
भीमा-कोरेगांव हिंसा से जुड़े मामले में नजरबंद किए गए पांच वामपंथी विचारकों को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के हिसाब से कहा कि ये कार्रवाई किसी भी तरह से राजनीतिक नहीं है. इस मामले की सुनवाई तीन जजों की पीठ ने की थी. जिसमें चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस खानविलकर और जस्टिस चंद्रचूड़ शामिल थे.
CJI दीपक मिश्रा और जस्टिस खानविलकर के फैसले से इतर जस्टिस चंद्रचूड़ इस मामले को SIT के पास भेजने के पक्ष में थे. अपने फैसले में उन्होंने कहा कि सिर्फ विरोध के नाम पर विपक्ष की आवाज़ को दबाया नहीं जा सकता है. जिस तरह से गिरफ्तारी की गई वह संदेहास्पद थी, इसलिए इसमें SIT जांच की आवश्यकता थी.
जस्टिस चंद्रचू़ड़ बोले कि पुणे पुलिस ने जिस तरह की कार्रवाई की है, वह ठीक नहीं है. गिरफ्तारी बिल्कुल भी ठीक नहीं है, इसमें मीडिया ट्रायल किया गया.
अन्य जजों की क्या थी राय?
बता दें कि तीन जजों की पीठ का ये फैसला 2-1 से पुणे पुलिस के पक्ष में गया. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस खानविलकर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में दखल नहीं देगा, ये गिरफ्तारी राजनीतिक मतभेद के कारण नहीं हुई है.
दोनों जजों ने एक मत से कहा कि पुणे पुलिस इस मामले में अपनी कार्रवाई जारी रख सकती है. साथ ही कोर्ट ने सभी पांचों वामपंथी विचारकों की नजरबंदी को अगले 4 हफ्ते के लिए बढ़ा दिया है.
29 अगस्त से हैं नजरबंद
पांचों कार्यकर्ता की तत्काल रिहाई और SIT जांच की मांग को लेकर याचिका दायर की गई थी. बता दें कि पांचों कार्यकर्ता वरवरा राव, अरुण फरेरा, वरनॉन गोंजाल्विस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा 29 अगस्त से अपने-अपने घरों में नजरबंद हैं.