
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के मोदी सरकार के फैसले को लेकर ट्विटर पर सामने आया कांग्रेस नेताओं का द्वंद अब सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी झलकने लगा है. तब ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे युवा नेताओं ने इस फैसले का विरोध कर पार्टी के विपरीत लाइन पकड़ी थी, लेकिन अब मनमोहन मंत्रिमंडल में शामिल रहे जयराम रमेश और शशि थरूर जैसे नेताओं ने पार्टी की रणनीति पर ही सवाल उठा दिए हैं, वो भी सार्वजनिक मंच से.
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्य के महत्व को स्वीकार करने की सलाह दी और कहा कि उनके शासन का मॉडल पूरी तरह से नकारात्मक गाथा नहीं है. रमेश ने एक कदम और आगे जाकर पीएम मोदी की लोगों से जुड़ने वाली भाषा की तारीफ भी कर दी और यह भी कह दिया कि हर समय उन्हें खलनायक की तरह पेश कर कुछ हासिल नहीं होगा. रमेश के बयान पर चर्चा चल ही रही थी कि शशि थरूर ने भी इसी तरह का बयान दे दिया. अब सवाल यह है कि अपनी स्थापना के बाद सबसे बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस क्या पीएम मोदी से मुकाबले को अपनी रणनीति में बदलाव करेगी?
मोदी विरोध में राह भटक गई कांग्रेस
हालांकि इस विषय पर कांग्रेस के नेता कुछ भी बोलने से बच रहे हैं, लेकिन दबी जुबान में यह भी कह रहे हैं कि पार्टी मोदी विरोध में अपने सिद्धांत, अपनी राह से भटक जा रही है. लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका सरकार के हर कार्य का विरोध करना नहीं. गलत कदमों का विरोध करना विपक्ष का फर्ज है, तो अच्छे कार्यों का समर्थन करना भी. हालिया कुछ वर्षों में कांग्रेस राजनीतिक नफा-नुकसान का आकलन किए बगैर सरकार के लगभग हर फैसले के खिलाफ खड़ी रही है. पार्टी को इसका व्यापक नुकसान भी उठाना पड़ा है.
जयराम रमेश और शशि थरूर से पहले भी इस तरह की आवाज उठती रही है. जानकारों की मानें तो कांग्रेस को यदि अपनी खोई हुई सियासी जमीन वापस पाने की दिशा में बढ़ना है, तो उसे रणनीति में बदलाव करना ही होगा. राहुल गांधी चुनाव प्रचार के दौरान मोदी पर हमलावर रहे. 2014 के चुनाव में भी कांग्रेस का प्रचार अभियान एक तरह से मोदी केंद्रित ही रहा था और मोदी ने स्वयं पर किए गए हर हमले को अपने पक्ष में भुनाया था.
भारतीय जनता पार्टी भी हर चुनाव को पीएम मोदी के चेहरे पर केंद्रित करना चाहती है, भले ही वह किसी राज्य का विधानसभा चुनाव ही क्यों न हो. कांग्रेस भी भाजपा के बुने सियासी जाल में उलझकर हर चुनाव के प्रचार अभियान को मुद्दा आधारित बनाने की बजाय मोदी आधारित बना भाजपा की राह को आसान ही बनाती रही है. ऐसे में कांग्रेस आलाकमान का रणनीति में बदलाव करना आवश्यक माना जा रहा है.