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कैसे थावर चंद गहलोत की जगह रामनाथ कोविंद बन गए मोदी की पसंद

माना जाता रहा कि मोदी अगर किसी दलित चेहरे को राष्ट्रपति भवन में भेजने का मन बनाते हैं तो थावर चंद गहलोत उनकी पसंद हो सकते हैं.

रामनाथ कोविंद और थावर चंद गहलोत रामनाथ कोविंद और थावर चंद गहलोत
पाणिनि आनंद
  • नई दिल्ली,
  • 19 जून 2017,
  • अपडेटेड 4:14 PM IST

पिछले एक साल से भी ज़्यादा समय से जब-जब भारतीय जनता पार्टी या संघ के भीतरखाने राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार के नामों पर विचार होता था तो एक नाम थावर चंद गहलोत का भी लिया जाता था. माना जाता रहा कि मोदी अगर किसी दलित चेहरे को राष्ट्रपति भवन में भेजने का मन बनाते हैं तो थावर चंद गहलोत उनकी पसंद हो सकते हैं.

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थावर चंद गहलोत दलित हैं. मध्य प्रदेश से भाजपा के सांसद हैं. राज्यसभा के लिए चुने गए हैं और फिलहाल केंद्र सरकार में सामाजिक न्याय एवं सहकारिता मंत्री हैं. भाजपा की राजनीति का अपना चरित्र है. यहां दलित चेहरे होते हैं पर उतने चर्चित नहीं जितने अगड़े. यह भाजपा के विचार का जातीय विधान जैसा है. लेकिन फिर भी जो चेहरे हैं, उनमें थावर चंद एक प्रभावी नाम हैं.

तो फिर ऐसा क्या हुआ कि मध्य प्रदेश के इस दलित की जगह मोदी ने कानपुर के एक अन्य दलित चेहरे को अपनी पसंद बना लिया. दरअसल, मोदी राजनीति में अपनी सूची वहां से शुरू करते हैं जहां से लोगों के कयासों की सूची खत्म होती है. जिन नामों पर लोग विचार करते हैं, ऐसा लगता है कि मोदी उन नामों को अपनी सूची से बाहर करते चले जाते हैं. मोदी को शायद इस खेल में मज़ा भी आता है और इस तरह वो अपने चयन को सबसे अलग, सबसे हटकर साबित भी करते रहते हैं.

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रामनाथ कोविंद का चयन

रामनाथ कोविंद स्वयंसेवक हैं. भाजपा के पुराने नेता हैं. संघ और भाजपा में कई प्रमुख पदों पर रहे हैं. सांसद रहे हैं. एससीएसटी प्रकोष्ठ के प्रमुख का दायित्व भी निभाया है और संगठन की मुख्यधारा की ज़िम्मेदारियां भी. वो कोरी समाज से आने वाले दलित हैं. यानी उत्तर प्रदेश में दलितों की तीसरी सबसे बड़ी आबादी. पहली जाटव और दूसरी पासी है.

कोविंद पढ़े-लिखे हैं. भाषाओं का ज्ञान है. दिल्ली हाईकोर्ट के अधिवक्ता के तौर पर उनका एक अच्छा खासा अनुभव है. सरकारी वकील भी रहे हैं. राष्ट्रपति पद के लिए जिस तरह की मूलभूत आवश्यकताएं समझी जाती हैं, वो उनमें हैं. और मृदुभाषी हैं. कम बोलना और शांति के साथ काम करना कोविंद की शैली है.

अगर योगी को छोड़ दें तो मोदी ऐसे लोगों को ज़्यादा पसंद करते आए हैं जो बोलें कम और सुनें ज़्यादा. शांत लोग मोदी को पसंद आते हैं क्योंकि वो समानांतर स्वरों को तरजीह देने में यकीन नहीं रखते. संघ भी इस नाम से खुश है क्योंकि कोविंद की जड़ें संघ में निहित हैं.

लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि कोविंद उत्तर प्रदेश से आते हैं और मोदी के लिए राजनीतिक रूप से मध्य प्रदेश के दलित की जगह उत्तर प्रदेश के दलित को चुनना हर लिहाज से फायदेमंद है.

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कोविंद के साथ नीतीश का तालमेल भी अच्छा है. उत्तर प्रदेश से होना और बिहार का राज्यपाल होना दोनों राज्यों में सीधे एक संदेश भेजता है. यह संदेश मध्यप्रदेश से जाता तो शायद इतना प्रभावी न होता.

मोदी राजनीति में जिन जगहों पर अपने लिए अधिक संभावना देख रहे हैं उनमें मध्यप्रदेश से कहीं आगे उत्तर प्रदेश का नाम है. बिहार मोदी के लिए एक अभेद्य दुर्ग है और वहां भी एक मज़बूत संदेश भेजने में मोदी सफल रहे.

थावरचंद की जगह कोविंद का चयन मोदी के हक में ज्यादा बेहतर और उचित फैसला साबित होगा.

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