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साल भर में बाल यौन शोषण के 36,022 केस, यूपी सबसे खराब जबकि J-K सबसे सुरक्षित

एनसीआरबी की रिपोर्ट कहती है कि बच्चों के साथ शारीरिक दुर्व्यहार के मामले में उत्तर प्रदेश देश के अन्य राज्यों में सबसे आगे है. इसके बाद महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश का नंबर है. दिल्ली में यह आंकड़ा 769 है. वहीं जम्मू-कश्मीर में महज 2 मामले ऐसे आए.

भारत में बच्चों से जुड़ी यौन शोषण की घटनाएं बड़ी समस्या बन चुकी है (सांकेतिक-GettyImages) भारत में बच्चों से जुड़ी यौन शोषण की घटनाएं बड़ी समस्या बन चुकी है (सांकेतिक-GettyImages)
सुरेंद्र कुमार वर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 12 जुलाई 2019,
  • अपडेटेड 9:09 AM IST

पिछले कुछ सालों में देश में बाल यौन शोषण की एक के बाद एक वीभत्स घटनाओं ने मानव समाज का सिर शर्म से झुका दिया है. सरकार की ओर से लगातार कायदे-कानून कड़े किए जाने के बावजूद घटनाएं कम होने का नाम नहीं ले रहीं. आए दिन हर राज्य, हर शहर में बाल यौन शोषण की खबरें सुनने को मिलती है. अब सुप्रीम कोर्ट भी देश में बढ़ते बाल यौन शोषण की घटनाओं पर स्वतः संज्ञान लेते हुए एक जनहित याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई करने जा रहा है.

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देश की सबसे बड़ी अदालत भी इस गंभीर मामले में अब सुनवाई शुरू कर रहा है. हो सकता है कि कुछ नया और सख्त फैसला सामने आए. फिलहाल देश में बच्चों के खिलाफ आपराधिक और यौन शोषण के मामलों में लगातार वृद्धि होती जा रही है.

अपराध में 13.6 फीसदी का इजाफा

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से 2016 में जारी की गई अपराध पर आधारित आखिरी रिपोर्ट पर नजर डालें तो देशभर में बच्चों पर आपराधिक गतिविधियों में इजाफा हुआ है. 2014 में बच्चों के साथ अपराध की 89,423 घटनाएं दर्ज हुईं. इसके बाद 2015 में 94,172 और 2016 में 1,06,958 घटनाएं दर्ज हुईं. इन 3 सालों में बच्चों के साथ अपराध की दर 24 फीसदी तक पहुंच गई. 2014-15 में 5.3 फीसदी की तुलना में 2015-16 में 13.6 फीसदी अपराध हुआ.

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2016 में बच्चों के साथ घटी 1,06,958 घटनाओं में 36,022 मामले पॉक्सो एक्ट, 2012 के तहत दर्ज किए गए, जिसमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश (4,954) में मामले सामने आए. उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र (4,815) और मध्य प्रदेश (4,717) का नाम आता है. इस तरह से देखा जाए तो बाल यौन शोषण के मामले में 34.4 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई.

राजधानी दिल्ली भी बच्चों के लिए असुरक्षित

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली भी बाल यौन शोषण के मामले में पीछे नहीं है. यहां पर 1,620 मामले दर्ज हुए जो किसी केंद्र शासित प्रदेश की तुलना में कहीं ज्यादा है. देश के 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बाल यौन शोषण के एक हजार से ज्यादा मामले दर्ज किए गए.

कुछ समय पहले तक कठुआ और उन्नाव रेप केस जैसे कई केस बेहद चर्चा में रहे थे, लेकिन लंबे समय से आतंक से प्रभावित राज्य जम्मू-कश्मीर में बाल यौन शोषण की दर (पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज) अन्य राज्यों से बेहद कम है और इस लिहाज से यह राज्य बच्चों के लिए सुरक्षित माना जा सकता है.

एनसीआरबी 2016 की रिपोर्ट कहती है कि इस राज्य में 2016 में महज 25 बाल यौन शोषण के मामले दर्ज किए गए. इसके बाद मणिपुर (43), अरुणाचल प्रदेश (59) और गोवा (75) का नंबर आता है.

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मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा रेप

पॉक्सो एक्ट और आईपीसी के सेक्शन 376 के तहत बाल यौन शोषण (चाइल्ड रेप) के मामले में भी जम्मू-कश्मीर सुरक्षित है और महज 21 मामले ही दर्ज हुए हैं. नगालैंड में भी 21 मामले सामने आए. जहां तक सबसे ज्यादा केस दर्ज होने की बात है कि मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा बच्चों के साथ रेप केस दर्ज हुए.

मध्य प्रदेश (2,467) के बाद महाराष्ट्र (2,292) और उत्तर प्रदेश (2,115) 2 अन्य सबसे बदनाम राज्य हैं. इन्हीं 3 राज्यों में पॉक्सो एक्ट और आईपीसी के सेक्शन 376 के तहत 2 हजार से ज्यादा केस दर्ज हुए. जबकि 4 अन्य राज्यों में 1 हजार से 2 हजार के बीच मामले दर्ज किए गए.

शारीरिक दुर्व्यहार में यूपी सबसे आगे

जहां तक बच्चों के साथ शारीरिक दुर्व्यहार की बात है तो इसमें उत्तर प्रदेश (2,652) सबसे आगे है. इसके बाद महाराष्ट्र (2,370) और मध्य प्रदेश (2,106) का नंबर है. दिल्ली में यह आंकड़ा 769 है. वहीं जम्मू-कश्मीर में महज 2 मामले ऐसे आए.

2016 में बच्चों की पोर्नोग्राफी/बच्चों की पोर्नोग्राफी से जुड़ी कहानियों से जुड़े 48 केस (सेक्शन 14 और 15) देशभर में दर्ज किए गए जिसमें सबसे ज्यादा 19 मामले झारखंड में दर्ज किए गए. इसके बाद तमिलनाडु का नंबर आता है जहां 9 मामले दर्ज किए गए.

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वहीं सेक्सुअल हैरेसमेंट (पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 12/आईपीसी की धारा 509) के मामले में देश में 882 मामले दर्ज किए गए. इसमें तेलंगाना (178) सबसे आगे रहा. उत्तर प्रदेश (123) दूसरे स्थान पर रहा.

यौन शोषण के 692 मामले झूठे

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2016 में जारी रिपोर्ट कहती है कि पॉक्सो के तहत 2015 में बाल यौन शोषण के 36,022 मामले दर्ज हुए, जबकि पिछले साल 12,038 मामलों की जांच शुरू होनी थी. इस तरह से 48,060 मामले पॉक्सो के तहत दर्ज हैं. 12,226 मामले बच्चों के साथ यौन शोषण (पॉक्सो के सेक्शन 8 और 10/आईपीसी की धारा 354) के दर्ज हुए जबकि रेप के 19,765 नए मामले (पॉक्सो सेक्शन 4 और 6/आईपीसी की धारा 376 के तहत) सामने आए.

2016 में आई एनसीआरबी की रिपोर्ट

बाल यौन शोषण के तहत दर्ज 48,060 मामलों के अलावा 868 मामलों में यौन शोषण के आरोप सही तो पाए गए, लेकिन ठोस सबूत न होने के कारण आरोपी बरी हो गया जबकि 692 यौन शोषण के मामले झूठे साबित हुए.

सरकार ने कड़ा किया पॉक्सो

इससे 2 दिन पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भी बाल यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं पर लगाम कसने के लिए बाल यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) कानून को कड़ा करने को लेकर कई संशोधनों को अपनी मंजूरी दे दी.

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बाल यौन शोषण पर अंकुश के लिए सरकार ने किए बदलाव (सांकेतिक- GettyImages)

प्रस्तावित संशोधनों में बच्चों के साथ गंभीर यौन उत्पीड़न करने वालों को मौत की सजा और नाबालिगों के साथ दूसरे अपराधों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है. पॉक्सो कानून की 3 धाराओं (4, 5 और 6) में बदलाव कर बाल यौन शोषण के मामलों में सजा को और कड़ा करने के लिए (मौत की सजा) लाया गया है.

2016 के बाद की रिपोर्ट नहीं

भारत में अपराध पर जारी होने वाली वार्षिक रिपोर्ट आखिरी बार 2017 में जारी की गई थी जो 2016 की घटनाओं पर आधारित था. लेकिन इसके बाद 2017 और 2018 की रिपोर्ट अभी तक जारी नहीं की गई है. सालाना रिपोर्ट जारी नहीं होने पर विपक्ष लगातार सवाल भी उठाता रहा है.

पिछले महीने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा था कि 2016 के बाद नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट जारी नहीं की गई है. अगर चीजें सरकार के खिलाफ हो तो यह एक नई परंपरा बनती जा रही है कि इसे सदन में रखा ही न जाए.

हालांकि एनसीआरबी से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि पश्चिम बंगाल और बिहार की ओर से अपने-अपने राज्यों की रिपोर्ट जमा नहीं कराए जाने से 2017 के रिपोर्ट को अंतिम रूप में देने में देरी हो रही है.

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अब बाल यौन शोषण का मामला सुप्रीम कोर्ट में है. उम्मीद की जानी चाहिए कि कोर्ट सरकार की मदद से कुछ ऐसे और कड़े कदम उठाए कि खुद को सभ्य समाज का हिस्सा कहने वाले मानव समाज ऐसे वीभत्स कुकृत्य करने से बचेगा और बच्चों का बचपन सुरक्षित रहेगा. साथ ही दोषियों को जल्द से जल्द कड़ी से कड़ी सजा दी जाए जिससे अपराधियों के लिए अपराध के बाद सुरक्षित बच निकलने के सारे रास्ते बंद हो जाएं.

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