीलों में रामचरित मानस, वाल्मिकी रामायण का जिक्र किया गया है. लेकिन याचिकाकर्ताओं को साबित करना होगा कि रामजन्मस्थान की बात किन ग्रंथों में की गई है. क्योंकि रामचरित मानस, वाल्मिकी रामायण में जन्मस्थान का कोई जिक्र नहीं है. उन्होंने कहा कि 1949 से पहले मध्य गुंबद के नीचे रामजन्म, पूजा का कोई अस्तित्व या सबूत नहीं मिलता है.

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इसी पर जस्टिस बोबड़े ने जफरयाब जिलानी से पूछा कि क्या आप ये सबूत देंगे कि 1949 से पहले वहां नियमित नमाज़ होती थी?

इसपर जफरयाब जिलानी ने जवाब दिया कि हमारे पास जो सबूत हैं, वो जुबानी हैं लेकिन लिखित में नहीं है. इसपर जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि हिंदू पक्ष की दलील में भी रामायण, रामचरित मानस में अयोध्या में दशरथ महल में राम के जन्म का जिक्र है हालांकि स्थान का कोई जिक्र नहीं है.

एक गवाह ने भी बताया कि कवितावली और अन्य ग्रन्थों में भी रामजन्म अयोध्या या अवधपुरी या साकेत का जिक्र है पर विशिष्ट जन्मस्थान का नहीं. गवाह भी वशिष्ठ कुंड, लोमश कुंड , विध्नेश्वर गणेश और पिण्डारक से विवादित स्थल की दूरी और दिशा के बारे में कुछ नहीं बता पाए. वाल्मीकि रामायण में भी कोई विशिष्ट स्थान नहीं बताया गया. जिलानी ने कहा कि रामचरित मानस की रचना मस्जिद बनने के करीब 70 साल बाद हुई लेकिन कहीं ये जिक्र नहीं कि राम जन्मस्थान वहां है, जहां मस्जिद है. यानी जन्मस्थान को लेकर हिंदुओं की आस्था भी बाद में बदल गई.

इस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि बाबर ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई या पहले कभी मंदिर था उस जगह मस्जिद बनाई या खाली जगह पर मस्जिद बंसी? इस सवाल पर जिलानी बोले कि बाबर ने खाली प्लॉट पर मस्जिद बनाई थी. अगर पहले मंदिर रहा होगा तो बाबर को इसकी जानकारी ना हो.

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जिलानी ने कहा कि 1855 से पहले यहां कोई विवाद नहीं था. जब शूट दाखिल किया गया तबसे यहां का महत्व बढ़ गया. इस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि कितनी मस्जिदों को मीर बाकी ने बनवाया? जवाब में जिलानी ने कहा कि आइने अकबरी के मुताबिक इलाके सूबों में बंटे होते थे और मस्जिदों का निर्माण सूबेदार कराते थे.

जिलानी ने कहा कि आईने अकबरी में पूरे साम्राज्य को स्थापित करने का ब्यौरा है. यही एक ऐसी किताब है, जिसमें मुगल शासनकाल के दौरान हरेक बारीकी का जिक्र है. जस्टिस बोबड़े ने कहा कि अगर आईने अकबरी में सभी का ब्यौरा है तो मस्जिद का जिक्र क्यों नहीं है. जवाब में जिलानी ने कहा कि ये बादशाह ने नहीं कमांडर ने बनवाई थी. उस जगह पर मंदिर नहीं था जिसे दावा किया जा रहा है कि तोड़ा गया. जब आइने अकबरी में काशी में मंदिर तोड़ने का जिक्र है तो अयोध्या के मंदिर तोड़ने का भी जिक्र होता.

जिलानी आइन ए अकबरी में भी रामजन्मभूमि का नहीं, लेकिन पवित्र शहर अवध का ज़िक्र है जहां हिन्दू राम की पूजा करते हैं. जस्टिस भूषण ने जिलानी को टोका कि स्कन्दपुराण का हवाला तो आपके गवाह ने भी दिया है जिसमें उसने राम जन्मस्थान की बात कही है.

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