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PM मोदी को गंगापुत्र की आखिरी चिट्ठी, जवाब के इंतजार में जीडी अग्रवाल ने त्यागे प्राण

जीडी अग्रवाल कहते थे, "मैंने सुश्री उमा भारती जी को कोई जवाब नहीं दिया. मेरा यह अनुरोध है कि आप निम्नलिखित चार वांछित आवश्यकताओं को स्वीकार करें जो मेरे 13 जून 2018 को आपको लिखे गए पत्र में सूचीबद्ध हैं. यदि आप असफल रहे तो मैं अनशन जारी रखते हुए अपना जीवन त्याग दूंगा."

क्रेडिट - पीटीआई फाइल फोटो क्रेडिट - पीटीआई फाइल फोटो
विवेक पाठक
  • नई दिल्ली,
  • 12 अक्टूबर 2018,
  • अपडेटेड 10:07 AM IST

गंगा को अविरल बनाने से लिए 'गंगा संरक्षण प्रबंधन अधिनियम' की मांग को लेकर अनशन पर बैठे प्रोफेसर जीडी अग्रवाल का गुरुवार ऋषिकेश के एम्स में निधन हो गया. प्रोफेसर अग्रवाल पिछले 111 दिन से अनशन पर थे और मंगलवार को उन्होने जल भी त्याग दिया था. जिसके बाद प्रशासन ने उन्हें जबरन उठाकर एम्स में भर्ती करा दिया.

प्रोफेसर जीडी अग्रवाल को स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद के नाम से भी जाना जाता था. जिन्होंने गंगा की अविरलता सुनिश्चित करने के लिए अपनी पूरा जीवन समर्पित कर दिया. उनकी मांग थी कि गंगा की सहायक नदियों पर बन रहे पनबिजली परियोजनाओं को बंद किया जाए और गंगा संरक्षण प्रबंधन अधिनियम लागू किया जाए.

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उन्होने गंगा को पुनर्जीवित करने के लिए जिम्मेदार मंत्रियों और प्रधानमंत्री को कई पत्र लिखे. हालांकि, उनके किसी भी पत्र पर संबंधित अधिकारियों की तरफ से ऐसी प्रतिक्रिया नही आई जिसकी उन्हें उम्मीद थी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी तीसरी और अंतिम चिट्ठी में उन्होंने लिखा, "3.08.2018 को केंद्रीय मंत्री साधवी उमा भारती जी मुझसे मिलने आई थीं. उन्होंने फोन पर नितिन गडकरी जी से मेरी बात कराई, लेकिन प्रतिक्रिया की उम्मीद आपसे है. इसीलिए मैने सुश्री उमा भारती जी को कोई जवाब नहीं दिया. मेरा यह अनुरोध है कि आप निम्नलिखित चार वांछित आवश्यकताओं को स्वीकार करें जो मेरे 13 जून 2018 को आपको लिखे गए पत्र में सूचीबद्ध है. यदि आप असफल रहें तो मैं अनशन जारी रखते हुए अपना जीवन त्याग दूंगा."

प्रोफेसर जीडी अग्रवाल की पीएम मोदी को लिखी पूरी चिट्ठी

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सेवा में,

श्री नरेंद्र भाई मोदीजी, आदरणीय प्रधानमंत्री, भारत सरकार, नई दिल्ली

आदरणीय प्रधानमंत्री,

गंगाजी से संबंधित मामलों का उल्लेख करते हुए मैंने अतीत में आपको कुछ पत्र लिखे थे, लेकिन आपकी तरफ से अब तक मुझे इस संबंध कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. मुझे काफी भरोसा था कि प्रधानमंत्री बनने के बाद आप गंगाजी के बारे गंभीरता से सोचेंगे. क्योंकि आपने 2014 चुनावों के दौरान बनारस में स्वयं कहा था कि आप वहां इसलिए आए हैं क्योंकि आपको मां गंगाजी ने बुलाया है- उस पल मुझे विश्वास हो गया कि शायद गंगाजी के लिए कुछ सार्थक करेंगे. इस विश्वास के चलते मैं पिछले साढ़े चार साल से शांति से इंतजार कर रहा था.

शायद आपको मालूम होगा कि मैं पहले भी कई बार गंगाजी के हित में कार्यों को लेकर अनशन कर चुका हूं. इससे पहले मेरे आग्रह के आधार को स्वीकार करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने लोहारी नागपाला जैसे बड़े प्रोजेक्ट (जो कि 90 फीसदी पूरा हो चुका था) पर चल रही सभी तरह की गतिविधीयों को न सिर्फ बंद करने का निर्णय लिया बल्कि उसे रद्द भी कर दिया था. इस कारण सरकार को हजारों करोड़ का घाटा भी सहना पड़ा, फिर भी मनमोहन सिंह जी आगे बढ़े और गंगाजी के हित में यह सब किया.

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इसके अतिरिक्त तत्कालीन सरकार ने आगे बढ़ते हुए गंगोत्री से लेकर उत्तरकाशी तक भगीरथी जी की धारा को ईको सेंसिटिव जोन घोषित किया. ताकि गंगाजी को नुकसान पहुंचा सकने वाली गतिविधियां फिर कभी न हों.

मुझे आपसे उम्मीद थी कि आप गंगाजी के लिए दो कदम आगे बढ़ते हुए विशेष प्रयास करेंगे, क्योंकि आपने आगे आते हुए गंगा पर अलग से मंत्रालय बनाया था. लेकिन पिछले चार वर्षों में आपकी सरकार द्वारा किए गए सभी कार्य गंगाजी के लिए तो लाभकारी नहीं रहे, लेकिन उनके स्थान पर केवल कॉरपोरेट क्षेत्र और व्यावसायिक घरानों का लाभ देखने को मिला. अब तक आपने केवल गंगाजी से लाभ अर्जित करने के मुद्दे पर सोचा है. गंगाजी के संबंध में आपकी सभी परियोजनाओं से धारणा बनती है कि आप गंगाजी को कुछ भी नहीं दे रहे हैं. यहां तक कि महज बयान को तौर पर आप कह सकते हैं कि गंगाजी से कुछ लेना नहीं है लेकिन उन्हें हमारी तरफ से कुछ देना है.

3.08.2018 को केंद्रीय मंत्री साधवी उमा भारती जी मुझसे मिलने आईं थी. उन्होंने फोन पर नितिन गडकरी जी से मेरी बात कराई, लेकिन प्रतिक्रिया की उम्मीद आपसे है. इसीलिए मैंने सुश्री उमा भारती जी को कोई जवाब नहीं दिया. मेरा यह अनुरोध है कि आप निम्मलिखित चार वांछित आवश्यकताओं को स्वीकार करें जो मेरे 13 जून 2018 को आपको लिखे गए पत्र में सूचीबद्ध है. यदि आप असफल रहे तो मैं अनशन जारी रखते हुए अपना जीवन त्याग दूंगा. मुझे अपना जीवन त्यागने में कोई हिचक नहीं होगी, क्योंकि गंगाजी का मुद्दा मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण और अत्यंत प्रथमिकता वाला है.

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मैं आईआईटी में प्रोफेसर, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का सदस्य होने साथ गंगाजी पर बने सरकारी संगठनों का सदस्य रहा हूं. इन संस्थाओं का हिस्सा होने के चलते इतने सालों से अर्जित अपने अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं कि आपकी सरकार के चार सालों में गंगाजी को बचाने की दिशा में किए गए एक भी कार्य को फलदायक नहीं कहा जा सकता है.

मेरा आपसे अनुरोध है, मैं दोहराता हूं, कि निम्नलिखित आवश्यक कार्यों को स्वीकार किया जाए और क्रियान्वित किया जाए. मैं यह चिट्ठी उमाजी के जरिए भेज रहा हूं.

आवश्यक कार्यों के लिए मेरे चार अनुरोध इस प्रकार हैं:

1. साल 2012 में हुए गंगा महासभा द्वारा तैयार किया गया मसौदा विधेयक तत्काल संसद में लाया जाए और पास कराया जाए (इस मसौदे को तैयार करने वाली कमेटी में मै, एडवोकेट एमसी मेहता और डॉ परितोष त्यागी शामिल थे).

यदि ये नहीं हो पाए तो इस मसौदा विधेयक के चैप्टर 1 (अनुच्छेद 1 से अनुच्छेद 9) पर अध्याधेश लाकर तत्काल राष्ट्रपति से मंजूरी दिलाते हुए लागू किया जाए.

2. उपर्युक्त कार्य के हिस्से के रूप में अलकनंदा, धौलीगंगा, नंदाकिनी, पिंडर और मंदाकिनी पर निर्माणाधीन सभी पनबिजली परियोजनाओं को रद्द किया जाए. इसके साथ ही गंगाजी और उनके पोषित करने वाली सभी धाराओं पर बनने वाले सभी प्रस्तावित पनबिजली परियोजनाओं को भी रद्द किया जाए.

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3. मसौदा विधेयक के अनुच्छेद 4(D)-1 वनों की कटाई, 4 (F) जीवित प्रजातियों की हत्या/प्रसंस्करण और 4(G) सभी तरह की खनन गतिविधियों को पूरी तरह से रोका जाए और लागू किया जाए. इसे हरिद्वार कुम्भ क्षेत्र में विशेषकर लागू किया जाए.

4. जून 2019 तक गंगा भक्त परिषद का गठन किया जाए जिसमें आपके द्वारा नामित 20 सदस्य हों, जो गंगाजी के पानी में शपथ ले कि वे गंगाजी और केवल गंगाजी के अनुकूल हितों को लाभ पहुंचाने के हित में ही कार्य करेंगे और गंगाजी से संबंधित सभी कार्यों के संबंध में, इस परिषद की राय निर्णायक के रूप में ली जाएगी.

चूंकि मुझे 13 जून 2018 को आपको भेजे गए पत्र का उत्तर नहीं मिला, इसलिए मैं 22 जून 2018 से अपना अनशन शुरू किया है जैसा कि मैने इस पत्र में लिखा है. इस प्रकाश में यह पत्र आपकी जल्द से जल्द उचित कार्रवाई की उम्मीद के साथ आपका धन्यवाद.

आपका

स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद

(पूर्व में प्रो. जी.डी. अग्रवाल)

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