
कैग ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया है कि रेलवे ने सुपर फास्ट ट्रेनों की सुविधा प्रदान किए बिना यात्रियों से सुपर फास्ट सेस वसूला और इस मद में रेलवे ने तकरीबन 11 करोड़ 17 लाखों रुपये की उगाही की. कैग रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर मध्य और दक्षिण मध्य रेलवे ने 2013-14 से 2015-16 के दौरान सुपरफास्ट ट्रेनों के नाम पर यात्रियों से ज्यादा किराया वसूला.
गौरतलब है रेलवे बोर्ड के 2006 के कमर्शियल सर्कुलर के नियमों के मुताबिक, सुपरफास्ट चार्ज लगाने के उद्देश्य से ट्रेनों की औसत गति का मापदंड है. ट्रेनों को सुपरफास्ट ट्रेन के रूप में घोषित करने के लिए रेलवे बोर्ड ने ब्राडगेज ट्रेनों के लिए औसत गति 55 किलोमीटर प्रति घंटा और मीटर गेज ट्रेनों के लिए 45 किलोमीटर प्रति घंटा या उससे अधिक निर्धारित की है.
जोनल रेलवे को किसी ट्रेन को सुपरफास्ट ट्रेन के रूप में घोषित करने की पावर है. सुपरफास्ट अधिभार रेलवे बोर्ड द्वारा समय समय पर निर्धारित किया जाता रहा है. रेलवे बोर्ड ने कोचों की विभिन्न श्रेणियों के लिए सुपरफास्ट अधिभार सामान्य/दूसरी श्रेणी, स्लीपर श्रेणी, एसी चेयरकार (एसी 3 टीयर, प्रथम श्रेणी, एसी 2) और AC फर्स्ट/ एग्जीक्यूटिव क्लास के लिए क्रमश: 15 रुपये, 30 रुपये, 45 रुपये और 75 रुपये निर्धारित किया है, जो 1 अप्रैल 2013 से लागू हैं. यात्रा की दूरी कितनी भी हो सुपरफास्ट चार्ज प्रत्येक यात्रा के लिए लागू होते हैं.
कैग ने उत्तर मध्य और दक्षिण मध्य रेलवे में जांच की और 2013-14 से 2015-16 के दौरान सुपरफास्ट ट्रेनों के समयपालन पर डाटा का अध्ययन किया. एकीकृत कोच प्रबंधन प्रणाली से मिले डाटा से मालूम हुआ कि 11 सुपरफास्ट ट्रेनों (उत्तर मध्य रेलवे की 36 सुपर फास्ट ट्रेनों में से) और 10 सुपरफास्ट ट्रेनों (दक्षिण मध्य रेलवे की 70 सुपरफास्ट ट्रेनों में से) के चलने की स्थिति की जांच की गई.
1- 21 सुपरफास्ट ट्रेनों अपने परिचालन या चलने के दिन से अपने गंतव्य स्टेशन पर 13.48 फीसदी और 95.17 प्रतिशत दिन देरी से पहुंची.
2- इन सुपरफास्ट ट्रेनों के ट्रेन परिचालन के 16804 दिनों में से ट्रेन अपने गंतव्य स्टेशनों पर 5599 दिन देरी से पहुंची.
3- 5599 दिनों में से जब ट्रेनें देरी से पहुंची सुपरफास्ट ट्रेनों ने 3000 बार 55 किलोमीटर प्रति घंटा की औसत गति का मापदंड पूरा नहीं किया.
4- लेखा परीक्षा में समीक्षा की गई 21 ट्रेनों में से 11 ट्रेनें अपने चलने के 30% से अधिक दिनों में देरी से पहुंची. कोलकाता-आगरा कैंट एक्सप्रेस गाड़ी संख्या 12319 और जयपुर इलाहाबाद एक्सप्रेस 12404 अपने गंतव्य पर क्रमशः 95% और 68% बार देरी से पहुंची.
5- कैग ने पाया कि 21 ट्रेनों में से 10 ट्रेनें अपने चलने के 30% से कम विलंबित थी. शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेन संख्या 12034 और कानपुर बांद्रा एक्सप्रेस 22444 क्रमशः 25% और 24% बार देरी से चली थी.
कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, कोचों के संयोजन के आधार पर उत्तर मध्य रेलवे और दक्षिण मध्य रेलवे ने 2013-14 से 2015-16 की अवधि के दौरान उन दिनों पर जहां इन 21 ट्रेनों ने सुपरफास्ट ट्रेन की आवश्यक स्पीड प्राप्त नहीं की थी, लेकिन यात्रियों से सुपरफास्ट अधिभार की वसूली की गई. इन आंकड़ों के मुताबिक, 11.17 करोड़ रुपये की धनराशि इस दौरान सुपर फास्ट चार्ज के तौर पर वसूली गई.
रेलवे में मौजूदा एसी कोचों की वातानुकूलन सुविधा प्रदान करने में विफलता पर प्रभारों की वापसी का नियम है. जिसमें रेलवे को एसी और गैर एसी श्रेणी के टिकटों के किराए के अंतर को वापस करना होता है. इसके बावजूद यहां यात्रियों को सुपरफास्ट सेवाएं प्रदान नहीं की गई, वहां पर यात्रियों को सुपर फास्ट चार्ज की वापसी के लिए रेलवे बोर्ड द्वारा नियम नहीं बनाए गए हैं. सुपरफास्ट अधिभार के इस तरह के वसूली के मामलों में संज्ञान रेलवे बोर्ड को जनवरी 2017 में भेजा गया था, लेकिन अभी तक रेलवे ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया है.