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कोरोना की 150 से ज्यादा वैक्सीन पर हो रहा काम, एक दर्जन का हो रहा ह्यूमन ट्रायल

भारत बायोटेक और कैडिला हेल्थकेयर भी एक-एक वैक्सीन विकसित करने में लगी हैं. इनका भी प्री-क्लिनिकल और एनीमल ट्रायल पूरा हो चुका है. अब ये दोनों कंपनियां ह्यूमन ट्रालय का पहला और दूसरा चरण शुरू करने वाली हैं.

सांकेतिक तस्वीर (Courtesy- PTI) सांकेतिक तस्वीर (Courtesy- PTI)
दीपू राय
  • नई दिल्ली,
  • 11 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 9:58 PM IST

  • कोरोना की चपेट में आ चुके हैं 1 करोड़ 20 लाख लोग
  • किसी भी वैक्सीन का तीन चरण में किया जाता है ट्रायल

कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने के ​लिए भारत समेत 12 देशों के 150 दावेदार रेस में हैं. पिछले करीब सात महीने में यह जानलेवा वायरस 1.2 करोड़ लोगों को संक्रमित कर चुका है और कम से कम 5.5 लाख मौत के मुंह में समा गए हैं. लेकिन कोरोना वायरस से निपटने के लिए एक वैक्सीन बना पाने की चुनौती अब भी बरकरार है. हालांकि, वैक्सीन बनाने के इन सभी प्रयासों में करीब एक दर्जन का ह्यूमन ट्रायल शुरू हो चुका है.

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इनमें से तीन वैक्सीन ऐसी हैं, जो अब अंतिम चरण में हैं और इनका ह्यूमन ट्रायल शुरू हो चुका है. ये तीनों वैक्सीन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, सिनोवैक बायोटेक (Sinovac Biotech) और कैन्सिनो बायोलॉजिक्स इंक (CanSino Biologics Inc) द्वारा बनाई जा रही हैं. ऑक्सफोर्ड को छोड़कर बाकी दोनों चीन की हैं. ये तीनों ही ह्यूमन ट्रायल के अंतिम चरण में हैं.

सबसे ज्यादा उम्मीद है ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन (AZD1222) को लेकर है. यह संयुक्त रूप से ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, ब्रिटिश-स्वीडिश कंपनी एस्ट्राजेनेका (AstraZeneca) और अन्य मिलकर बना रही हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन शरीर में कोरोना से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बनाने में मदद कर रही है.

ब्रिटेन में इसके दो चरण के सफल प्रयोग हो चुके हैं. तीसरे चरण का ट्रायल ब्राजील और साउथ अफ्रीका में हो रहा है. खबरों के मुताबिक, साउथ अफ्रीका ट्रायल की अगुआई करने वाले यूनिवर्सिटी ऑफ विटवाटर्सरैंड में वैक्सीनोलॉजी के प्रोफेसर शबीर माधी ने कहा, “वैक्सीन को अगले साल की शुरुआत में बाजार में उतारा जा सकता है.”

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पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) के सीईओ आदर पूनावाला भी ऑक्सफोर्ड वैक्सीन कंसोर्टियम में शामिल हैं. उन्होंने मंगलवार को पुणे में कहा कि लॉन्च होने के छह महीने बाद कोविड वैक्सीन उपलब्ध होने की संभावना है.

इंडियन काउंसिल मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की निगरानी में बन रही भारत बायोटेक की कोवाक्सिन का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “हाल ही में एक वैक्सीन के टेस्टिंग प्रक्रिया में तेजी लाने की खबर आई थी... हम वैसी जल्दबादी में नहीं हैं. हमें अपनी वैक्सीन लॉन्च करने में कम से कम छह महीने का वक्त लगेगा.”

दूसरी सबसे प्रमुख दावेदारी कैन्सिनो बायोलॉजिक्स (CanSino Biologics) इंक की है. यह चीन के मिलिट्री मेडिकल साइंस के साथ मिलकर Ad5-nCoV नाम की वैक्सीन पर काम कर रही है. 25 जून को इसे सीमित उपयोग के लिए अप्रूवल मिला है. यह वैक्सीन उसी वायरल वैक्सीन टेक्नोलॉजी पर आधारित है, जिसका उपयोग इबोला के इलाज में किया जा चुका है.

तीसरी वैक्सीन कोरोनावैक (CoronaVac) भी एडवांस ट्रायल स्टेज में है. इसे एक प्राइवेट चाइनीज कंपनी सिनोवैक बायोटेक ने विकसित किया है और ये भी क्लिनिकल ट्रायल के तीसरे चरण में है. सिनोवैक ने जुलाई में चीन और ब्राजील में अपना तीसरे चरण का ट्रायल शुरू किया है.

सिनोवैक के चेयरमैन वीडॉन्ग यिन ने एक बयान में कहा, “हमारी पहले और दूसरे चरण का अध्ययन कहता है कि कोरोनावैक सुरक्षित है और इम्यून रिस्पॉन्स में सुधार कर सकती है. हमारे पहले और दूसरे चरण का परिणाम काफी उत्साहजनक है, इसके साथ ही हमने COVID-19 के खिलाफ लड़ाई में एक और मील का पत्थर हासिल किया है.”

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भारत बायोटेक और कैडिला हेल्थकेयर भी एक-एक वैक्सीन विकसित करने में लगी हैं. इनका भी प्री-क्लिनिकल और एनीमल ट्रायल पूरा हो चुका है. अब ये दोनों कंपनियां ह्यूमन ट्रालय का पहला और दूसरा चरण शुरू करने वाली हैं.

स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी राजेश भूषण ने 9 जुलाई को कहा, “भारत बायोटेक और कैडिला हेल्थकेयर कोविद-19 की वैक्सीन विकसित करने पर काम कर रही हैं, दोनों ने अनुमति के बाद एनीमल ट्रायल पूरा कर लिया है.”

आईसीएमआर के मातहत नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी ने कोवाक्सिन नाम की वैक्सनी बनाने के लिए भारत बायोटेक से हाथ मिलाया है. दूसरी ओर, Zydus Cadila ने डीएनए-आधारित वैक्सीन बनाई है. पिछले हफ्ते इसने बयान जारी किया कि उसे ह्यूमन ट्रायल के लिए मंजूरी मिल गई है.

क्लिनिकल ट्रायल के तीन चरण

लैब से क्लिनिक तक पहुंचने के लिए सबसे पहले वैक्सीन का प्री-क्लिनिकल ट्रायल होता है. इस​के बाद तीन चरणों में क्लिनिकल ट्रायल होता है. प्री-क्लिनिकल ट्रायल के तहत इसका उपयोग सूअर और चूहों जैसे जानवरों पर किया जाता है. ऐसा करके वैक्सीन के इम्यून रिस्पॉन्स का मूल्यांकन किया जाता है.

प्री-क्लिनिकल टेस्ट पास करने के​बाद वैक्सीन का प्रयोग कुछ लोगों के एक छोटे समूह पर किया जाता है. इसमें देखा जाता है कि वैक्सीन शरीर के इम्यून सिस्टम पर कैसा असर डाल रही है. यह क्लिनिकल ट्रायल का पहला चरण है. फिलहाल, 15 वैक्सीन इस चरण में हैं.

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क्लिनिकल ट्रायल के दूसरे चरण में वैक्सीन का प्रयोग लोगों के बड़े समूह पर किया जाता है. इसमें सैकड़ों लोगों को कुछ समूहों में बांट दिया जाता है और उन पर वैक्सीन का प्रयोग किया जाता है. इस चरण में 10 वैक्सीन का टेस्ट चल रहा है.

तीसरे चरण में वैक्सीन का उपयोग हजारों लोगों पर किया जाता है. इस चरण में अभी तीन वैक्सीन हैं. इस तीसरे चरण के पूरा होने के बाद संबंधित देश की हेल्थ रेग्यूलेटरी बॉडी ट्रायल के रिजल्ट की समीक्षा करती है और उसके मुताबिक, आम लोगों पर इसके प्रयोग की इजाजत देती है.

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