
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के दूसरे मून मिशन Chandrayaan-2 की लॉन्चिंग तकनीकी कारणों से रोक दी गई है. लॉन्च से 56.24 मिनट पहले चंद्रयान-2 का काउंटडाउन रोक दिया गया है. अगली तारीख की घोषणा जल्द की जाएगी. चंद्रयान-2 को 15 जुलाई को तड़के 2.51 बजे देश के सबसे ताकतवर बाहुबली रॉकेट GSLV-MK3 से लॉन्च किया जाना था. इसरो वैज्ञानिक ये पता करने की कोशिश कर रहे हैं कि लॉन्च से पहले ये तकनीकी कमी कहां से आई. इसरो प्रवक्ता बीआर गुरुप्रसाद ने इसरो की तरफ से बयान देते हुए कहा कि जीएसएलवी-एमके3 लॉन्च व्हीकल (रॉकेट) में खामी आने की वजह से लॉन्चिंग रोक दी गई है. लॉन्चिंग की अगली तारीख जल्द ही घोषित की जाएगी.
लॉन्च से करीब 56.24 मिनट पहले इसरो मीडिया सेंटर और विजिटर गैलरी में लाइव स्क्रीनिंग रोक दी गई. कमी देखते ही लॉन्च की प्रक्रिया रोक दी गई. इस रुकावट की वजह से इसरो वैज्ञानिकों की 11 साल की मेहनत को छोटा सा झटका लगा है. हालांकि, इसरो वैज्ञानिकों द्वारा अंतिम क्षणों में यह तकनीकी कमी खोज लेना बड़ा कदम है. अगर इस कमी के साथ रॉकेट छूटता तो बड़ा हादसा हो सकता था. यह वैज्ञानिकों की महारत है कि उन्होंने गलती खोज ली है. इसे जल्द ही ठीक करके वे लॉन्च की नई तारीख घोषित करेंगे.
ये हैं संभावित कारण
इससे पहले पिछले साल जीसैट-11 को मार्च-अप्रैल में भेजा जाना था लेकिन जीसैट-6ए मिशन के नाकाम होने के बाद इसे टाल दिया गया. 29 मार्च को रवाना जीसैट-6ए से सिग्नल लॉस की वजह इलेक्ट्रिकल सर्किट में गड़बड़ी हो गई थी. ऐसी आशंका थी कि जीसैट-11 में यही दिक्कत सामने आ सकती है, इसलिए इसकी लॉन्चिंग को रोक दिया गया था. इसके बाद कई टेस्ट किए गए और पाया गया कि सारे सिस्टम ठीक हैं. फिर इसकी लॉन्चिंग 5 दिसंबर 2018 को की गई. उस समय भी इसरो को जांच संबंधी सारी प्रक्रिया पूरी करने में काफी समय लगा था.
इसरो ने 2013 में जीएसएलवी डी-5 रॉकेट का प्रक्षेपण भी ईंधन रिसाव के चलते स्थगित कर दिया था. तब इसरो के तत्कालीन चेयरमैन के राधाकृष्णन ने यह घोषणा की थी. उन्होंने कहा था कि ईंधन रिसाव के चलते हम जीएसएलवी डी-5 का प्रक्षेपण स्थगित कर रहे हैं. अब हम रॉकेट को असेंबली बिल्डिंग ले जाएंगे. डाटा का आकलन करेंगे. ईंधन रिसाव के कारण का पता लगाएंगे. तब भी लॉन्चिंग तय समय से 74 मिनट पहले रोक दी गई थी.
इसरो के लिए क्यों अहम है चंद्रयान-2 मिशन, पांच बड़े कारण
1. वैज्ञानिक क्षमता दिखाना - जब रूस ने मना किया तो ISRO वैज्ञानिकों ने खुद बनाया लैंडर-रोवर
नवंबर 2007 में रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस ने कहा था कि वह इस प्रोजेक्ट में साथ काम करेगा. वह इसरो को लैंडर देगा. 2008 में इस मिशन को सरकार से अनुमति मिली. 2009 में चंद्रयान-2 का डिजाइन तैयार कर लिया गया. जनवरी 2013 में लॉन्चिंग तय थी, लेकिन रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस लैंडर नहीं दे पाई. इसरो ने चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग मार्च 2018 में तय की. लेकिन कुछ टेस्ट के लिए लॉन्चिंग को अप्रैल 2018 और फिर अक्टूबर 2018 तक टाला गया. इस बीच, जून 2018 में इसरो ने फैसला लिया कि कुछ बदलाव करके चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग जनवरी 2019 में की जाएगी. फिर लॉन्च डेट बढ़ाकर फरवरी 2019 किया गया. अप्रैल 2019 में भी लॉन्चिंग की खबर आई थी. इस मिशन की सफलता से यह साफ हो जाएगा कि हमारे वैज्ञानिक किसी के मोहताज नहीं हैं. वे कोई भी मिशन पूरा कर सकते हैं.
क्या चांद पर मानव बस्ती बन पाएगी? Chandrayaan-2 से क्या है उम्मीद
2. इसरो का छोटा सा कदम, भारत की छवि बनाने की लंबी छलांग
अपने दूसरे मून मिशन चंद्रयान-2 के साथ ISRO अंतरिक्ष विज्ञान की दुनिया में हो सकता है कि छोटा कदम रख रहा हो, लेकिन यह भारत की छवि बनाने के लिए एक लंबी छलांग साबित हो सकती है. क्योंकि अभी तक दुनिया के पांच देश ही चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करा पाए हैं. ये देश हैं - अमेरिका, रूस, यूरोप, चीन और जापान. इसके बाद भारत ऐसा करने वाला छठा देश होगा. हालांकि, रोवर उतारने के मामले में चौथा देश है. इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन चांद पर लैंडर और रोवर उतार चुके हैं.
सरहद के सिपाही से खेत के किसान तक, कैसे सबके लिए मददगार है ISRO
3. कठिन जगह का चुनावः चांद पर जगह वह चुनी, जहां अभी तक कोई देश नहीं पहुंचा है
इसरो के अनुसार चंद्रयान 2 भारतीय मून मिशन है जो पूरी हिम्मत से चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरेगा जहां अभी तक कोई देश नहीं पहुंचा है यानी कि चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र. इसका मकसद, चंद्रमा के प्रति जानकारी जुटाना. ऐसी खोज करना जिनसे भारत के साथ ही पूरी मानवता को फायदा होगा. इन परीक्षणों और अनुभवों के आधार पर ही भावी चंद्र अभियानों की तैयारी में जरूरी बड़े बदलाव लाए जाएंगे. ताकि आने वाले दौर के चंद्र अभियानों में अपनाई जाने वाली नई टेक्नोलॉजी को बनाने और उन्हें तय करने में मदद मिले.
छोटे सैटेलाइट छोड़ने में ISRO अव्वल, फिर भी अंतरिक्ष बाजार में हिस्सेदारी कम
4. सबसे ताकतवर रॉकेट GSLV Mk-III का उपयोग हो रहा है चंद्रयान-2 मिशन में
GSLV Mk-III भारत का अब तक का सबसे शक्तिशाली लॉन्चर है. इसे पूरी तरह से देश में ही बनाया गया है. तीन स्टेज का यह रॉकेट 4 हजार किलो के उपग्रह को 35,786 किमी से लेकर 42,164 किमी की ऊंचाई पर स्थित जियोसिनक्रोनस ऑर्बिट में पहुंचा सकता है. या फिर, 10 हजार किलो के उपग्रह को 160 से 2000 किमी की लो अर्थ ऑर्बिट में पंहुचा सकता है. इस रॉकेट के जरिए 5 जून 2017 को जीसेट-19 और 14 नवंबर 2018 को जीसेट-29 का सफल प्रक्षेपण किया जा चुका है. ऐसी उम्मीद भी है कि इसरो के मानव मिशन गगनयान को इसी रॉकेट के अत्याधुनिक अवतार से भेजा जाएगा.
वो 11 बड़े मौके जब ISRO ने अपनी ताकत से पूरी दुनिया को हैरान कर दिया
5. चांद पर इसरो का चंद्रयान-2 ऐसा क्या खोजेगा जो दुनिया को हैरान कर दे
चंद्रयान-2 का लैंडर विक्रम जहां उतरेगा उसी जगह पर यह जांचेगा कि चांद पर भूकंप आते है या नहीं. वहां थर्मल और लूनर डेनसिटी कितनी है. रोवर चांद के सतह की रासायनिक जांच करेगा. तापमान और वातावरण में आद्रता (Humidity) है कि नहीं. चंद्रमा की सतह पर पानी होने के सबूत तो चंद्रयान 1 ने खोज लिए थे लेकिन चंद्रयान 2 से यह पता लगाया जा सकेगा कि चांद की सतह और उपसतह के कितने भाग में पानी है.