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राहुल गांधी की रणनीति पर कांग्रेस के भीतर ही उठे गंभीर सवाल

नाराज़ नेताओं का कहना है कि माना हमारी पार्टी के कुछ नेताओं को अंदेशा था कि यूपी समेत विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र पीएम किसान कर्ज माफ़ी का ऐलान कर सकते हैं, पर क्रेडिट भी तो मोदी ही लेंगे. साथ ही राहुल ने जो किसान यात्रा की, वो जनता के सामने है ही. इसलिए पैनिक क्यों?

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी
अंजलि कर्मकार/कुमार विक्रांत
  • नई दिल्ली,
  • 19 दिसंबर 2016,
  • अपडेटेड 7:47 AM IST

राहुल गांधी अब कांग्रेस के भीतर ज्यादातर फैसले ले रहे हैं, इसलिए अब उनके फैसलों पर पार्टी के नेता सवाल खड़े करने लगे हैं. राहुल के खिलाफ खुलकर बोलने की हिम्मत कोई नहीं कर पा रहा, लेकिन व्यक्तिगत बातचीत में कई नेता विरोध जता रहे हैं. नाम ना छापने की शर्त पर नेताओं का कहना है कि रणनीति राहुल खुद बना रहे हैं या उनके रणनीतिकार, ये तो वो नहीं जानते, लेकिन हाल में रणनीतियां गलत रहीं और मौका मिलने पर वो सोनिया गांधी को इसकी तफ़सील से जानकारी देंगे.

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हाल में चार बड़े मौकों पर राहुल की रणनीति सवालों के घेरे में

1. पूरे संसद सत्र में मोदी का विरोध, फिर आखिरी दिन मोदी से मुलाकात क्यों?
सूत्रों के मुताबिक, नाराज नेताओं का मानना है कि नोटबंदी के मुद्दे पर पार्टी एकदम सही दिशा में जा रही थी. बाकी विरोधी पार्टियां भी कांग्रेस के साथ एक हद तक एकजुट थीं. संसद भवन में हुई राहुल की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कई विपक्षी पार्टियों के नेता साथ थे, जो खुद राहुल के कद को बढ़ा रहा था. ऐसे में अचानक किसानों की कर्ज माफी के मुद्दे पर पीएम मोदी से राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल का मिलना एक गलत फैसला रहा. इससे एक तो विपक्षी दलों में गलत संदेश गया और एकता कमज़ोर पड़ गई, तो वहीं दूसरी तरफ जनता में भी अजीब संदेश गया कि आखिर पूरे सत्र में नोटबंदी पर मोदी विरोध हुआ, सत्र ठप्प रहा, राहुल ने मोदी पर व्यक्तिगत भ्रष्टाचार के सुबूत होने का दावा किया, फिर मुलाकात की ये टाइमिंग क्यों? नाराज़ नेताओं का कहना है कि माना हमारी पार्टी के कुछ नेताओं को अंदेशा था कि यूपी समेत विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र पीएम किसान कर्ज माफ़ी का ऐलान कर सकते हैं, पर क्रेडिट भी तो मोदी ही लेंगे. साथ ही राहुल ने जो किसान यात्रा की, वो जनता के सामने है ही. इसलिए पैनिक क्यों?

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2. खुलासा करने में देरी से खुद राहुल की छवि पर पड़ रहा असर
नोटबंदी पर राहुल ने पहले कहा कि मैं लोकसभा में बोलूंगा तो भूकंप आ जाएगा, फिर विरोधी पार्टीयों के साथ संसद भवन में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके ऐलान किया कि उनके पास पीएम मोदी के व्यक्तिगत भ्रष्टाचार के सुबूत हैं, जिससे उनका गुब्बारा फट जाएगा, लेकिन मैं बोलूंगा लोकसभा में ही. ऐसे में नाखुश नेताओं का मानना है कि राहुल गांधी, गांधी परिवार से हैं, आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लेने वाली पार्टी का भविष्य हैं, ऐसे में अब संसद का सत्र ख़त्म हो चुका है, तो उनको प्रेस कॉन्फ्रेंस करके खुलासा कर देना चाहिए, वरना जनता उनको हल्के में लेगी या फिर उनको इतनी बड़ी बात बोलने के बजाए सीधे मामले का खुलासा ही करना चाहिए था. ऐसे तो जितना वक़्त बीतता जाएगा, उतना ही खुद राहुल की छवि पर असर पड़ता जाएगा.

3. बैंक की लाइन में लगना सही नहीं
सूत्रों के मुताबिक, वैसे नाराज़ नेताओं का ये भी मानना है कि राहुल का नोटबंदी के बाद एटीएम जाकर लोगों से हाल-चाल लेना तो ठीक रहा, लेकिन खुद बैंक की लाइन में पैसे निकालने के लिए खड़े होना हल्का क़दम था, जिसका जनता के बीच ठीक संदेश नहीं गया. उल्टे राहुल को चाहिए था कि एटीएम और बैंकों के आस पास एनएसयूआई, युथ कांग्रेस और सेवादल के कार्यकर्ताओं की ड्यूटी लगाते, जो पानी, बिस्कुट जैसी चीज़ों के साथ लोगों की मदद करते, पर वैसा कुछ अब तक नहीं हुआ.

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4.आर्मी चीफ की नियुक्ति के मुद्दे पर तो पार्टी के मतभेद बाहर आ गए
सेना में दो वरिष्ठों को सुपरसीट कर हुई नए जनरल की नियुक्ति पर कांग्रेस सवाल उठा चुकी है. पार्टी प्रवक्ता मनीष तिवारी इस मुद्दे पर बाक़ायदा पार्टी मंच से मोदी सरकार को घेर चुके हैं, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ प्रवक्ता सत्यव्रत चतुर्वेदी ने उसके उलट बयां दे डाला. उन्होंने कहा कि सेना के मामले पर बयानबाज़ी नहीं होनी चाहिए. ये सरकार का फैसला होना चाहिए. इसके बाद पार्टी के मीडिया प्रभारी सामने आये और मनीष तिवारी का बयां दोहराते हुए उसको ही पार्टी लाइन करार दे दिया. सूत्रों के मुताबिक, नाराज़ नेताओं का मानना है कि खुद इंदिरा गांधी ने 1983 में जनरल सिन्हा को सुपरसीट करते हुए जनरल वैद्य को आर्मी चीफ बनाया था. और तो और पाकिस्तान तक में हाल में आर्मी प्रमुख बने जनरल बाजवा को भी दो लोगों को सुपरसीट करके बनाया गया, वहां कोई आवाज़ नहीं उठी, पर हिंदुस्तान में आज़ादी के लिए लड़ने वाली एक राष्ट्रीय पार्टी का देश में सवाल उठाना क्या सही है?

कुल मिलाकर पार्टी के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है, नाराज़ नेताओं की ये टोली सोनिया से मिलने के वक़्त के इंतज़ार में हैं. सीधे राहुल से टकराने की हिम्मत नहीं, इसीलिए कैमरे पर राहुल के खुलासे के दावे, उनके पैसे निकालने के लिए बैंक की लाइन में जाने और पीएम से मुलाक़ात पर सवाल उठाने से बच रहे हैं. आखिर ये नेता भी बखूबी जानते हैं कि कांग्रेस अब राहुल ही चलाने वाले हैं. ऐसे में खुद को राहुल विरोधी की बजाय बेहतर सलाहकार के तौर पर पेश करना चाहते हैं, लेकिन जहां टकरा सकते हैं, वहां टकराने का मौका भी नही छोड़ रहे.

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