
कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष और यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने आरटीआई कानून में संशोधन के प्रयासों की आलोचना की है. उन्होंने मोदी सरकार पर हमला करते हुए कहा कि उनकी मंशा आरटीआई को कमजोर करने की है. केंद्र सरकार आरटीआई को कमजोर करने के लिए अपने बहुमत का इस्तेमाल कर सकती है, लेकिन इससे देश की जनता पसंद नहीं करेगी.
मंगलवार को एक बयान जारी कर सोनिया गांधी ने कहा, "यह अत्यंत चिंता का विषय है कि केंद्र सरकार ऐतिहासिक सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 को पूरी तरह से ध्वस्त करने पर आमदा है. यह कानून सलाह के बाद तैयार किया गया था और संसद द्वारा सर्वसम्मति से पारित किया गया था, यह कानून अब खत्म होने के कगार है." बता दें कि सूचना का अधिकार (संशोधन) बिल 2019 के तहत सरकार को ये शक्ति मिल सकती है कि वह सूचना आयुक्तों की तनख्वाह और नौकरी की दूसरी शर्तों को तय कर सके.
सरकार के कदम की आलोचना करते हुए सोनिया गांधी ने कहा कि पिछले 10 सालों से ज्यादा समय में हमारे देश के 60 साल महिला-पुरुषों ने सूचना के अधिकार कानून का इस्तेमाल किया है और प्रशासन के अलग-अलग स्तरों पर पारदर्शिता लाने की कोशिश की है. सोनिया ने कहा कि इन प्रयासों की वजह से हमारा लोकतंत्र काफी मजबूत हुआ है. उन्होंने कहा कि सूचना अधिकार से जुड़े कार्यकर्ताओं ने बड़े पैमाने पर इस कानून का इस्तेमाल किया जिससे गरीबों और हाशिये पर गए लोगों को इसका फायदा मिला.
सोनिया ने कहा, "ये साफ है कि मौजूदा केंद्र सरकार आरटीआई कानून को एक बाधा समझती है और केंद्रीय सूचना आयुक्त के स्वतंत्र वजूद को खत्म करना चाहती है, जिसे इस कानून में मुख्य चुनाव आयुक्त और केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के बराबर दर्जा दिया गया था. केंद्र सरकार सदन में अपने बहुमत का इस्तेमाल इस उद्देश्य को हासिल करने में कर सकती है, लेकिन इस प्रक्रिया में वह देश के प्रत्येक नागरिक को कमजोर करेगी."
हालांकि केंद्र ने सोमवार को विपक्ष की इन शंकाओं को खारिज करते हुए कहा था कि सरकार सूचना के अधिकार कानून की स्वायत्तता और इसकी पारदर्शिता का बनाये रखने को लेकर प्रतिबद्ध है.