Advertisement

बंगाल ग्राउंड रिपोर्ट: CAB पर टिकीं हिन्दू शरणार्थियों की सारी उम्मीदें

बांग्लादेश में एक हिन्दू परिवार में जन्म लेने वाला अरुण क्लास 9 में पढ़ता है. बीते एक दशक से वो भारत में शरणार्थी की तरह रह रहा है. अरुण जैसे ही लोग हैं जिनका भाग्य नए नागरिकता संशोधन बिल (CAB) से तय होगा.

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
इंद्रजीत कुंडू
  • कोलकाता ,
  • 11 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 3:16 PM IST

  • अल्पसंख्यक समुदाय होने की वजह से धार्मिक उत्पीड़न का डर
  • गुजारा करने के लिए करते हैं घरेलू नौकर के तौर पर काम

'मैं टीम इंडिया के लिए चीयर कर रहा था...मैं भारत में रहना चाहता हूं.' 16 वर्षीय अरुण बैद्य (बदला हुआ नाम) ने ये जवाब तब दिया जब उससे हाल में ईडन गार्डन्स पर हुए भारत-बांग्लादेश मैच के बारे में पूछा गया. अरुण उत्तर 24 परगना जिले के हालीशहर से ताल्लुक रखता है. क्रिकेट को लेकर प्रेम से कहीं ज़्यादा इस किशोर की भारत के लिए वफ़ादारी है. ये उसके जीवन की असलियत  है.     

Advertisement

बांग्लादेश में एक हिन्दू परिवार में जन्म लेने वाला अरुण क्लास 9 में पढ़ता है. बीते एक दशक से वो भारत में शरणार्थी की तरह रह रहा है. अरुण जैसे ही लोग हैं जिनका भाग्य नए नागरिकता संशोधन बिल (CAB) से तय होगा. ये बिल सोमवार को लोकसभा में पास किया जा चुका है.

अरुण की 36 वर्षीय मां बारीशाल (बांग्लादेश) में अपना ससुराल छोड़कर बेहतर जीवन की उम्मीद से भारत आ गई थी. अरुण की मां का कहना है कि उसके पति के दूसरी शादी कर लेने के बाद उसके सामने और कोई विकल्प नहीं बचा था. अरुण की मां ने कहा, 'मेरा बेटा उस वक्त काफ़ी छोटा था. हमें कंटीले तार को पार करना पड़ा...मैं घायल हुई लेकिन मुझे एक ही बात पता थी और वो थी कि अगर मैं सरहद पार करने में कामयाब हुई तो मैं बच जाऊंगी...हम बच जाएंगे.'   

Advertisement

जिंदगी बांग्लादेश में भी आसान नहीं

बीते एक दशक से मां-बेटा कोलकाता से 50 किलोमीटर दूर हालीशहर में एक परिवार के साथ रह रहे हैं. दोनों गुजारा करने के लिए घरेलू नौकर के तौर पर काम करते हैं.

अरुण की मां ने कहा, 'हमें सतर्कता के साथ जीना पड़ रहा है, हमारे पास दस्तावेज नहीं है, ये आसान नहीं है.' ये सब कहते हुए विदेशी जमीन पर अवैध प्रवासी के तौर पर रहने का डर साफ झलक रहा था. इसके अलावा हर दिन ये डर भी सताता रहता है कि कहीं पहचान ना लिए जाएं और डिटेंशन सेंटर में ना भेज दिए जाएं.  

अरुण की मां का कहना है कि ज़िंदगी बांग्लादेश में भी आसान नहीं थी. अल्पसंख्यक समुदाय होने की वजह से वहां हर दिन धार्मिक उत्पीड़न के डर का सामना करना पड़ता था. वहां मुझे कौन नौकरी देता? हम लगातार डर के साये में रहते थे. मेरे पति पर एक बार हमला भी हुआ और उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. हमारे जैसे कई बांग्लादेश से भाग आए.

'ये मेरा देश है, मेरे बेटे का यहां भविष्य'

अरुण की मां का कहना है कि अगर भारत सरकार उसे प्रामाणिक नागरिक की पहचान देती है तो सरहद पार करना सफल हो जाएगा और वो अपने बेटे के साथ सम्मान की जिदंगी सुरक्षित कर सकेगी.

Advertisement

अरुण की मां कहती है, 'ये मेरा देश है, मेरे बेटे का यहां भविष्य है. मैं क्यों वापस जाऊंगी.' जब इंडिया टुडे अरुण के घर पर कैमरे के साथ था तो आसपास से गुज़रने वाले भी उत्सुकता से घर के अंदर देख रहे थे. '

ये जानना दिलचस्प है कि बिना किसी दस्तावेज के भी अरुण की मां ने अपना और बेटे का आधार कार्ड बनवा लिया. एक तरफ CAB  को लेकर बुधवार को राज्यसभा में गर्मागर्म बहस जारी है, वहीं अरुण की मां की आखों में उम्मीद की किरण देखी जा सकती है. वो कहती है- 'मुझे पूरी आस है...अब हमें डर के साये में नहीं जीना पड़ेगा.'  

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement