
नरेंद्र मोदी की सरकार में कांग्रेस के लिए मुसीबतें खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही हैं. 2014 में हार के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को फिर करारी हार का सामना करना पड़ा. अब कांग्रेस को अपने वजूद के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. स्थिति तब विकट हो गई जब लोकसभा चुनाव में हार के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. लेकिन पार्टी अभी नए अध्यक्ष की तलाश भी नहीं कर सकी थी कि अनुच्छेद 370 ने पार्टी के अंदर चल रहे अंर्तद्वंद्व को जगजाहिर कर दिया.
कांग्रेस के लिए अभी नए अध्यक्ष की तलाश करने की बड़ी चुनौती थी ही, लेकिन इस बीच मोदी सरकार ने अप्रत्याशित फैसला लेते हुए अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को मिले स्पेशल स्टेट्स का दर्जा खत्म करने का बिल संसद में पेश कर दिया.
केंद्र सरकार की इस गुगली में कांग्रेस इस कदर उलझ गई कि अंत तक फैसला नहीं कर सकी कि वो किस ओर जाए. समर्थन करे या विरोध. उलझन इस कदर थी कि संसद के दोनों सदनों से यह बिल पास भी हो गया और कांग्रेस खुलकर अपना स्टैंड भी नहीं ले सकी. साथ ही पार्टी के अंदर नेताओं के अलग-अलग पक्ष सामने आने लगे. एक तरह से देखा जाए तो पार्टी के बुजुर्ग नेता जहां इस बिल के खिलाफ दिख रहे थे तो युवा नेता इसके पक्ष में दिखे.
बिल का कड़े शब्दों में विरोध - गुलाम नबी
गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल पेश किया तो बिल के विरोध में कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि अनुच्छेद 370 के तहत ही जम्मू-कश्मीर को भारत के साथ जोड़ा गया था. इसके पीछे लाखों लोगों ने कुर्बानियां दी है. जम्मू-कश्मीर को भारत के साथ रखने के लिए हजारों बलिदान हुए हैं. उन्होंने कहा कि मैं इस कानून का कड़े शब्दों में विरोध करता हूं. हम भारत के संविधान की रक्षा के लिए अपनी जान की बाजी लगा देंगे लेकिन हम उस एक्ट का विरोध करते हैं जो हिन्दुस्तान के संविधान को जलाते हैं.
वहीं, कांग्रेस के एक और बुजुर्ग नेता पी. चिदंबरम ने भी बिल का विरोध किया और अमित शाह से पूछा कि आप कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश क्यों बना रहे हैं. कपिल सिब्बल ने भी कहा कि आपने संविधान की बुनियाद खत्म कर दी.
अधीर रंजन के बयान ने फंसाया
लोकसभा में मंगलवार को जब यही बिल पेश किया गया तो कांग्रेस यहां पर साफ स्टैंड लेने से बचती रही. कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने बहस की शुरुआत में कहा कि आपने जम्मू-कश्मीर को 2 हिस्सों में तोड़कर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया. कश्मीर को आप अंदरूनी मामले बताते हैं, लेकिन संयुक्त राष्ट्र वहां की निगरानी करता है.
इस पर अमित शाह ने उन्हें टोकते हुए कहा कि यह कांग्रेस का मत है कि संयुक्त राष्ट्र जम्मू-कश्मीर की निगरानी कर सकता है, यह कांग्रेस साफ करे. इस पर सदन में हंगामा शुरू हो गया.
अमित शाह ने चौधरी के इस बयान को लपक लिया और कहा कि कांग्रेस की ओर से कहा गया कि मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में है. उसकी इजाजत के बिना यह बिल लेकर हम आए हैं, कांग्रेस को इस पर अपना स्टैंड साफ करना चाहिए. इस पर अधीर रंजन चौधरी ने फिर कहा कि 1948 से जम्मू-कश्मीर में संयुक्त राष्ट्र की निगरानी हो रही है तो यह अंदरूनी मामला कैसे हो गया.
कांग्रेस पक्ष में है या विपक्ष में, साफ करेः अमित शाह
लोकसभा में कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि बगैर संविधान सभा की इजाजत के अनु्च्छेद 370 को खारिज नहीं किया जा सकता. जम्मू-कश्मीर विधानसभा-विधान परिषद का मतलब यह संसद नहीं है. उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर का अलग संविधान है, जो 1957 को लागू हुआ था, क्या अब इस राज्य के बंटवारे के बाद उस संविधान को खारिज करने का बिल भी सरकार लेकर आएगी.
इस बीच, फिर अमित शाह ने सवाल दागते हुए कहा कि कांग्रेस बताए कि वह अनुच्छेद 370 के पक्ष में हैं या इसके खिलाफ हैं. इस पर मनीष तिवारी ने कहा कि बगैर जम्मू-कश्मीर संविधान सभा की मंजूरी के अनुच्छेद 370 को खारिज नहीं कर सकते.
क्या है कांग्रेस की राय
बहस के दौरान बीजेपी सांसद जितेंद्र सिंह ने कहा कि 90 के दशक में नरसिम्हा राव की सरकार एक प्रस्ताव लाई जिसमें पीओके और जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग माना गया. उसका हमने समर्थन किया था. जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में शेख अब्दुल्ला ने भी कहा था कि अनुच्छेद 370 को हटाया जा सकता है. 70 के दशक तक राय बन चुकी थी कि 370 को जाना चाहिए क्योंकि उनके अपने हित इसमें निहित थे. अब कांग्रेस बताए कि 35A और 370 पर उसकी प्रतिबद्धता क्या है.
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भी कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. इस पर कोई मतभेद नहीं है. लेकिन इस बिल से लोकतांत्रिक व्यवस्था, वैश्विक परिवेश और हमारी विश्वसनीयता को आघात पहुंचा है, लेकिन उनकी ओर से भी यह नहीं कहा गया कि पार्टी अनुच्छेद 370 के मामले में किस ओर है.
कांग्रेस में विरोध के सुर
जम्मू-कश्मीर मसले पर कांग्रेस में पार्टी स्टैंड के खिलाफ विरोध के सुर उठ रहे हैं. गांधी परिवार के बेहद करीबी कहे जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा खत्म किए जाने का समर्थन किया, जबकि पार्टी इसके खिलाफ है. इससे पहले सोमवार को राज्यसभा में इसी मसले पर अपनी पार्टी कांग्रेस के रुख का विरोध करते हुए राज्यसभा सदस्य और मुख्य सचेतक भुवनेश्वर कालिता ने सदन की सदस्यता से इस्तीफा ही दे दिया.
कांग्रेस में दो-फाड़ की स्थिति
कांग्रेस के अंदर इतने अहम मुद्दे पर दो फाड़ की स्थिति पर जब गुलाम नबी आजाद से पूछा गया तो उन्होंने साफतौर पर कहा कि जिन लोगों को कश्मीर और कांग्रेस के इतिहास की जानकारी नहीं है उनका इससे कोई लेना देना नहीं है. वह लोग पहले कश्मीर और कांग्रेस का इतिहास पढ़ें. इससे साफ लगता है कि पार्टी में अंदर विरोध के सुर पनप रहे हैं.
वहीं, जितिन प्रसाद का मानना है कि देश का माहौल इस मुद्दे पर बीजेपी के साथ है. उन्होंने इशारे-इशारे में कहा कि कुछ लोगों के पक्ष को कश्मीर में समर्थन मिल रहा है.
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने भी ट्वीट के जरिए पार्टी के पक्ष को साफ करने की कोशिश की उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा कि यह संवैधानिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन है. जम्मू-कश्मीर विधानसभा को भरोसे में लिए बिना और वहां के नेताओं को कैद करके यह फैसला लिया गया है. लेकिन राहुल भी साफ नहीं कर सके कि उनकी पार्टी अनुच्छेद 370 के जरिए स्पेशल स्टेट्स का दर्जा खत्म किए जाने के पक्ष में है या नहीं.
कांग्रेस के लिए मुसीबत खत्म नहीं हो रही. अनुच्छेद 370 पर पार्टी खुलकर सामने नहीं आ सकी. इसका खामियाजा भी उसे उठाना पड़ा.