
अधिकांश प्रवासी मजदूर नंगे पैर बिहार के नालंदा आने के लिए 900 किलोमीटर से लेकर 1300 किलोमीटर तक पैदल चले, इसके बावजूद उनकी मुश्किलें कम नहीं हुई हैं.
6 दिन में चले 1300 किमी
इंडिया टुडे ने भुवनेश्वर से 20 किलोमीटर दूर चेन्नई-कोलकाता हाईवे का दौरा किया, तो पाया कि दिहाड़ी मजदूरों का एक समूह पैदल ही चेन्नई से चलकर बिहार के नालंदा जा रहा है. वे लोग 6 दिनों में करीब 1300 किलोमीटर पैदल चल चुके थे. जैसे ही हमने बातचीत के लिए उन्हें रोका तो अचानक एक पुलिस पीसीआर वैन वहां आ गई और उन्होंने उन्हें वहां से बस का इंतजार करने के लिए कहा.
मजदूरों ने बताया कि वे लॉकडाउन के बाद से ही चेन्नई में फंसे थे. वे इंतजार करते रहे कि लॉकडाउन खत्म होगा और बस या ट्रेन जैसी कोई सुविधा उन्हें मिल पाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. लॉकडाउन-2 तक उनके पास पैसे खत्म हो गए थे. लॉकडाउन-3 तक उनका धैर्य जवाब दे गया और मजदूरों ने पैदल घर जाने का फैसला कर लिया.
दो दिन से चल रहे थे भूखे पेट
मजदूरों ने बताया कि उन्हें आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भोजन दिया गया था, लेकिन ओडिशा प्रशासन से कोई भोजन नहीं मिला. वे पिछले दो दिनों से ओडिशा में भूखे पेट चल रहे हैं. इसके उलट ओडिशा पुलिस ने उन्हें आंध्र-ओडिशा बॉर्डर पर रोक दिया, लेकिन भोजन या पानी जैसा कोई प्रबंध नहीं कराया गया.
यह तब है जब ओडिशा सरकार का दावा है कि राज्य में 5326 ग्राम पंचायतों में 3 लाख 37 हजार 820 निराश्रित और असहाय लोगों को खाना खिलाया जा रहा है. लेकिन पैदल चल रहे प्रवासी मजदूरों के लिए ये सभी दावे खोखले साबित हो रहे हैं.
जब हम मजदूरों से बात कर रहे थे तभी एक व्यक्ति आया और उसने सभी 15 मजदूरों को बिस्कुट का एक एक पैकेट दिया. भूखे मजदूरों ने कुछ ही सेकंड में पैकेट को खाली कर दिया. उनके साथ सिर्फ एक बोतल पानी था, जिसे सभी ने आपस में बांटकर पी लिया.
कोरोना पर फुल कवरेज के लिए यहां क्लिक करें
पुलिस अधिकारियों के निर्देश के अनुसार वे बस के आने का इंतजार कर रहे थे, लेकिन 45 मिनट बाद भी कोई बस नहीं आई. हमने भी वहां रुक कर बस के आने का इंतजार किया. काफी देर तक वहां कोई बस नहीं आई, क्योंकि बस आने की बात अफवाह थी. इसके बाद पुलिस वाले आए और मजदूरों से अपने साथ चलने को कहा. वे सभी पुलिस वैन के पीछे-पीछे गए. उन्हें पास के एक कैंप में ले जाया गया.
कैंप में न खाना, न पानी
बाद में हमें फोन पर कई मजदूरों ने बताया कि पुलिस वालों ने उन्हें हिरासत में ले लिया है. वहां पर न खाना की व्यवस्था है और न पानी की. हालांकि कटक पुलिस के डीसीपी अखिलेश्वर सिंह ने इंडिया टुडे से कहा कि उन प्रवासी मजदूरों को पास के कैंप में ले जाया गया है. ये कैंप हाईवे पर पैदल यात्रा कर रहे श्रमिकों के लिए ही बनाए गए हैं. उन्हें वहां रोक दिया गया है. जैसे ही बस की व्यवस्था होगी उन्हें रवाना कर दिया जाएगा.
बिहार सरकार ने साधी चुप्पी
कटक नगर निगम (CMC) के कमिश्नर अनन्य दास ने बताया कि अपने राज्य वापस जा रहे मजदूरों को हम गोपालपुर के पास आश्रयगृह में ठहरा रहे हैं. हम वहां भोजन की व्यवस्था करते हैं. प्रत्येक राज्य को खुद यह तय करना है कि वह अपने कामगारों को कैसे ले जाएगा. ओडिशा के अधिकारी संबंधित राज्यों से संपर्क कर रहे हैं.
कोरोना कमांडोज़ का हौसला बढ़ाएं और उन्हें शुक्रिया कहें...
उन्होंने बताया कि अलग-अलग राज्य से अलग-अलग प्रतिक्रिया मिल रही है. झारखंड ने दो बसें भेजी हैं. छत्तीसगढ़ ने भी कुछ बसों के लिए भुगतान किया है. लेकिन बिहार सरकार ने अब तक कोई प्रतिक्रिया दी है, इसलिए बिहार के मजदूर अब तक उसी कैंप में रह रहे हैं.
देश-दुनिया के किस हिस्से में कितना है कोरोना का कहर? यहां क्लिक कर देखें