
बिहार की सत्ता में साझेदार राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू यादव का पूरा परिवार नई मुसीबत में घिरता दिख रहा है. लालू यादव पर आरोप है कि उन्होंने रेलमंत्री रहते हुए बड़ी वित्तीय गड़बड़ियां कीं. इस मामले में आरजेडी सुप्रीमो के अलावा उनकी पत्नी राबड़ी देवी, बिहार के उप मुख्यमंत्री और उनके बेटे तेजस्वी यादव के अलावा चार अन्य लोगों का नाम आया है. सीबीआई ने गुरुवार को इस मामले में भ्रष्टाचार का नया केस दर्ज करते हुए पटना में सर्कुलर रोड स्थित राबड़ी देवी के आवास सहित पटना, रांची, गुरुग्राम और भुवनेश्वर में 12 जगहों पर छापेमारी की.
CBI ने खोला लालू के 'भ्रष्टाचार' का कच्चा चिट्ठा
इस मामले की शुरुआती सीबीआई जांच में कई गंभीर गड़बड़ियां सामने आई. सीबीआई की एफआईआर के मुताबिक, इस मामले की जड़े 2001 में तत्कालीन एनडीए सरकार के उस फैसले तक जाती हैं जब उसने रेलवे के होटलों की कैटरिंग सेवाओं का प्रबंधन आईआरसीटीसी को सौंपने का फैसला किया था. रेलवे बोर्ड ने 2001 में फैसला लिया कि कैटरिंग सर्विस और रांची तथा पुरी स्थित रेलवे के होटल बीएनआर का संचालन भारतीय रेलवे से लेकर आईआरसीटीसी को दे दिया जाएगा. इसके ठीक बाद जब 2004 में लालू रेलमंत्री बने, तो उन्होंने सुजाता होटल्स के मलिक हर्ष और विनय कोचर, लालू यादव के करीबी पीसी गुप्ता की पत्नी सरला गुप्ता और आईआरसीटीसी के अधिकारियों के साथ मिलकर कथित तौर पर आपराधिक साजिश रची. इन लोगों ने साजिश के तहत होटलों पर अधिकार पाने के लिए पूरी योजना बनाई और एक साथ ही कई काम हुए.
महज डेढ़ करोड़ रुपये में दे दी बेशकीमती जमीन
सीबीआई के मुताबिक, इसी साजिश के तहत विनय कोचर ने 25 फरवरी, 2005 को पटना में तीन एकड़ की प्राइम लैंड महज 1.47 करोड़ रुपये में डिलाइट मार्केटिंग को बेच दी, जो कि सर्किल रेट से काफी कम थी. प्राथमिकी में कहा गया है कि इस कंपनी का मालिकाना हक प्रेमचंद गुप्ता की पत्नी सरला गुप्ता के पास था, लेकिन हकीकत में यह लालू यादव की ही बेनामी कंपनी थी.
IRCTC के टेंडर में भी हुई गड़बड़ी
सीबीआई का आरोप है कि इस सौदे के दिन ही रेलवे बोर्ड ने बीएनआर होटल आईआरसीटीसी को सौंपने का ऐलान किया और फिर दोनों होटलों का प्रबंधन कोचर बंधुओं की कंपनी को सौंप दिया गया. इसके लिए जो टेंडर निकाला गया वह भी गलत था और उसमें साजिश की गई. सीबीआई के मुताबिक, इस मामले में आईआरसीटीसी के तत्कालीन प्रबंध निदेशक पीके गोयल ने भी कथित रूप से धांधली की थी.
केंद्रीय जांच एजेंसी का आरोप है कि टेंडर की शर्तों में फेरबदल की गई, ताकि इस टेंडर के लिए सुजाता होटल को एकमात्र दावेदार बनाया जा सके. यहां दोनों होटलों के लिए 15 से ज्यादा टेंडर दस्तावेज हासिल किए गए, लेकिन सुजाता होटल के अलावा किसी दूसरी कंपनी का कोई रिकॉर्ड नहीं है.
लालू के परिवार को यूं हुआ फायदा
सीबीआई के मुताबिक, रेलमंत्री के तौर पर लालू ने टेंडर प्रक्रिया पर नजर रखी. सीबीआई ने दावा किया कि साल 2010 और 2014 के बीच डिलाइट मार्केटिंग का मालिकाना हक भी सरला गुप्ता से लारा प्रोजेक्ट्स के हाथों में चला गया, जिसका स्वामित्व राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव के पास है.
एफआईआर में कहा गया है कि इस सौदे के वक्त लालू रेलमंत्री नहीं थे. वहीं पटना की उस जमीन की कीमत भी तब तक सर्किल रेट के अनुसार बढ़कर 32.5 करोड़ रुपये हो गई. सीबीआई का आरोप है कि पीसी गुप्ता के परिवार के सदस्यों ने 32.5 करोड़ रुपये नेटवर्थ की कंपनी का शेयर मात्र 65 लाख रुपये के मामूली दाम पर लालू प्रसाद यादव के परिवार को ट्रांसफर कर दिया.
आरोपियों के खिलाफ लगी हैं ये धाराएं
सीबीआई ने इस मामले में लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी, तेजस्वी प्रसाद यादव, सरला गुप्ता, विजय कोचर, विनय कोचर, लारा प्रोजेक्ट्स और आईआरसीटीसी के पूर्व महानिदेशक पीके गोयल के खिलाफ आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी), 120बी (साझा साजिश यानी कॉमन कॉन्सपिरेसी) के अलावा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (पीसी एक्ट) की धाराओं 13(2) और 13(1) (डी) के तहत एफआईआर दर्ज किया है.