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राहुल की 'जमीनी सियासत', बीजेपी का खिसकता आधार

बीजेपी 'कांग्रेस मुक्त भारत' के नारे के साथ आगे बढ़ने की कवायद में है. 2014 के चुनाव के बाद से कांग्रेस हाशिए पर गई थी. ऐसे में दौर में कांग्रेस की कमान राहुल गांधी ने अपने हाथों में ली है.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ अशोक गहलोत और सचिन पायलट कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ अशोक गहलोत और सचिन पायलट
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 03 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 9:06 AM IST

कांग्रेस नेताओं को जमीन पर उतारने की राहुल गांधी की राजनीतिक रणनीति का असर दिखने लगा है. गुजरात विधानसभा चुनाव में सीटों की बढ़ोत्तरी के बाद राजस्थान के उपचुनाव में मिली जीत ने कांग्रेस के इस सियासी प्रयोग पर मुहर लगा दिया है. कांग्रेस को मिली सफलता ने बीजेपी को बेचैन कर दिया है.

प्रचंड बहुमत से देश की सत्ता पर 2014 में काबिज, 19 राज्यों में सरकार चला रही दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बीजेपी के विजय रथ के पहिए को कांग्रेस रोकने की जद्दोजहद कर रही है. बीजेपी 'कांग्रेस मुक्त भारत' के नारे के साथ आगे बढ़ने की कवायद में है. 2014 के चुनाव के बाद से कांग्रेस हाशिए पर गई थी. ऐसे में दौर में कांग्रेस की कमान राहुल गांधी ने अपने हाथों में ली है.

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कई चुनावों में हार का सामना करने के बाद राहुल गांधी ने समझ लिया था कि बीजेपी से निपटने के लिए पार्टी नेताओं को जमीन पर उतारना होगा. बिना इसके पार्टी का कायाकल्प नहीं हो सकता. ऐसे में राहुल ने अपना पूरा ध्यान राजस्थान में पार्टी की कमान सचिन पायलट, और गुजरात में अशोक गहलोत को जिम्मेदारी देकर कांग्रेस को जमीनी स्तर पर मजबूत करने पर लगाया.

पायलट की जमीनी मेहनत का फल

सचिन पायलट को जब राजस्थान में पार्टी की कमान मिली थी, तो उस समय कांग्रेस के महज 21 विधायक थे. विधानसभा चुनाव में हार के बाद लोकसभा में राज्य से पूरी तरह से पार्टी का सफाया हो गया था. ऐसे हाशिए पर खड़ी कांग्रेस को पायलट ने जिंदा करने के लिए जमकर मेहनत की. किसानों के मुद्दे से लेकर वसुंधरा राजे सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरे और पार्टी संगठन को मजबूत किया.

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राजस्थान में छात्र संघ के चुनाव से लेकर नगर निकाय और जिला पंचायत के चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली. इसके अलावा राज्य में अब तक हुए 6 उपचुनाव में से 4 कांग्रेस ने जीती है. गुरुवार को कांग्रेस के पक्ष में आए दो लोकसभा और एक विधानसभा के नतीजे बीजेपी के खिसकते आधार के सबूत हैं.

गुजरात में बीजेपी का छूटा पसीना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को अपनी सत्ता बचाने में पसीने छूट गए. पिछले दो दशक में पहली बार बीजेपी 100 सीटों के आंकड़े को छू नहीं सकी और 99 सीटों पर उसे संतोष करना पड़ा था. वहीं कांग्रेस गठबंधन को 80 सीटें मिली, महज 11 सीटों से वो सत्ता से दूर रह गई.

गुजरात में कांग्रेस को मजबूत विपक्ष की भूमिका में लाने का श्रेय पार्टी महासचिव अशोक गहलोत को जाता है. गहलोत ने राज्य में पिछले 6 महीने रहकर पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत करने का काम किया.

गहलोत के प्लान का हिस्सा था कि राहुल गांधी गुजरात के मंदिरों में जाएं. इसके अलावा राज्य में जातीय आंदोलन करने वाले युवा नेताओं को अपने साथ मिलाया. राज्य में कांग्रेस को संजीवनी मिली है. पार्टी सक्रिय भूमिका निभाती हुई नजर आ रही है.

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मध्य प्रदेश की सड़कों पर सिंधिया का संघर्ष

मध्य प्रदेश में कांग्रेस पिछले 15 साल से सत्ता से दूर है और तो बीजेपी विराजमान है. राज्य सरकार के खिलाफ कांग्रेस को जमीन पर उतारने का काम ज्योतिरादित्य सिंधिया कर रहे हैं. सिंधिया राज्य में पार्टी का चेहरा हैं.

माना जा रहा है पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी उन्हें सीएम उम्मीदवार के तौर पर उतार सकते हैं. ऐसे में पिछले काफी समय से सिंधिया लगातार राज्य की शिवराज सरकार के खिलाफ आंदोलन चला रहे हैं.

किसानों के मुद्दे से लेकर कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार के खिलाफ सिंधिया सड़क पर हैं. वो राज्य में डेरा जमाए हुए हैं. इसी का नतीजा है कि हाल ही में राज्य में राघोगढ़ की नगर पालिका की 24 सीटों में से 20 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की है.

इसके अलावा चित्रकूट विधानसभा और रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने जीत का परचम लहराया. आठ महीने के बाद राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाने के लिए वो इन दिनों जमीन पर उतरे हुए हैं.

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