
नोटबंदी को एक महीना पूरा हो गया है. क्या बाज़ार और क्या खरीदार सब चरमरा रहे हैं. काला धन बैंक तक आया या नहीं लेकिन जनता बैंक तक जरूर आ गई है. कतारों में खड़ी कराह रही है लेकिन अपनी नियति मानकर बैठी है. हालांकि लोग खायें और पहनें नहीं तो जाएं कहां. बाज़ार में थोड़ी चहल पहल तो बढ़ी है लेकिन पहले जैसी रवानगी आने में अभी छह महीने से साल भर तक का वक्त लग सकता है.
देश की बड़ी किराना मंडियों में से एक पुरानी दिल्ली का खारी बावली बाज़ार यहां महीने भर बाद रेलमपेल तो है. लोग खरीदारी करने भी निकले हैं लेकिन जेब में रुपयों का नहीं सिर्फ डेबिट या क्रेडिट कार्ड का भरोसा है. दुकानदारों को भी लगता है कि चलो यही सही. सबको आसानी हो गई है. बैंक के एटीएम की लाइन में खड़े होने से बेहतर है जरूरत का सामान प्लास्टिक मनी से ही ले लिया जाए.
खारी बावली के मेन बाजार हों या तंग गलियां, हर जगह नजारा एक जैसा ही है. एक अनुमान के मुताबिक पिछले एक महीने में देश का किराना कारोबार 60 फीसदी तक गिर गया है. इससे करीब 60 हजार करोड़ की चपत बाजार को लगी है. अब नोटबंदी के बाद महीने भर में लोग परेशान तो सब हैं लेकिन नाराज होने वालों की तादाद कम है.
सर्राफा बाजार तो अब तक सदमे से उबरा ही नहीं है. दुकानें खुली भी हैं तो पथराई सी. हां, शादी ब्याह का सीजन है तो इक्का दुक्का ग्राहक आ ही जाते हैं. मजबूरी की खरीदारी है लिहाजा उत्साह ना तो ग्राहकों में है और ना ही दुकानदारों में. सर्राफा बाजार का तो मानना है कि उनकी याददाश्त में ऐसा साल कभी नहीं आया जिसमें पहले तो सरकार ने एक्साइज लगाया और 45 दिनों की हड़ताल रही. फिर ये नोटबंदी का अजाब आ गया. अब चिंता ये है कि दिसंबर सिर पर आ गया. कैसे तो एडवांस टैक्स, वैट और अन्य करों की किस्त जमा करेंगे. बैठे बिठाये एक और पंगा.
हालांकि अब सारा काम एक नंबर या ऑन रिकॉर्ड करने के हामी सर्राफा कारोबारियों ने वित्त मंत्रालय को कुछ सुझाव भी दिये हैं ताकि ऐसी व्यवस्था हो जाए कि हर कोई पारदर्शी कारोबार करे. कच्चे खाते बही और काले धन की कोई गुंजाइश ही ना रहे. यानी कुल मिलाकर ये महीना बाजार और खरीदार दोनों पर भारी पड़ा. लोग घरों और दुकान में कम एटीएम की लाइन में ज्यादा खड़े रहे. देखिये, देश बदल रहा है.