
कोरोना वायरस महामारी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के नवीनतम सर्वेक्षण से पता चलता है कि महामारी ने अर्थव्यवस्था में उपभोक्ताओं का भरोसा कम कर दिया है और कम से कम अगले एक साल तक यही स्थिति रहने वाली है.
आरबीआई के मई के उपभोक्ता विश्वास सूचकांक (Consumer Confidence Index) के अनुसार, कोरोना वायरस ने उपभोक्ताओं को भारतीय अर्थव्यवस्था के भविष्य के बारे में निराशावादी बना दिया है. सर्वेक्षण से पता चलता है कि फ्यूचर एक्सपेक्टेशंस इंडेक्स (एफईआई) 97.9 पर आ गया है. एफईआई एक साल के लिए अर्थव्यवस्था के बारे में उपभोक्ताओं की धारणा को मापता है. एफईआई का स्कोर अगर 100 से नीचे है तो यह उपभोक्ताओं के निराशावाद को दर्शाता है.
इस दशक में यह दूसरी बार है जब एफईआई निराशावाद की ओर गया है. सितंबर 2013 के दौर में जब देश मुद्रा संकट का सामना कर रहा था, उस समय एफईआई 90.5 तक गिर गया था. यह भारत में रिकॉर्ड किया गया सबसे निचला स्तर है. पिछले साल अक्टूबर में उपभोक्ता विश्वास छह साल के निचले स्तर पर आ गया था.
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महामारी के दौरान 5,300 से अधिक घरों में मई माह के लिए सर्वेक्षण किया गया. उपभोक्ता विश्वास के अलावा, वर्तमान स्थिति सूचकांक (Current Situation Index) में भी गिरावट आई है, जो सामान्य आर्थिक स्थिति, कीमतों, रोजगार, आय, व्यय, मुद्रास्फीति आदि पर लोगों की धारणा को मापता है.
वर्तमान स्थिति सूचकांक 63.7 के रिकॉर्ड निचले स्तर तक गिर गया है. आरबीआई का सर्वेक्षण लगभग सभी व्यापक मापदंडों, जैसे- आर्थिक स्थिति, कीमतें, रोजगार, खर्च, आदि पर उपभोक्ता की धारणाओं और भविष्य की उम्मीदों में गिरावट को दर्शाता है.
संपूर्ण आर्थिक स्थिति
लोकसभा चुनाव संपन्न होने के बाद मई 2019 में सर्वेक्षण में शामिल 61.4 प्रतिशत उपभोक्ताओं ने उम्मीद जताई थी कि इस वर्ष तक स्थिति में सुधार आएगा. लेकिन 12 महीने बाद, 74.4 प्रतिशत उपभोक्ताओं ने बताया है कि आर्थिक स्थिति खराब हो गई है. ऐतिहासिक रिकॉर्ड बताते हैं कि यह उपभोक्ताओं का सबसे अधिक प्रतिशत है जब वे कह रहे हैं कि पिछले वर्ष की तुलना में आर्थिक स्थिति खराब हो गई है.
भविष्य की मुख्य चिंता
सर्वे में शामिल लगभग 51.4 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अगले एक साल में सामान्य आर्थिक स्थिति और बिगड़ जाएगी. केवल 39.6 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना है कि इसमें सुधार होगा. पिछले एक दशक में यह पहली बार है जब आधे से अधिक उत्तरदाताओं ने भविष्य की आर्थिक स्थिति पर इस तरह की निराशा जताई है.
रोजगार
सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार, अप्रैल में 20 से 30 साल की उम्र के 2.7 करोड़ युवा भारतीयों का रोजगार छिन गया. इसी एजेंसी ने यह भी कहा कि भारत में मई महीने में बेरोजगारी दर 23 प्रतिशत से ऊपर रही.
उपभोक्ताओं की राय में भारत में रोजगार का भी नुकसान हो रहा है. आरबीआई के सर्वेक्षण के अनुसार, 67.4 प्रतिशत लोगों का मानना है कि भारत में रोजगार की स्थिति खराब हो गई है.
पिछले साल के आम चुनावों के दौरान 59.3 प्रतिशत उपभोक्ताओं को उम्मीद थी कि रोजगार के परिदृश्य में सुधार होगा. इस साल 47.4 फीसदी लोगों का मानना है कि अगले एक साल में रोजगार का माहौल और बिगड़ने वाला है. यह पिछले आठ सालों में निराशावाद का उच्चतम स्तर है.
खर्च
लॉकडाउन के दौरान केवल जरूरी वस्तुओं (essential goods) और सेवाओं के व्यापार की अनुमति थी. परिणामस्वरूप, जरूरी वस्तुओं पर खर्च करने में बहुत थोड़ी कमी दर्ज की गई. मई में 69.3 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि जरूरी वस्तुओं पर उनके खर्च में वृद्धि हुई है, 20.9 प्रतिशत ने कहा कि यह पहले की तरह ही है और 9.8 प्रतिशत ने कहा कि जरूरी वस्तुओं पर उनके खर्च में गिरावट आई है.
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समग्र परिदृश्य की तुलना में यह 9.8 प्रतिशत उत्तरदाताओं का यह समूह छोटा लग सकता है. हालांकि, मई 2019 से मार्च 2020 तक, केवल 2.6 प्रतिशत उपभोक्ताओं के जरूरी वस्तुओं पर खर्च में गिरावट दर्ज की गई. इसलिए, मई का आंकड़ा औसत से लगभग चार गुना है.
भविष्य की संभावना के मद्देनजर जरूरी वस्तुओं पर खर्च में 6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है.
लॉकडाउन के दौरान गैर-जरूरी (Non-essential) वस्तुओं को लेकर खर्च पर भारी मार पड़ी. सर्वेक्षण के अनुसार, 46 प्रतिशत उत्तरदाताओं के गैर-जरूरी खर्चों में गिरावट दर्ज की गई. 39.6 प्रतिशत ने कहा कि यह पहले की तरह ही बना रहा. केवल 13.9 प्रतिशत का मानना है कि इसमें वृद्धि हुई है.
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गैर-जरूरी खर्च के प्रति भी भविष्य का संभावना अनुकूल नहीं है. लगभग 35.6 प्रतिशत उपभोक्ताओं का मानना है कि गैर-जरूरी वस्तुओं पर उनका खर्च अगले एक वर्ष के दौरान घट जाएगा. पिछले पांच वर्षों में गैर-जरूरी वस्तुओं पर खर्च को लेकर निराशावाद का उच्चतम स्तर है.