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बिहार में नीतीश-लालू की पिछलग्गू बनकर राज्य में सत्ता का हिस्सा कांग्रेस बनी, तो तमाम नेताओं और कांग्रेस प्रवक्ताओं ने बढ़-चढ़कर महागठबंधन में जाने की रणनीति बनाने से लेकर राहुल के प्रचार को जीत का बड़ा कारण बताते नहीं थक रहे थे. राहुल की शान में कसीदे पढ़े जा रहे थे कि उन्होंने मोदी का रथ बिहार में रोकने में अहम भूमिका निभाई.
हद तो तब हो गई जब 17 मई को दिल्ली नगर निगम के उपचुनाव में 13 में से 4 सीटें जीतने पर प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन ने क्रेडिट राहुल गांधी को दे डाला, लेकिन शायद वो भूल गए कि दो दिन बाद ही 19 मई को 5 राज्यों के नतीजे आने हैं और वहां हारने पर कांग्रेस कैसे हार का जिम्मेदार राहुल को ठहरा सकती है. माकन ने भले ही अपने नंबर तो आलाकमान के सामने बढ़ा लिए, लेकिन 19 मई को कांग्रेस के मीडिया विभाग और नेताओं के लिए ऐसा सवाल छोड़ दिया, जिसका जवाब देने में सबके पसीने छूट गए.
हार के लिए राहुल नहीं जिम्मेदार
पिछले कुछ वक्त से बुखार के चलते बीमार चल रहे राहुल गांधी हर चुनाव की तरह मीडिया से मुखातिब नहीं हो सके. लेकिन ट्विटर पर उनका संदेश आ गया कि हम जनता का फैसला विनम्रता के साथ स्वीकार करते हैं. कांग्रेस कार्यकर्ताओं, नेताओं और सहयोगी दलों का चुनाव में मेहनत करने के लिए धन्यवाद, जीतने वालों को बधाई. हम जनता का विश्वास जीतने के लिए और मेहनत करेंगे. लेकिन 4 राज्यों में कांग्रेस हारी तो कांग्रेस के मैनेजर इसी तैयारी में जुट गए कि हार का ठीकरा युवराज राहुल गांधी के सिर ना फोड़ा जाए. हर राज्य के लिए अलग-अलग दलीलों के साथ कांग्रेस के नेता राज्य से लेकर दिल्ली तक इसी मुहिम में जुट गए.
राहुल को बचाने के लिए बहाने
केरल में हार के बाद राहुल के करीबी शशि थरूर ने शुरुआत में ही मोर्चा खोलते हुए कहा कि राज्य में गुटबाजी और नेताओं में एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश के चलते हम हारे. थरूर ने एक कदम और आगे बढ़ते हुए कहा कि अब राज्य के साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर संगठन में बदलाव की जरूरत है. राज्य में हार के लिए राहुल को जिम्मेदार ठहराना गलत है, क्योंकि लोकसभा चुनाव अभी 3 साल दूर हैं. वहीं दोपहर होते-होते मीडिया से मुखातिब होने आए केरल कांग्रेस प्रभारी मुकुल वासनिक ने भी राहुल को हार का जिम्मेदार मानने से इंकार करते हुए कहा कि राज्य में हार के कारणों का आंकलन किया जाएगा और फिर बदलाव किए जाएंगे.
तरुण गोगोई हार के लिए जिम्मेदार
सबसे दिलचस्प जवाब तो असम की हार के लिए सामने आया. कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने पहले तो हार की जिम्मेदारी राहुल की होने के सवाल को ही खारिज कर दिया, फिर तफ्सील से बताया कि असम में सबसे अनुभवी मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के नेतृत्व में कांग्रेस ने चुनाव लड़ा, उन्हीं की राय पर कुछ छोटे दलों से गठजोड़ हुए और उन्हीं की राय पर बदरूद्दीन अजमल से तालमेल नहीं हुआ. चुनाव प्रचार और रणनीति उन्हीं की रही, जिसका केन्द्रीय नेतृत्व ने महज समर्थ न किया. साथ ही 15 सालों की एंटी इंकम्बेंसी को भी एक फैक्टर बता दिया गया.
पश्चिम बंगाल में हार पर कांग्रेस प्रभारी ने साधी चुप्पी
इसके बाद बात बंगाल की आई, जहां अपनी विचारधारा के विपरीत जाकर कांग्रेस ने लेफ्ट से चुनाव पूर्व गठजोड़ किया फिर भी ममता को बड़ी जीत से नहीं रोक पाई. याद हो कि पिछली बार कांग्रेस ने ममता के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था और विजयी गठजोड़ का हिस्सा बनी थी. इस पर जवाब देने के लिए असम और बंगाल के प्रभारी सीपी जोशी तो मीडिया के सामने ही नहीं आए. ये वही सीपी जोशी हैं, जो बिहार के भी प्रभारी थे और वहां जीत के बाद फौरन मीडिया से मुखातिब होकर राहुल के सिर सेहरा बांधने में जुटे थे. कांग्रेस के मीडिया प्रभारी सुरजेवाला ने बंगाल की हार के लिए भी राहुल को बचाते हुए कहा कि राज्य में किससे गठजोड़ करना है, ये राज्य के नेताओं की राय और कार्यकर्ताओं की चाहत के लिहाज से तय किया गया. राज्य के चुनाव में प्रचार की रणनीति और मुद्दे भी प्रदेश कांग्रेस ने तय किए, इसलिए महज प्रचार करने गए राहुल को दोष देना ठीक नहीं. वैसे भीतर ही भीतर कांग्रेसी ये बताना नहीं भूलते कि सालों बाद बंगाल में उनका नेता प्रतिपक्ष होगा.
तमिलनाडु में भी कांग्रेस की हार
डीएमके के साथ तमिलनाडु में बिछड़ने के बाद विधानसभा चुनावों से ठीक पहले फिर डीएमके की बी टीम बनी कांग्रेस, जयललिता के हाथों फिर हार गई तो दलील भी बंगाल जैसी ही आई. कहा गया कि तमिलनाडु में कांग्रेस पहले से कमजोर थी, इसलिए डीएमके के साथ राज्य के नेताओं और कार्यकर्ताओं के कहने पर गठजोड़ करना सियासी मजबूरी थी. वहां हार मुख्यरूप से डीएमके की हुई है और जीत जयललिता की, कांग्रेस तो महज एक छोटे सहयोगी की भूमिका में थी.
पुड्डुचेरी में जीत के बाद जश्न पर हिदायत
इतना सब होने के बाद पूरे दिन आगे पीछे होते आखिर 30 विधानसभा सीटों वाले पुड्डुचेरी से कांग्रेस के लिए आखिरकार कोई तो खुशखबरी आई, जहां कांग्रेस ने सत्ता हासिल कर ली. लेकिन दिल्ली में नेताओं को सख्त हिदायत दे दी गई कि इस जीत के लिए राहुल-राहुल का ढोल ना पीटा जाए वरना चार राज्यों की हार की जिम्मदारी भी राहुल पर आन पड़ेगी. हालांकि, दिल्ली में इस जीत पर कांग्रेसी पार्टी लाइन पर चलते दिखे. लेकिन उनको डर है कि नम्बर बढ़ाने की चाहत में कोई राज्य का नेता राहुल की माला ना जप दे और उनकी पूरी मेहनत पर पानी ना फिर जाए. वैसे कांग्रेस कोई भी वजह बताए, कोई भी रणनीति बनाए, पर वो कैसे भूल सकती है कि जीत पर कप्तान को वाहवाही मिलती है, तो हार पर उसी कप्तान को ही आलोचनाएं झेलनी पड़ती हैं.