
भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) के गाजियाबाद में राजनगर स्थित दफ्तर के कर्मचारियों ने एक जुलाई से दफ्तर परिसर की सफाई खुद करने का फैसला किया है. इमारत के 10 सफाईकर्मी काम छोड़कर जा चुके हैं. इन सफाईकर्मियों तक सार्वजनिक क्षेत्र के इस उपक्रम (PSU) की खस्ता माली हालत की खबर पहुंच चुकी थी.
BSNL के कर्मचारी कर्मवीर नागर ने बताया, 'अगर जरूरत हुई तो हम सफाईकर्मी रखेंगे और उन्हें अपनी जेब से भुगतान देंगे अन्यथा खुद ही सफाई का काम करेंगे.'
BSNL ने सरकार को आपात पत्र भेजकर तत्काल दखल देने की मांग की है. पत्र में कहा गया है कि BSNL के लिए ऑपरेशन जारी रखना या जून के 850 करोड़ रुपये के सेलरी बिल की व्यवस्था करना करीब-करीब नामुमकिन हो गया है. संस्थान पर लंबित जिम्मेदारियां करीब 13,000 करोड़ रुपये की है. ऐसे में इसके बिजनेस को मौजूदा स्तर पर बनाए रखना मुश्किल हो गया है.
मुनाफे वाला PSU आखिर कैसे चरमराया?
BSNL का संकट दो साल पहले ही शुरू हो गया था, लेकिन ये मामला फरवरी 2019 में तब प्रकाश में आया जब कर्मचारियों को वेतन का भुगतान नहीं हुआ. यूपीए के कार्यकाल में 2008-09 में पहली बार हुआ जब 3G स्पेक्ट्रम को नीलामी से पहले ही प्राइवेट प्लेयर्स को आवंटित कर दिया गया. इसके बावजूद आवश्यक उपकरणों की 2013 तक आपूर्ति नहीं हुई. BSNL के एक आदेश के मुताबिक, संस्तान चीन निर्मित उपकरण की आपूर्ति नहीं ले सकता, जिसकी वजह से कई विलंब हुए.
संस्थान से जुड़े दिल्ली स्थित एक कर्मचारी संघ के प्रमुख ने कहा, 'मौजूदा वक्त में BSNL की मोबाइल मार्केट में हिस्सेदारी सिर्फ 10% रह गई है. लैंडलाइन में ये हिस्सेदारी 70% है. BSNL पर वेंडर्स की मौजूदा देनदारी 6000 करोड़ रुपये की है. अगर वो हमारा वेतन नहीं भी देते हैं, हम चाहते हैं कि वो वेंडर्स की देनदारी को चुकाएं.'
दूरसंचार से जुड़ा ये PSU 2009 तक मुनाफे में था. 2016-17 में इसका घाटा 4,793 करोड़ रुपये था जो 2017-18 में बढ़कर 7,992 करोड़ हो गया. कर्मचारियों का कहना है कि ये घाटा अलग केंद्र सरकारों (यूपीए और अब एनडीए) की नीतियों की वजह से है.
कर्मचारियों पर क्यों डाला जा रहा है आर्थिक बोझ?
2000 से 2009 के बीच ये संस्थान हर साल करीब 10,000 करोड़ रुपये का मुनाफा कमा रहा था. उस वक्त आज के मुकाबले BSNL में कर्मचारियों की संख्या भी ज्यादा करीब 3 लाख थी. अभी BSNL में करीब डेढ़ लाख कर्मचारी हैं.
नीति आयोग का BSNL को बंद करने का प्रस्ताव
2016 में केंद्र सरकार के थिंक टैंक माने जाने वाले नीति आयोग ने BSNL को घाटे में चलने वाले PSUs से जोड़ा. आयोग ने BSNL जैसे खस्ताहाल संस्थान को दुरूस्त करने की जगह बंद करने का प्रस्ताव भी दिया. प्रतिस्पर्धी जहां 5G स्पेक्ट्रम की नीलामी की ओर देख रहे हैं. वहीं, BSNL को 4G के लिए जाने से भी व्यवस्थित ढंग से अलग रखा गया, क्योंकि इससे खजाने को 14,000 करोड़ की लागत आती.
कर्मचारियों का कहना है कि प्राइवेट प्लेयर्स से BSNL की तुलना अनुचित है. जियो, वोडाफोन, एयरटेल जैसे प्राइवेट प्लेयर्स आउटसोर्सिंग मॉडल को ऑपरेशन के लिए अपनाते हैं. वहीं, BSNL एक PSU है जहां कर्मचारी पूर्णकालिक हैं. संस्थान के पास फंड की कमी से 20% टॉवर्स की बिजली आपूर्ति बाधित है.
कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे कुछ राज्य हैं जहां बिजली की आपूर्ति अब भी की जा रही है. पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में 500 BTS से ज्यादा ठप हो गए हैं. ये मामला दूरसंचार विभाग के पास कर्ज की अनुमति के लिए अटका पड़ा है. सवाल ये है कि BSNL अगर कर्ज लेता है तो उसका भुगतान कैसे करेगा.
दूरसंचार विभाग (DoT) संस्थान को बैंकों के पास जाने की अनुमति नहीं दे रहा, जहां तक पुनरुद्धार पैकेज की बात चलने का सवाल है, तो कर्मचारियों को इंतजार है कि सरकार PSU के दिन प्रतिदिन के कामकाज को सुचारू रखने के लिए क्या कदम उठाती है. अब देखना है PSU में दोबारा जान फूंकने के लिए दखल देती है या इसे ICU में वापस भेज देती है.