
राफेल डील विवाद अभी भी तक खत्म नहीं हुआ है. इस बीच गुरुवार को देश की रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने एक बड़ा खुलासा किया. उन्होंने कहा कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के समय 126 राफेल जेट विमानों की खरीद का करार हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लि. (एचएएल) की खराब सेहत की वजह से परवान नहीं चढ़ सका.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, निर्मला सीतारमण ने कहा कि HAL के पास फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट एविएशन के साथ मिल कर भारत में इस लड़ाकू विमान के विनिर्माण के लिए जरूरी क्षमता ही नहीं थी और सार्वजनिक क्षेत्र की यह कंपनी काम की गारंटी देने की स्थिति में नहीं थी.
उन्होंने यह भी कहा कि 2013 में तत्कालीन रक्षा मंत्री ए के एंटनी के हस्तक्षेप ने उस समय इन विमानों के सौदे के लिए की जा रही कवायद के ताबूत की आखिरी कील का काम किया.
रक्षामंत्री के मुताबिक, एंटनी ने उस समय हस्तक्षेप किया जबकि लागत पर बातचीत करने वाली समिति इस सौदे को अंतिम रूप दे रही थी. एंटनी के हस्तक्षेप पर उन्होंने कहा कि तत्कालीन रक्षा मंत्री ने फाइल ऐसे स्तर पर रोकी थी जहां उनकी कोई भूमिका नहीं थी. हालांकि, उन्होंने एंटनी द्वारा ऐसा करने की कोई वजह नहीं बताई.
सीतारमण ने कहा कि एचएएल के साथ कई दौर की बातचीत के बाद फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट एविएशन को महसूस हुआ कि यदि राफेल जेट का उत्पादन भारत में किया जाता है तो इसकी लागत काफी अधिक बढ़ जाएगी.
उन्होंने कहा, ‘‘डसॉल्ट कंपनी एचएएल के साथ बातचीत को इसलिए आगे नहीं बढ़ा सकी क्योंकि यदि विमान का उत्पादन भारत में होता, तो विनिर्मित किए जाने वाले उत्पाद के लिए गारंटी देने की जरूरत होती. यह एक महंगा उत्पाद है और भारतीय वायुसेना जेट के लिए गारंटी चाहती. एचएएल इस तरह की गॉरंटी देने की स्थिति में नहीं थी. ’’
रक्षा मंत्री ने कहा कि राफेल विमान की हथियार प्रणाली, वैमानिकी और अन्य जोड़ी गई चीजें संप्रग के समय चली वार्ता की तुलना में कहीं बहुत श्रेष्ठ होंगी.
उन्होंने दावा किया उनकी सरकार ने विमान की कीमत के बारे में जो करार किया है उसके तहत ये विमान उस सयम की सहमति से 9 प्रतिशत कम कीमत पर हासिल कर रही है. इसकी आपूर्ति सितंबर, 2019 से शुरू होने की उम्मीद है.
गौरतलब है कि पूर्ववर्ती संप्रग सरकार ने 2012 में फ्रांस की डसॉल्ट एविएशन के साथ 126 मीडियम मल्टी रोल लड़ाकू विमान (एमएमआरसीए) खरीदने के लिए मोलभाव शुरू किया था. डसॉल्ट एविएशन को 18 राफेल जेट की आपूर्ति पूरी तरह तैयार हालत में करना था, जबकि 108 विमानों का विनिर्माण भारत में कंपनी को एचएएल के साथ मिलकर करने की बात चल रही थी.
कांग्रेस लगातार 36 राफेल जेट सौदे की आलोचना कर रही है. कांग्रेस का आरोप है कि सरकार इस विमान की खरीद 1,670 करोड़ रुपये प्रति विमान की दर पर कर रही है जबकि संप्रग सरकार ने इसके लिए 526 करोड़ रुपये की कीमत को अंतिम रूप दिया था.
इस पर सीतारमण ने कहा कि 526 करोड़ रुपये का आंकड़ा सिर्फ विमान के लिए है जो सिर्फ उड़ान भर सकता है और उतर सकता है. इसमें वैमानिकी, हथियार और अन्य संबद्ध प्रौद्योगिकी को नहीं जोड़ा गया है जो इसे पूरी तरह लड़ाकू मशीन बनाते हैं.