
छत्तीसगढ़ की मशहूर लोक गायिका सुरुजबाई खांडे का दिल का दौरा पड़ने से शनिवार निधन हो गया. उन्होंने भरथरी गायन को देश- विदेश में पहचान दिलाई थी. मुख्यमंत्री रमन सिंह समेत कई लोक कलाकारों और गायकों ने सुरुजबाई खांडे के निधन पर शोक संवेदना प्रकट की.
सुरुजबाई के निधन से छत्तीसगढ़ के लोक संगीत की समृद्ध और गौरवशाली परंपरा को गहरा धक्का लगा है. सुरुजबाई ने छत्तीसगढ़ी लोक संगीत की इस अनोखी विधा को अपनी कला प्रतिभा के जरिए देश-विदेश में पहुंचाकर राज्य का नाम रौशन करने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी.
मरते दम तक नहीं छोड़ा भरथरी गायन
मान-सम्मान और पुरस्कारों को लेकर कभी भी उन्होंने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. श्रोताओं के बीच पहुंचकर भरथरी गायन से रूबरू होना उनका खास मकसद था. श्रोताओं की तालियां और उनका मंत्रमुग्ध हो जाना ही सुरुजबाई का असल पुरुस्कार था. सोवियत रूस सहित कई देशों और भारत के अधिकांश राज्यों में 80-90 के दशक में भरथरी लोक कथा को गाने वाली लोक गायिका सुरुजबाई खांडे ने मृत्यु के कुछ दिन पहले ही एक कार्यक्रम में भरथरी गायन पेश किया था.
उन्होंने देश दुनिया में अपनी अमिट पहचान बनाई. सुरुजबाई ने रूस सहित लगभग 18 देशों में अपनी कला की प्रस्तुति दी थी. इसके साथ ही वो देश में भोपाल, दिल्ली, इंदौर, सिरपुर, ओडिशा, महाराष्ट्र जैसे लगभग सभी राज्यों में विभिन्न मौकों पर हुए कार्यक्रम में अपनी प्रस्तुति दे चुकी हैं.
लोक कलाकारों ने दी अंतिम विदाई
बिलासपुर जिले के ग्रामीण और सामान्य परिवार में पैदा हुईं सुरुजबाई खांडे ने महज सात साल की उम्र में अपने नाना रामसाय धृतलहरे से भरथरी, ढोला-मारू, चंदैनी जैसी लोक कथाओं को सीखना शुरू किया था. भरथरी गायन छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत का बेजोड़ नमूना है.
कुछ माह के रियाज के बाद सुरुज अच्छा गाने लगीं. उनकी गायिकी की मांग ने जोर पकड़ा और देखते ही देखते वो ग्रामीण अंचलों से लेकर शहरों के मंचों में छा गई. उनकी अचानक मौत से लोक कलाकारों को गहरा धक्का लगा है. भरथरी गायन की नई विधाओं पर वो काम कर रही थीं. एक सादे समारोह में लोक कलाकारों, गायकों और समाज के विभिन्न विधा से जुड़े लोगों ने उन्हें अंतिम विदाई दी.