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राफेल डील में कुछ भी गलत नहीं हुआ, हमने विमानों की कीमत नहीं छिपाई: सीतारमण

राफेल डील पर मचे सियासी घमासान के बीच रक्षा मंत्री ने कांग्रेस से सवाल किया कि यूपीए के वक्त हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड वाली डील में 5% ही काम बचा था तो उसे पूरा क्यों नहीं किया गया. भारतीय वायुसेना में लड़ाकू विमानों की कमी दूर करने पर कांग्रेस ने क्यों ध्यान नहीं दिया.

निर्मला सीतारमण से खास बातचीत निर्मला सीतारमण से खास बातचीत
सना जैदी/खुशदीप सहगल/राहुल कंवल
  • नई दिल्ली,
  • 27 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 8:42 PM IST

रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि राफेल डील को लेकर मोदी सरकार की ओर से हर प्रक्रिया का पालन किया गया है. रक्षा मंत्री के मुताबिक डील को लेकर सरकार ने कुछ भी गलत नहीं किया.

इंडिया टुडे से खास इंटरव्यू में रक्षा मंत्री ने कांग्रेस से सवाल किया, ‘अगर यूपीए के कार्यकाल में हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ डील को लेकर 95%  बातचीत पूरी हो चुकी थी तो उस वक्त की सरकार ने बाकी 5%  बचे काम को पूरा करने के लिए क्यों कदम नहीं उठाए. वो (कांग्रेस) बताएं कि उस बचे 5%  के पीछे क्या राज था?  किसने तब उन्हें  डील के लिए आगे बढ़ने से रोका था.’

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निर्मला सीतारमण ने एक अंग्रेजी अखबार में रक्षा मंत्रालय में तत्कालीन संयुक्त सचिव के हवाले से छपी खबर को पूरी तरह गलत बताया. रक्षा मंत्री ने कहा कि पहली बात तो कैबिनेट ने अगस्त 2016 में राफेल डील को मंजूरी दी थी ना कि सितंबर में. सितंबर में समझौता हुआ था. रक्षा मंत्री ने कहा कि कीमत, टेक्निकल पहलुओं, क्वालिटी आदि पर प्रधानमंत्री फैसला नहीं लेते, इन सबके लिए अलग डेलीगेशन होते हैं जो तमाम चीजों पर गौर कर अपनी रिपोर्ट देते हैं.

रक्षा मंत्री के मुताबिक अखबार की रिपोर्ट में जिस तत्काल संयुक्त सचिव (एक्विजिसन मैनेजर) के हवाले से असहमति के नोट की बात की जा रही है तो उसके खुद मंजूरी के पत्र पर दस्तखत थे. रक्षा मंत्री ने ये भी कहा कि वो अधिकारी ट्रेनिंग के लिए शॉर्ट टर्म कोर्स करने विदेश गए थे जो कि पहले से ही तय था.

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रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण का इंटरव्यू लेते राहुल कंवल

विपक्ष की ओर से ये आरोप लगाया जाता है कि यूपीए के समय 126 राफेल विमान लेने की बात थी जिसे एनडीए सरकार ने घटाकर 36 कर दिया और रक्षा आपूर्ति प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया. इस तरह के आरोपों पर निर्मला सीतारमण ने कहा कि यूपीए के वक्त फ्लाईवे हालत में 18 राफेल लेने की बात हो रही थी, जो कि एक स्कवॉड्रन के लिए ही पर्याप्त होते,  बाकी सब का HAL के साथ एक टाइमलाइन के तहत निर्माण होता. रक्षा मंत्री ने साफ किया कि भारतीय वायुसेना में लड़ाकू विमानों की कमी को देखते हुए अर्जेंसी के तौर पर फ्लाईवे हालत में 36 राफेल लेने का फैसला किया, जिनकी आपूर्ति सितंबर 2019 से होनी भी शुरू हो जाती. बाकी राफेल विमानों के लिए RFI (Request for Interest) के जरिए आगे कदम बढ़ाती.  

राफेल डील के लिए मोदी सरकार की ओर से जल्दी दिखाए जाने के आरोपों को निर्मला सीतारमण ने खारिज किया. उन्होंने कहा, ‘भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों के स्क्वाड्रन 44 से घट कर 33 तक आ गए थे. 2014 तक यूपीए सरकार ने इस दिशा में तत्काल कदम उठाने की जरूरत क्यों नहीं समझी. जिस तरह अब वो चोर-चोर का शोर मचाने में ऊर्जा व्यर्थ कर रहे हैं तब उन्होंने वो ऊर्जा क्यों नहीं दिखाई थी जो उन्हें सरकार के नाते दिखानी चाहिए थे. इसीलिए हमने फ्लाईवे हालत में 36 राफेल विमान खरीदने के लिए कदम उठाया.’

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कभी HAL को असक्षम बताने जैसा बयान नहीं दिया

रक्षा मंत्री से इंटरव्यू में पूछा गया कि क्या ये सही नहीं होता कि HAL को अगर टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के तहत ये विमान बनाने का मौका मिलता तो वो संस्थान इस क्षेत्र में और सीखता-समझता और आगे चलकर देश आत्मनिर्भर होता? रक्षा मंत्री को HAL के पूर्व चीफ के बयान का हवाला भी दिया गया कि HAL जब चौथी पीढ़ी के सुखोई 30 जैसे आधुनिक विमान बना सकता है तो यहां भी सफल रहता?  रक्षा मंत्री ने कहा कि इन सवालों को यूपीए कार्यकाल में जो रक्षा मंत्री रहे उनसे पूछा जाना चाहिए कि उनके वक्त में ये सब करने के लिए क्यों नहीं कदम उठाए गए. रक्षा मंत्री ने इस बात का खंडन किया कि उन्होंने कभी HAL के लिए असक्षम जैसा शब्द प्रयोग किया.

निर्मला सीतारमण ने दावा किया कि उनके वक्त में हर साल HAL को 22,000 करोड़ रुपये जारी किए जबकि यूपीए के वक्त औसतन हर साल 10,000 करोड़ ही दिए जाते थे.

निर्मला सीतारमण ने इस बात से भी इनकार किया कि सरकार राफेल विमान की खरीद कीमत ना बताने पर अड़ी हुई है. रक्षा मंत्री ने साथ ही कहा कि राफेल डील को लेकर दाल में कुछ भी काला नहीं है. निर्मला सीतारमण ने सीधे तौर पर तो राफेल की खरीद कीमत नहीं बताई लेकिन ये कहा कि वो पहले तीन मौकों पर ये कीमत बता चुकी हैं जो रिकॉर्ड से चेक किया जा सकता है. रक्षा मत्री के अनुसार नवंबर 2016 को रक्षा राज्य मंत्री ने भी ये कीमत बताई.

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अनिल अंबानी से जुड़े विपक्ष के आरोपों पर निर्मला सीतारमण ने कहा कि इंटर गवर्मेंट क्लीयरेंस (सरकारों के बीच समझौतों) में किसी एक कंपनी का नाम नहीं लिया जाता. ये कॉमर्शियल निर्णय होते हैं. सरकार इस बारे में तय नहीं करती. ऑफसेट को लेकर दसॉ एविएशन और रिलायंस डिफेंस के बीच बातचीत को लेकर निर्मला सीतारमण ने कहा कि इस बारे में उनके पास कोई जानकारी नहीं है. जब ये जानकारी आएगी तभी वो कुछ कहने की स्थिति में होंगी.

मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार और क्रोनी कैपिटेलिज्म का एक भी आरोप नहीं

निर्मला सीतारमण ने कहा, ‘मोदी सरकार पर साढ़े चार साल में भ्रष्टाचार या क्रोनी कैपिटेलिज्म का एक भी आरोप नहीं हैं. कांग्रेस जो भी आरोप मोदी सरकार पर लगा रही है वे बेबुनियाद हैं. जहां तक नरेंद्र मोदी पर विपक्ष के हमलों की बात है तो वर्ष 2002 से ही उनके खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल किया जाता रहा है. लेकिन ये सब जानते हैं कि भ्रष्टाचार का शब्द भी उनके पास आना संभव नहीं है.

निर्मला सीतारमण ने कहा कि वे नहीं जानतीं कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने अनिल अंबानी की कंपनी को लेकर क्यों कहा कि उसे डील से जोड़ना भारत सरकार का फैसला था. निर्मला सीतारमण ने इस बात से इनकार नहीं किया कि हो सकता है कि ओलांद ने फ्रांस की अंदरूनी राजनीति के दबाव में ये बयान दिया हो.

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मोदी सरकार कभी देश का नुकसान नहीं करेगी

रक्षा मंत्री के मुताबिक रक्षा मंत्रालय में अब निर्णय लिए जा रहे हैं और वो भी बिना दलालों के. निर्मला सीतारमण ने जोर देकर कहा कि मोदी सरकार देश का कभी कोई नुकसान नहीं होने देगी.

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