Advertisement

तब और अब का किसान आंदोलन, जब टिकैत के आगे झुक गई थी यूपी सरकार

भाकियू के बैनर तले हजारों किसान अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतरे हैं. देश में खासकर पश्चिमी यूपी में ऐसे आंदोलनों का सिलसिला पुराना है. देश को भाकियू और महेंद्र सिंह टिकैत जैसा किसान नेता भी मिला, जिसने सरकारों को अन्नदाताओं के सामने झुकने को मजबूर किया.

प्रतीकात्मक तस्वीर रॉयटर्स से प्रतीकात्मक तस्वीर रॉयटर्स से
रविकांत सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 01 अक्टूबर 2018,
  • अपडेटेड 2:21 PM IST

अपनी कई मांगों को लेकर किसानों का एक जत्था 23 सितंबर को हरिद्वार से दिल्ली के लिए कूच कर चुका है. भारतीय किसान यूनियन के बैनर तले शुरू हुई यह यात्रा 2 अक्टूबर को दिल्ली स्थित राजघाट पर संपन्न होगी. किसानों की योजना राजघाट से संसद तक विरोध मार्च निकालने की भी है. इस जत्थे में हजारों की संख्या में शामिल किसान रविवार शाम को यूपी के मुरादनगर पहुंच गए हैं. सोमवार को इनके दिल्ली में प्रवेश करने की योजना है.

Advertisement

किसान क्रांति यात्रा का आयोजन भाकियू ने किया है. यह वही संगठन है जिसे किसान नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने बनाया था. 23 सितंबर को दिल्ली के लिए निकली इस किसान यात्रा की अगुआई नरेश सिंह टिकैत कर रहे हैं, जो महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे हैं और फिलहाल भाकियू के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी.

किसानों की मुख्य मांगें

रैली में शामिल किसानों की मांग है कि सरकार पूर्ण कर्जमाफी करे और बिजली के बढ़ाए दाम वापस ले. किसानों के पेंशन और गन्ने का बकाया भुगतान किया जाए. जिन किसानों ने खुदकुशी की है, उनके परिजनों को नौकरी और परिवार को पुनर्वास दिलाने की मांग उठाई गई है. किसानों के लिए न्यूनतम आय तय करने की मांग, 60 साल की आयु के बाद किसान को 5,000 रुपए प्रति माह पेंशन और आवारा पशुओं से खेतों की सुरक्षा के लिए कारगर योजना बनाने, सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 10 साल से पुराने डीजल वाहनों पर लगी रोक से ट्रैक्टर और कृषि उपकरण को मुक्त करने और खेती में उपयोग होने वाली सभी वस्तुओं को जीएसटी से बाहर करने की मांग अहम है.

Advertisement

भारतीय किसान यूनियन और टिकैत

किसान क्रांति यात्रा की अगुआई भाकियू कर रहा है. इस संगठन की स्थापना महेंद्र सिंह टिकैत ने की थी. उनके मरणोपरांत उनके बेटे राकेश सिंह टिकैत इस संगठन को संभाल रहे हैं. महेंद्र सिंह टिकैत का जन्म यूपी में हुआ था, जहां से उन्होंने किसान आंदोलन की बुनियाद रखी. टिकैत लगभग 25 वर्षों तक किसानों की समस्याओं के लिए जूझते रहे, खासकर पश्चिमी यूपी और हरियाणा के जाट किसानों में उनकी अच्छी खासी अपील थी.

महेंद्र सिंह टिकैत ने दिसंबर 1986 में ट्यूबवेल की बिजली दरों को बढ़ाए जाने के खिलाफ मुजफ्फरनगर के शामली से एक बड़ा आंदोलन शुरू किया था. 23 सितंबर को हरिद्वार से शुरू हुई किसान क्रांति यात्रा भी बिजली की बढ़ी दरों के खिलाफ शुरू हुई है. महेंद्र सिंह टिकैत के आंदोलन में एक मार्च 1987 को किसानों के एक विशाल प्रदर्शन के दौरान पुलिस गोलीबारी में दो किसान और पीएसी का एक जवान मारा गया था. टिकैत का तत्कालीन आंदोलन इतना प्रभावी था कि तत्कालीन यूपी के मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह ने खुद सिसौली गांव जाकर किसानों की पंचायत को संबोधित किया और राहत दी.

महेंद्र सिंह टिकैत के सभी आंदोलनों की खास बात यह रही कि उन्होंने इसे राजनीति से बिल्कुल अलग रखा और कई बार राजधानी दिल्ली में आ कर धरना प्रदर्शन भी किया.

Advertisement

भाकियू में दो फाड़

महेंद्र सिंह टिकैत के हाथों जब तक भाकियू की कमान रही, तब तक इस संगठन को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा गया लेकिन बाद में इसकी राजनीतिक दिलचस्पी की खबरें आने लगीं. कुछ इसी कारण साल 2015 में भाकियू में दो फाड़ हो गया. मुरादाबाद के बिलारी में किसानों की महापंचायत आयोजित की गई और भारतीय किसान यूनियन (असली अराजनैतिक) के नाम से नया संगठन बनाया गया. तब इस संगठन को प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर, एकता परिषद के प्रमुख पीवी राजगोपाल और पूर्व सांसद हन्ना मौला ने समर्थन दिया.

भारतीय किसान यूनियन की स्थापना महेंद्र सिंह टिकैत ने की थी. उनके जमाने में भाकियू को गैर-राजनीतिक संगठन माना जाता रहा लेकिन बाद में इस संगठन को जिस प्रकार से राजनीतिक समर्थन मिला, उससे किसान आंदोलन और उसके निहितार्थ पर प्रश्न उठने लगे.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement