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बदरुद्दीन अजमल: इत्र व्यापारी से सियासी किंगमेकर तक

आज असम की राजनीति में अजमल का कद तेजी से बढ़ा है. अजमल एक सफल कारोबारी और राजनेता के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं.

असम के मुसलमानों में अजमल की अच्छी पकड़ असम के मुसलमानों में अजमल की अच्छी पकड़
अमित कुमार दुबे
  • नई दिल्ली,
  • 02 अप्रैल 2016,
  • अपडेटेड 11:32 PM IST

असम देश का एक ऐसा राज्य है, जहां औसतन 34 फीसदी मुसलमानों की आबादी है. जिनमें असमिया मुसलमान और बांग्लादेश से आकर असम में बसे मुसलमान दोनों शामिल हैं. असम में कुल 126 विधानसभा सीटों में से 43 सीटों पर सीधे तौर पर मुस्लिम वोटर्स उम्मीदवारों के जीत-हार तय करते हैं. अगर ये सीटें किसी एक पार्टी को मिल जाए तो भले ही उसे सत्ता ना मिले, लेकिन वो किंगमेकर की भूमिका में जरूरी आ जाएगी. असम में इन सीटों के अलावे कई ऐसी सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटर्स की आबादी ज्यादा है और यहां इस बार सीधा मुकाबला सत्तारूढ़ कांग्रेस और एआईयू्डीएफ के बीच है.

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इत्र व्यापारी से सफल राजनेता का सफर
इस बार असम में सत्तारूढ़ कांग्रेस भी घबराई हुई है. एक ओर असम में बीजेपी की ताकत बढ़ी है तो दूसरी तरफ ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के प्रमुख बदरुद्दीन अजमल किंगमेकर की भूमिका में अपने आपको देख रहे हैं. मौजूदा वक्त में एआईयूडीएफ का विधानसभा में 18 विधायक हैं. साथ ही लोकसभा में 3 सीटों पर कब्जा है. फिलहाल अजमल असम के धुबरी से सांसद हैं. महज 10-12 साल के भीतर करोड़पति इत्र व्यापारी बदरुद्दीन अजमल ने असम की राजनीति में अपनी अहम जगह बना ली है. इत्र बनाना और बेचना उनका खानदानी पेशा है जो वो पिछले 60 सालों से कर रहे हैं. राजनीति में अब इनका परिवार भी सक्रिय है. इनके भाई सांसद है और दो बेटे विधायक हैं.

राजनीति में बड़ी जीत के साथ एंट्री
बदरुद्दीन अजमल का जन्म 12 फरवरी 1950 को मुंबई में हुआ था. उत्तर प्रदेश के दारुल उलूम देवबंद से पढ़ाई पूरी करने वाले अजमल ने 2005 में अपनी एआईयूडीएफ पार्टी बनाई और उसके अगले साल ही असम हुए विधानसभा चुनाव में कूद पड़े. पहली बार मैदान में उतरी अजमल की पार्टी साल 2006 में अल्पसंख्यकों के समर्थन से 10 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. अजमल की इस सफलता से सब हैरान रह गए थे. लेकिन अजमल के लिए ये शुरुआती सफलता थी और 2011 में उन्होंने 18 सीटों पर अपने उम्मीदवारों को जिताने में सफल रहे.

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मुसलमानों में अजमल की पकड़
आज असम की राजनीति में अजमल का कद तेजी से बढ़ा है. अजमल एक सफल कारोबारी और राजनेता के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं. ये अपनी आर्थिक हैसियत के साथ-साथ अपनी धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों से गरीब और पिछड़े मुसलमानों में मसीहा के तौर पर जाने जाते हैं. परेशान लोग अपनी समस्याएं लेकर इनके पास आते हैं और ये अपने अंदाज में उसको सुलझाते हैं. विपक्षी अजमल पर अंधविश्वास फैलाने का आरोप लगाते हैं, लेकिन अजमल का कहना है कि खुदा ने जो हुनर उन्हें दिया है वो उसका इस्तेमाल लोगों की भलाई के लिए करते रहेंगे.

समाजसेवक के तौर पर भी पहचान
हमेशा कंधे पर असमिया गमछा लटकाए रखने वाले बदरुद्दीन का कारोबार अब इत्र तक ही सीमित नहीं है. रियल इस्टेट से लेकर चमड़ा उद्योग, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा जगत तक वे अपना पैर पसार चुके हैं. यही नहीं, अजमल फाउंडेशन के नाम से असम में कई शिक्षा संस्थान, मदरसे, अनाथालय और अस्पताल चलते हैं. बदरुद्दीन की मानें तो वे अपने पिता की नसीहत के मुताबिक अपनी कमाई का चौथाई हिस्सा असम के विकास पर खर्च करते हैं.

सियासी सूझबूझ से राजनीति में बढ़ाई कद
असम के मौजूदा हालात में अजमल खुद को मुसलमानों का सबसे बड़ा नेता मानते हैं. अजमल के जबरदस्त उभार के पीछे उनकी अपनी सियासी सूझबूझ के अलावा हालात का भी अच्छा-खासा योगदान है. एआइयूडीएफ 2005 में गठित की गई थी. उसी साल सुप्रीम कोर्ट ने विवादास्पद अवैध अप्रवासी कानून (आईएमडीटी) को रद्द कर दिया था. इसके लिए ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के नेता और बीजेपी के सीएम उम्मीदवार सर्बानंद सोनोवाल ने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी थी, जिसके बाद अदालत का यह फैसला आया था. आईएमडीटी कानून ने अवैध अप्रवासियों की पहचान की जिम्मेदारी न्यायाधिकरणों पर डाल दी थी और संदिग्ध लोगों की नागरिकता को साबित करने का भार शिकायत करने वालों पर डाल दिया था. अप्रवासी मुसलमान मानते हैं कि केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार का बनाया गया यह कानून उन्हें उत्पीड़न से बचाने वाला था.

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