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यूपी में बीजेपी हारी, लेकिन कांग्रेस ने ऐसे बढ़ाया अपना सिरदर्द

अखिलेश यादव की तमाम कोशिशों बावजूद के कांग्रेस ने यूपी में दोनों लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार वापस नहीं लिए और पार्टी के उम्मीदवार उप चुनाव में जमानत भी नहीं बचा सके.

सोनिया और राहुल सोनिया और राहुल
कुमार विक्रांत/वरुण शैलेश
  • नई दिल्ली,
  • 15 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 9:14 PM IST

यूपी के गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में बीजेपी भले ही हार गई हो, लेकिन कांग्रेस के लिए फिर भी बुरी खबर ही है. दरअसल, दोनों सीटों पर गठबंधन को दरकिनार करके चुनाव लड़ी कांग्रेस अपनी जमानत तक नहीं बचा सकी. अब यूपी में राष्ट्रीय पार्टी के नाम पर महागठबंधन में ज़्यादा सीटें लड़ने की तमन्ना को बड़ा झटका लगा है.

अपने ही दांव पर चित्त

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अखिलेश की तमाम कोशिशों बावजूद कांग्रेस ने दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवार वापस नहीं लिए और पार्टी के उम्मीदवार जमानत भी नहीं बचा सके. दरअसल, कांग्रेस के प्रभारी महासचिव ग़ुलाम नबी आजाद का दांव था कि कांग्रेस अलग लड़ेगी तो दबाव में आकर या तो सपा से एक एक सीट पर समझौता हो जाएगा, और नहीं तो बीजेपी के दोनों सीटों पर जीतने की सूरत में 2019 में सपा बसपा पर महागठबंधन में कांग्रेस ज़्यादा सीटों के लिए दबाव बना लेगी.

आलम ये रहा कि कांग्रेस ने फूलपुर से ब्राह्मण और गोरखपुर से सुनीता करीम को टिकट दिया. ज़्यादा विवाद गोरखपुर सीट को लेकर हुआ, जहां की उम्मीदवार मुस्लिम की पत्नी थीं, कांग्रेस को लगता था कि मुस्लिम मतों के बंटने के डर से सपा एक सीट कांग्रेस को दे देगी.

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बसपा-सपा का समीकरण

कई दौर के बातचीत के बावजूद जब आजाद नहीं माने तो अखिलेश ने बसपा प्रमुख मायावती से बात करके कांग्रेस को चौंका दिया और बिना कांग्रेस के दोनों सीटें जीतकर उसको बड़ा झटका दे दिया. अब कांग्रेस का बैकफुट पर आना लाज़मी था. पार्टी को ये डर भी सता रहा है कि वह खुद मोदी सरकार के खिलाफ मतभेदों को भूलकर गठबंधन की वकालत कर रही है. सोनिया गांधी इसके लिए डिनर डिप्लोमेसी कर रही हैं और यूपी में पार्टी इसी के उलट कदम उठा रही है.

कांग्रेस आलाकमान की आशंका

कांग्रेस आलाकमान को ये आशंका भी है कि अब महागठबंधन में सपा बसपा के सामने सरेंडर करने को मजबूर ना हो जाए. आखिर उपचुनाव से ठीक पहले मायावती की नाराजगी को किनारे करके बसपा से निकाले गए नसीमुद्दीन सिद्दीकी को कांग्रेस में शामिल करा लिया. इतना ही नहीं शिवपाल यादव से पार्टी में शामिल करने को लेकर चर्चा शुरू कर दी, जिससे अखिलेश की भौंहे तनना तय था.

अब पार्टी को ये दिक्कत भी है कि अगर 2014 के लिहाज से टिकट बंटवारे का फॉर्मूला 2019 के लिए तय हुआ तो सिर्फ 2 सीटों पर कांग्रेस जीती थी और 4 सीटों पर वो दूसरे नंबर पर रही थी. ऐसे में अब बसपा और सपा को लेकर कांग्रेस के तेवर नरम हैं. 'आजतक' से बातचीत में प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर ने कहा कि नसीमुद्दीन को तब ज्वॉइन कराया जब वे किसी दल में नहीं थे, इसलिए किसी को नाराज करने का सवाल नहीं है. वहीं शिवपाल को लेकर राजबब्बर ने कहा कि न उनसे हमने बात की और न ही हम कर रहे हैं. उम्मीद है कि 2019 में महागठबंधन बनेगा.

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अब ताजा सियासी समीकरण के मद्देनजर गुलाम नबी आजाद और प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर का बैकफुट पर आना तय है. हालांकि फैसलों की ज़िम्मेदारी आजाद की रही. इसीलिए सूत्रों के मुताबिक जल्दी ही होने वाले फेरबदल में आज़ाद से यूपी का प्रभार वापस लिया जा सकता है।

बैकफुट पर राजबब्बर

वहीं राजबब्बर के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी विधानसभा के बाद निकाय चुनाव भी बुरी तरह हारी, और अब ताजा उपचुनाव का रिज़ल्ट सामने है. पहले भी राजबब्बर खुद राहुल के सामने इस्तीफे की पेशकश कर चुके हैं. राजबब्बर के करीबियों के मुताबिक, अब एक बार फिर राहुल से मिलकर अध्यक्ष पद छोड़ने की पेशकश कर सकते हैं.

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