
लोकसभा चुनावों के नतीजों के साथ ही विपक्षी एकता में दरार दिखने लगी है. इस फूट का पहला नजारा यूपी में देखने को मिल रहा है जहां सपा-बसपा गठबंधन फौरी तौर पर टूट गया है. मंगलवार को बीएसपी अध्यक्ष मायावती ने घोषणा कर दी कि उत्तर प्रदेश में आने वाले उप चुनावों में वो अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और आरएलडी के साथ बने गठबंधन का हिस्सा नहीं रहेंगी और उनकी पार्टी अकेले ही ये चुनाव लड़ेगी. मायावती ने आरोप लगाया कि अखिलेश यादव अपनी जाति के वोट बीएसपी के उम्मीदवारों को नहीं दिलवा पाए, यानी अखिलेश वोट ट्रांसफर करवाने में नाकाम रहे.
इंडिया टुडे एक्सिस माय इंडिया के पोस्ट पोल सर्वे के आंकड़ों को जांच कर इंडिया टुडे डाटा इंटेलिजेंस यूनिट ने पाया कि ये आरोप गलत हैं. लोकसभा चुनाव से पहले बने इस गठबंधन में दरअसल फायदा तो मायावती को ही पहुंचा, समाजवादी पार्टी को नहीं, क्योंकि यादवों ने एकजुट होकर बीएसपी को वोट डाला लेकिन दलितों ने समाजवादी पार्टी के लिए ऐसी एकजुटता नहीं दिखाई.
यादव-एकजुट वोट बैंक
यादव, दलित और मुसलमान मिलकर उत्तर प्रदेश का 49 प्रतिशत हिस्सा बनाते हैं. इंडिया टुडे एक्सिस माय इंडिया पोस्ट पोल सर्वे से पता चला है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में दलितों की तुलना में यादव और मुसलमानों ने गठबंधन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई.
उत्तर प्रदेश में दलित वोट दो श्रेणियों में बंटे हुए हैं जाटव और गैर जाटव. जहां जाटव दलित बीएसपी को समर्थन देते रहे हैं, वहीं गैर जाटव दलितों ने 2014 के चुनावों से ही पार्टी से दूरी बना ली थी. यादव-दलित-मुसलमान समुदायों में से 10 प्रतिशत तो गैर जाटव ही हैं, अब सपा-बसपा गठबंधन के पास 39 प्रतिशत वोट बैंक बच पाता है. सर्वे ने यह भी साफ किया जहां 72 प्रतिशत यादवों ने गठबंधन को वोट दिया, वहीं 74 प्रतिशत जाटव दलितों ने गठबंधन को चुना.
वहीं, बीजेपी को वोट देने के सवाल पर दलित समुदाय के लोग कुछ आगे नजर आते हैं. 20 प्रतिशत यादव, 21 प्रतिशत जाटव दलितों ने बीजेपी को चुना. गैर जाटवों में से 60 प्रतिशत ने भाजपा को वोट दिया और 30 प्रतिशत ने गठबंधन को.
एक्सिस माय इंडिया का सर्वे ये भी बताता है कि गैर जाटव दलितों को अपनी तरफ लाने के लिए भाजपा की कल्याणकारी स्कीमों का बड़ा योगदान था. गरीब महिलाओं के लिए मुफ्त गैस कनेक्शन, शौचालयों का निर्माण और आवास जैसी स्कीमों ने गैर जाटव वोट बैंक को अपनी ओर खींचा.
सीटों में भी बसपा आगे
2014 के लोकसभा चुनावों में मायावती के हाथ कुछ नहीं लगा था. 5 साल पहले बसपा एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. वहीं अकेले लड़कर भी समाजवादी पार्टी को 5 सीटें आई थीं. गठबंधन का ही नतीजा है कि 2019 में बसपा 10 सीटें जीतने में कामयाब हुई, जबकि समाजवादी पार्टी 5 सीटों पर ज्यों की त्यों बनी रही. उन 5 सीटों में भी 2 तो मुलायम सिंह यादव और उनके बेटे अखिलेश यादव की ही थीं. मायावती ने जिस भी वजह से गठबंधन तोड़ दिया हो, लेकिन आंकड़े दूसरी ही कहानी कह रहे हैं और अखिलेश के साथ गठजोड़ का सबसे ज्यादा फायदा उन्हें ही मिला है.