Advertisement

मध्यस्थता से सुलझाओ अयोध्या विवाद, SC में सुनवाई की 10 बड़ी बातें

Ayodhya Case अयोध्या में मस्जिद और मंदिर  के मामले की सुनवाई कर रही संविधान पीठ ने कहा कि यह विवाद दो धर्मों की पूजा अर्चना से जुड़ा हुआ है. लिहाजा इसे कोर्ट द्वारा नियुक्त मध्यस्थ के जरिये सुलझाने की पहल की जानी चाहिए.

 Ayodhya Case Ayodhya Case
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 06 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 12:44 PM IST

सुप्रीम कोर्ट में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में आज सुनवाई हुई. इस दौरान हिंदू महासभा ने शीर्ष कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखा. मामले की सुनवाई कर रही संविधान पीठ ने कहा कि यह विवाद दो धर्मों की पूजा अर्चना से जुड़ा हुआ है. लिहाजा इसे कोर्ट द्वारा नियुक्त मध्यस्थ के जरिये सुलझाने की पहल की जानी चाहिए. पीठ ने कहा था कि मुख्य मामले की सुनवाई 8 हफ्ते के बाद होगी तब तक आपसी समझौते से विवाद को सुलझाने का एक प्रयास किया जा सकता है. हालांकि शीर्ष कोर्ट ने आज इस मामले में मध्यस्थता को लेकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.  

Advertisement

मध्यस्थता के सवाल पर रामलला विराजमान और हिन्दू महासभा ने विरोध जताया था, जबकि मुस्लिम पक्ष और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा था कि वो आपस में बातचीत करने के लिए तैयार हैं. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ कर रही है. आइए जानते हैं इस मसले पर किस जज ने क्या कहा-

1.हिंदू महासभा की ओर से वकील हरिशंकर जैन ने मध्यस्था का विरोध किया है. उन्होंने कहा कि अगर कोर्ट में पार्टियां मान जाती हैं, तो आम जनता इस समझौते को नहीं मानेगी.  

2.इस पर जस्टिस एसए बोबडे ने कहा है कि आप सोच रहे हैं कि किसी तरह का समझौता करना पड़ेगा कोई हारेगा, कोई जीतेगा. मध्यस्थता में हर बार ऐसा नहीं होता है. उन्होंने कहा कि ये सिर्फ जमीन का मसला नहीं है बल्कि भावनाओं का मसला है, इसलिए हम चाहते हैं कि बातचीत से हल निकले. कोई उस जगह बने या बिगड़े निर्माण को या इतिहास को पहले जैसा नहीं कर सकता है. इसलिए स्थिति बातचीत से ही सुधर सकती है.

Advertisement

3.जस्टिस बोबडे ने कहा कि बाबर ने जो किया हम उसे ठीक नहीं कर सकते हैं, अभी जो हालात हैं हम उस पर बात ही करेंगे. अगर कोई केस मध्यस्थता को जाता है, तो उसके फैसले से कोर्ट का कोई लेना देना नहीं है. यह सिर्फ जमीन का मामला नहीं है, बल्कि भावनाओं से जुड़ा हुआ भी है. दिल, दिमाग और भावनाओं का मामला है. इसलिए कोर्ट चाहता है कि आपसी बातचीत से इसका हल निकले.

4.जस्टिस बोबडे ने कहा कि कोई उस जगह बने और बिगड़े निर्माण या मंदिर, मस्जिद और इतिहास को UNDO नहीं कर सकता. बाबर था या नहीं, वह राजा था था या नहीं ये सब इतिहास की बात है. सिर्फ आपसी बातचीत की प्रक्रिया से स्थिति UNDO हो सकती है.

5.जस्टिस बोबडे ने कहा कि जो पहले हुआ हमारा कोई नियंत्रण नहीं. हम इस विवाद में अब क्या है उस पर बात कर रहे हैं. हम देश की बॉडी पॉलिटिक्स के असर को जानते हैं. ये दिल दिमाग और हीलिंग का मसला है. जस्टिस बोबडे ने हिंदू महासभा से कहा- आप कह रहे हैं कि समझौता फेल हो जाएगा. आप प्री जज कैसे कर सकते हैं?

6.हिंदू महासभा ने कोर्ट में कहा कि इस केस को मध्यस्थता के लिए भेजा जाए. इससे पहले नोटिस जरूरी है. यही कारण है कि हिंदू महासभा इसका विरोध कर रहा है. उन्होंने कहा कि क्योंकि ये हमारी जमीन है. इसलिए हम मध्यस्थता के लिए तैयार नहीं हैं. इस पर जस्टिस अशोक भूषण ने कहा है कि इस मामले में अगर पब्लिक नोटिस दिया गया तो मामला वर्षों तक चलेगा, ये मध्यस्थता कोर्ट की निगरानी में होगी.

Advertisement

7.जस्टिस बोबडे ने कहा कि पक्षकारों द्वारा गोपनीयता का उल्लंघन नहीं होना चाहिए. मीडिया में इस पर टिप्पणियां नहीं होनी चाहिए. प्रक्रिया की रिपोर्टिंग ना हो. अगर इसकी रिपोर्टिंग हो तो इसे अवमानना घोषित किया जाए.

8.जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ सिंह ने कहा कि यह केवल पार्टियों के बीच का विवाद नहीं है, बल्कि दो समुदायों को लेकर विवाद है. हम मध्यस्थता के माध्यम से लाखों लोगों को कैसे बांधेंगे? यह इतना आसान नहीं होगा. हम पक्षों को प्रतिनिधि के तौर पर मानेंगे.  मध्यस्थता सहमति के आधार पर होगी.

9.वहीं सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि हम मामले में जल्द फैसला सुनाना चाहते हैं. उन्होंने मामले में पक्षकारों से मध्यस्थों को नाम सुझाने को कहा है. शीर्ष कोर्ट इस बात पर बाद में विचार करेगा कि इस मुद्दे पर दायर याचिकाओं पर सुनावई की जाए.

10. हिंदू पक्ष ने कहा कि मान लीजिए की सभी पक्षों में समझौता हो गया तो भी समाज इसे कैसे स्वीकार करेगा? इस पर जस्टिस बोबडे ने कहा कि अगर समझौता कोर्ट को दिया जाता है और कोर्ट उस पर सहमति देता है और आदेश पारित करता है. तब वह सभी को मानना ही होगा. वहीं जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट का फैसला एक बाध्यकारी चरित्र है. मध्यस्थता में हम कैसे लोगों को बाध्यकारी बना सकते हैं.  

Advertisement

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement