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मोदी सरकार ने बदले UPA काल के GDP के आंकड़े, बौखलाए चिदंबरम बोले- नीति आयोग बंद हो

पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणब सेन का हवाला देते हुए कहा है कि नीति आयोग का आंकड़ों के सारणीकरण में कोई भूमिका नहीं है. नीति आयोग के उपाध्यक्ष को इन आंकड़ों पर बहस करनी चाहिए ना कि पत्रकारों से यह कहना चाहिए कि उनका प्रश्न जवाब के लायक ही नहीं है.

पी चिदंबरम, पूर्व वित्त मंत्री (फाइल फोटो-पीटीआई) पी चिदंबरम, पूर्व वित्त मंत्री (फाइल फोटो-पीटीआई)
विवेक पाठक
  • नई दिल्ली,
  • 28 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 7:50 AM IST

केंद्र की मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार के दस साल के कार्यकाल के अधिकांश वर्षों के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़े घटा दिए हैं. जिसकी वजह से यूपीए सरकार के दौरान जीडीपी के आंकड़ों में एक से दो फीसदी से ज्यादा की कमी आ गई. पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने आंकड़े जारी करने वाले नीति आयोग पर हमला बोलते हुए कहा है कि इस बेकार संस्था को बंद कर दिया जाना चाहिए.

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दरअसल नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार और मुख्य सांख्यिकीविद प्रवीण श्रीवास्तव ने बुधवार को जीडीपी का संशोधित आंकड़ा जारी किया. जिसमें आंकड़ों को 2004- 05 के आधार वर्ष के बजाय 2011- 12 के आधार वर्ष के हिसाब से संशोधित किया गया है, ताकि अर्थव्यवस्था की अधिक वास्तविक तस्वीर सामने आ सके. इससे यूपीए सरकार के कार्यकाल के उस एकमात्र वर्ष के आंकड़ों में भी एक प्रतिशत से अधिक कमी आई है जब देश ने दो अंकों में वृद्धि दर्ज की थी. इसके अलावा 9 फीसदी से अधिक की वृद्धि दर वाले तीन वर्षों के आंकड़ों में भी एक फीसदी की कमी आई है.

सरकार द्वारा संशोधित आंकड़ों में पूर्ववर्ति यूपीए सरकार का आंकड़ा कम किए जाने पर पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए ट्वीट में लिखा, 'नीति आयोग के संशोधित GDP आंकड़े एक मजाक हैं. वे एक बुरा मजाक हैं. असल में वे एक बुरे मजाक से भी बदतर हैं. इन आंकड़ों का उद्देश्य मान सम्मान को धक्का पहुंचाना है. अब जब नीति आयोग ने मान सम्मान को धक्का पहुंचाने का काम किया है, तब समय आ गया है कि इस पूरी तरह से बेकार संस्था को बंद कर दिया जाना चाहिए. इससे पहले के आंकड़ों की गणना राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग करती थी. क्या आयोग को भंग कर दिया गया है?'

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केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा जारी ताजा समायोजित आंकड़ों के अनुसार 2010-11 में अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 8.5 फीसदी रही थी. जबकि इसके पहले 10.3 फीसदी वृद्धि का अनुमान लगाया गया था. इसी तरह 2005-06 और 2006-07 के 9.3-9.3 फीसदी के वृद्धि दर के आंकड़ों को घटाकर क्रमश: 7.9 और 8.1 प्रतिशत किया गया है. इसी तरह 2007-08 के 9.8 फीसदी के वृद्धि दर के आंकड़े को घटाकर 7.7 प्रतिशत किया गया है. संशोधित वृद्धि दर के आंकड़े 2019 के आम चुनाव से पहले जारी किए गए हैं.

नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने मुख्य सांख्यिकीविद प्रवीण श्रीवास्तव के साथ संयुक्त प्रेस वार्ता में कहा कि आंकड़ों के दो सेट में अंतर अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों मसलन खनन, उत्खनन और दूरसंचार क्षेत्र के आंकड़ों के हिसाब से नए सिरे से सुधार करने की वजह से आया है.

यह पूछे जाने पर कि क्या यह संयोग है कि सिर्फ संप्रग के कार्यकाल के जीडीपी आंकड़ों में संशोधन किया गया है, कुमार ने कहा कि यह संयोग नहीं है, बल्कि सीएसओ अधिकारियों द्वारा की गई कड़ी मेहनत का नतीजा है. उन्होंने कहा कि इसके लिए जो तरीका अपनाया गया है उसे प्रमुख सांख्यिकीविदों ने जांचा है.

कुमार ने कहा कि सरकार का इरादा गुमराह करने या जानबूझकर कुछ करने का नहीं है. वैश्विक वित्तीय संकट के दौर में 2008-09 के वृद्धि दर के आंकड़ों को 3.9 से घटाकर 3.1 प्रतिशत किया गया है. 2009-10 के लिए इसे 8.5 से घटाकर 7.9 प्रतिशत और 2011-12 के लिए 6.6 से घटाकर 5.2 प्रतिशत किया गया है.

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मौजूदा आंकड़े अगस्त 2018 में जारी पुरानी श्रृंखला के आंकड़ों से पूरी तरह विरोधाभासी हैं. उस समय राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग द्वारा नियुक्त वास्तविक क्षेत्र सांख्यिकी समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि संप्रग सरकार के कार्यकाल 2004-05 से 2013-14 के दौरान अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर मौजूदा सरकार के पिछले चार साल की औसत वृद्धि दर से अधिक रही है. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में 2006-07 में वृद्धि दर 10.08 प्रतिशत रही थी जो 1991 में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के बाद से सबसे ऊंची वृद्धि दर है. इस समिति की रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया गया. राजीव कुमार ने कहा कि उन्होंने जो तरीका अपनाया वह खामियों वाला था.

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