
साठ साल पुराने नागरिकता कानून को बदलने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने पूरी तैयारी कर ली है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह सोमवार को लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 (Citizenship Amendment Bill) पेश करने वाले हैं. यह विधेयक लोकसभा में दैनिक कामकाज के तहत सूचीबद्ध है. इस बावत पार्टी ने अपने सांसदों को 3 दिनों के लिए व्हिप जारी किया है. अगर यह बिल कानून बन जाता है तो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के कारण वहां से भागकर आए हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों को CAB के तहत भारत की नागरिकता दी जाएगी.
मुसलमानों को नागरिकता नहीं
नागरिकता संशोधन बिल ने भारत में एक बार फिर से पहचान की बहस छेड़ दी है. राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस विधेयक को लेकर विपक्ष की ओर से विरोध के स्वर उठ रहे हैं. दरअसल इस बिल के प्रावधान के मुताबिक पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले मुसलमानों को भारत की नागरिकता नहीं दी जाएगी. कांग्रेस समेत कई पार्टियां इसी आधार पर बिल का विरोध कर रही हैं.
बिल के समर्थन में शिवसेना
एनडीए की सहयोगी रही शिवसेना जो अब कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार चला रही है, इस बिल का समर्थन करेगी. जबकि कांग्रेस-एनसीपी और कुछ विपक्षी पार्टियां इस बिल का विरोध करेंगे. विपक्षी पार्टियों को कहना कि धर्म के आधार पर देश को बांटने की कोशिश है, जबकि शिवसेना के सांसद संजय राउत का कहना है कि महाराष्ट्र में सरकार अपनी जगह और देश के प्रति कमिटमेंट एक जगह है. इसलिए हम लोग इस बिल का समर्थन करेंगे.
असम में बिल का प्रचंड विरोध
असम में इस बिल का जोरदार विरोध हो रहा है. असम के कई संगठन और पार्टियां इस बिल का ये कह कर विरोध कर रही हैं कि इससे असमिया पहचान पर संकट आएगी और उनकी पहचान प्रभावित होगी. असम में चर्चा है कि ये बिल कानून बनने के बाद 1985 में हुए असम समझौते के प्रावधानों को बेअसर कर देगा. इसके मुताबिक असम में 24 मार्च 1971 से पहले आए लोगों को असम की नागरिकता दी गई थी.
ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (AASU) इस बिल का जोरदार विरोध कर रही है. AASU ने रविवार शाम को बिल के विरोध में मशाल जुलूस निकाला. AASU से जुड़े डॉ समुज्जल कुमार ने कहा कि बीजेपी को बांग्लादेशियों को वोट चाहिए इसलिए पार्टी CAB लेकर आ रही है. उन्होंने कहा कि अगर CAB इनर लाइन परमिट एरिया के लिए ठीक नहीं है, 6 अनुसूची के तहत आने वाले इलाकों के लिए ठीक नहीं है, तो फिर ये असम के दूसरे हिस्सों और पूर्वोत्तर के लिए ठीक कैसे हो सकती है.
अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड मिजोरम को छूट
रिपोर्ट के मुताबिक अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिजोरम के उन इलाकों में जहां इनर लाइन परमिट की व्यवस्था लागू है उसे CAB के दायरे से बाहर रखा गया है. आईएलपी भारत सरकार द्वारा जारी एक आधिकारिक यात्रा दस्तावेज है जिसके तहत सुरक्षित इलाके में एक सीमित अवधि के लिए ही भारत के नागरिकों को यात्रा की अनुमति प्रदान की जाती है.
आईएएनएस की रिपोर्ट के मुताबिक राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस विधेयक में असम, मेघालय और त्रिपुरा के जनजातीय इलाकों को छोड़ दिया जाएगा. ये ऐसे जनजातीय इलाके हैं जहां संविधान की छठी अनुसूची के तहत स्वायत्त परिषद व जिले बनाए गए हैं.
बिल के विरोध में कांग्रेस
कांग्रेस शुरू से ही इस बिल का विरोध कर रही है. पार्टी ने इस बिल को असंवैधानिक करार दिया है. कांग्रेस ने कहा है कि भारत जैसे सेकुलर देश में धर्म के आधार नागरिकता नहीं दी जा सकती है. रविवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के आवास पर संसदीय दल की बैठक के बाद पार्टी ने बिल का विरोध करने का फैसला किया है. बैठक के बाद लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा, "यह विधेयक हमारे संविधान के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने, संस्कृति, परंपरा और सभ्यता के खिलाफ है."
कांग्रेस ने पहले ही फैसला कर लिया है कि इस बिल का विरोध करने के लिए वह समान सोच वाली पार्टियों से बातचीत करेगी. हालांकि निचले सदन लोकसभा में जहां बीजेपी को बहुमत है वहां कांग्रेस ज्यादा कुछ नहीं कर सकेगी लेकिन उच्च सदन राज्यसभा में वह इस विधेयक को रोक सकती है.
शिवसेना का कदम अहम
कांग्रेस ने तो CAB के विरोध का फैसला कर लिया है, लेकिन अब शिवसेना इस मुद्दे पर क्या कदम उठाती है, ये देखना अहम होगा. शिवसेना पारंपरिक रूप से किसी भी देश से आए हिन्दुओं को भारत की नागरिकता देने के पक्ष में रही है. लेकिन बीजेपी-शिवसेना की राहें अब जुदा है. शिवसेना अब महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ सरकार चला रही है. लिहाजा अब ये देखना अहम होगा कि शिवसेना इस बिल का समर्थन करती है या फिर विरोध में उतरती है या तटस्थ रास्ता अपनाती है.
वाम दलों ने भी किया विरोध
वामपंथी पार्टियों ने भी इस बिल का विरोध करने का निर्णय किया है और वे इसमें संशोधन चाहते हैं. सीपीआई ने कहा है कि वह बिल से पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान का नाम हटाना चाहती है और वह चाहती है कि किसी भी पड़ोसी देश के शरणार्थी को इस बिल में शामिल किया जाए. सीपीआई महासचिव डी राजा ने कहा कि केंद्र सरकार हिन्दुस्तान के समाज का धुव्रीकरण करने की कोशिश कर रही है.
लोकसभा में बीजेपी को है बहुमत
बता दें कि लोकसभा में बीजेपी को स्पष्ट बहुमत है. इसलिए विपक्ष के विरोध के बावजूद बीजेपी को लोकसभा से इस बिल को पास कराने में कोई दिक्कत नहीं होगी. 545 सदस्यों वाली लोकसभा में बीजेपी के 303 सदस्य हैं. बता दें कि बीजेपी ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में अपने घोषणापत्र में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए हिन्दुओं को भारत की नागरिकता देने का वादा किया था.