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मोदी के मिशन 2019 में सबसे बड़ा रोड़ा हैं ये 5 आर्थिक चुनौतियां

अमित शाह ने इसी सप्ताह पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक में 2019 का खाका खींचा. हालांकि जानकार मानते हैं कि शाह और मोदी के मिशन 2019 के सफल होने के लिए जरूरी है कि सरकार इन पांच आर्थिक चुनौतियों से पार पा ले.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 27 सितंबर 2017,
  • अपडेटेड 1:51 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने तीन साल से ज्यादा का वक्त पूरा कर लिया है. 2019 के चुनाव में महज 18 महीने का समय बचा है. बीजेपी  2019 में 2014 से भी बड़ी जीत  हासिल करने का ख्वाब देख रही है. पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने इसी सप्ताह पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक में 2019 का खाका खींचा. हालांकि जानकार मानते हैं कि शाह और मोदी के मिशन 2019 के सफल होने के लिए जरूरी है कि सरकार इन पांच आर्थिक चुनौतियों से पार पा ले.

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 रोजगार

प्रधानमंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती देश में बढ़ती बेरोजगारी है. रोजगार के अवसर घटते जा रहे हैं, जिससे युवाओं के बीच असंतोष बढ़ रहा है. बीजेपी समर्थित छात्र संगठन ABVP की दिल्ली यूनिवर्सिटी से लेकर हैदराबाद विश्वविद्याल छात्रसंघ चुनावों तक हार की यही वजह बताई जा रही है. खास बात ये है कि बीजेपी ने 2014 के अपने चुनावी घोषणा पत्र में बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन का वादा किया था. उस समय मोदी ने यूपीए सरकार की इसे लेकर जमकर आलोचना भी की थी. लेकिन आज हालात उल्टे हैं.

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी देश में बढ़ती बेरोजगारी के लिए नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. राहुल अमेरिका से लेकर गुजरात के सौराष्ट्र तक में अपनी यात्रा के दौरान रोजगार घटने की बात प्रमुखता से उठा रहे हैं.

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 बढ़ती कीमतें और महंगाई

कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की 2014 में हार की एक बड़ी वजह पेट्रोलियम उत्पादों सहित आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि भी थी. नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान महंगाई को अहम मुद्दा बनाया था. तब मोदी ने ये भी कहा था कि गुजरात के मुख्यमंत्री की हैसियत से उन्होंने महंगाई घटाने के कई सुझाव मनमोहन सरकार को दिए हैं लेकिन केंद्र उनपर अमल नहीं कर रही है. आज उन सुझावों पर खुद मोदी सरकार ने कितना अमल किया ये तो पता नहीं लेकिन महंगाई बढ़ती ही जा रही है.

 बीजेपी ने महंगाई घटाने के लिए घोषणा पत्र में जमाखोरी और कालाबाजारी रोकने के लिए विशेष अदालत, एक मूल्य स्थिरीकरण कोष, एफसीआई संचालन, भंडारण, किसानों के लिए एक 'राष्ट्रीय कृषि बाजार', विशिष्ट फसलों और सब्जियों को बढ़ावा देने जैसे बड़े वादे किए थे. अब जनता उनसे पूछने लगी है कि इन कदमों का क्या हुआ.

 जीडीपी का ग्रॉफ

मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर अब पार्टी के अंदर ही सवाल खड़े होने लगे हैं. इस साल अप्रैल-जून के दौरान देश की जीडीपी विकास दर गिरकर 5.7 फीसदी पर आ गई. पिछली तिमाही में ये 6.1 फीसदी और पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में 7.9 प्रतिशत थी. उत्पादन क्षेत्र में सकल मूल्य में वृद्धि (जीवीए) में गिरावट आई है. कच्चे तेल, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक और सीमेंट के उत्पादन सहित आठ प्रमुख क्षेत्रों की वृद्धि 2.4 फीसदी रही.

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आर्थिक विशेषज्ञों ने जीडीपी में गिरावट को निराशाजनक माना है क्योंकि उम्मीद थी कि ये 6.5 प्रतिशत होगा. जबकि बीजेपी ने चुनाव के दौरान कहा था, "जब वाजपेयी सरकार ने 2004 में अपना कार्यकाल पूरा किया तो उस समय जीडीपी विकास दर दो अंकों के करीब थी, लेकिन यूपीए सरकार ने उसे बर्बाद कर दिया. अब मोदी सरकार के पास 18 महीने बचे हैं और अगर समय रहते अर्थव्यवस्था में ये असाधारण सुधार नहीं किया गया तो 2019 का मिशन खटाई में पड़ सकता है.

 जीएसटी

मोदी सरकार ने जीएसटी को लागू कर दिया है. माना जा रहा है कि इसे लागू करने में सरकार की तैयारी आधी-अधूरी रहीं और उसी का परिणाम है कि व्यापारी जीएसटी में उलझे हुए हैं. व्यापारी वर्ग बीजेपी का मूल वोटर माना जाता है. नोटबंदी के चलते पहले ही व्यापारी परेशान थे और जीएसटी ने तो उन्हें मुसीबत में ही डाल दिया है.

व्यापारी आमतौर पर अत्यधिक जटिल और बोझिल प्रक्रिया के अलावा कर दरों के खिलाफ शिकायत कर रहे हैं. व्यापारियों की दिक्कतें तकनीकी भी हैं और आर्थिक भी. वे अलग-अलग टैक्स दरों में तो उलझे ही हैं और ढेर सारे रिटर्न उनका सिरदर्द बने हुए हैं, लेकिन सरकार ने जीएसटी फाइल करने की जो प्रक्रिया तय की है उसने भी उनकी दिक्कतें बढ़ा दी हैं.

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 काला धन

2014 में यूपीए की हार का एक बड़ा कारण कालाधन रहा है. पीएम मोदी ने चुनाव के दौरान विदेश में पड़ा कालाधन वापस लाने का वादा किया था. लेकिन सच्चाई ये है कि सरकार को इस मोर्चे पर कोई उल्लेखनीय सफलता हासिल नहीं हुई है. काला धन निकालने की जो स्कीमें वित्त मंत्रालय लेकर आया वो बुरी तरह फ्लॉप रहीं.

नोटबंदी को काले धन पर सबसे बड़ा प्रहार बताया गया था लेकिन आरबीआई के आंकड़ों ने उसके भी नाकामयाब होने की मुनादी कर दी. मोदी सरकार के तीन साल के कार्यकाल में भले ही भ्रष्टाचार का कोई मामला बड़ा मामला सामने नहीं आया है, लेकिन कालाधान वापस लाने में सरकार अभी तक सफल नहीं हो सकी है. आज स्थिति ये है कि सरकार के सूरमा खुद इस मुद्दे पर ज्यादा बात नहीं करते.

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